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जीवन यापन करने की प्रेरणा उत्पन्न करते हैं। अपने प्रवचनों के | सामान्य को वे धार्मिक से धर्मात्मा बनने के उपायों के साथ ही माध्यम से आप गृहस्थ को सद्गृहस्थ बनने की प्रेरणा देते हैं। | साथ धर्मात्मा बनने की मधुर प्रेरणा भी देते हैं।
आप अपने नि:स्वार्थ जीवन द्वारा अपने ज्ञान का ठीक वैसे जैन विद्या को व्यवस्थित पाठ योजना के माध्यम से समझाने ही प्रकाश बिखेर रहे हैं जैसे सूर्य और चन्द्रमा बिना अपेक्षा के, | हेतु मुनि श्री द्वारा "जैन सिद्धांत शिक्षण" नामक कृति का सृजन बिना भेदभाव के सभी को अपना प्रकाश और ज्योत्सना सहज हुआ है। इसमें आपके द्वारा सिद्धांतों को सरल और सूक्ष्म रूप में रूप से प्रदान करते हैं। आपके ज्ञान गाम्भीर्य का ही ये परिणाम है वर्णित किया गया है यह कृति जगह-जगह आयोजित होने वाले कि अच्छे से अच्छे विद्वान भी अपनी गंभीर से गंभीर तात्विक | शिक्षण शिविरों में सिद्धांत आधारित पाठ्य सामग्री के अभाव को समस्याओं का समाधान क्षण भर में प्राप्त कर लेते हैं। अध्यात्म, पूरा करती है। इस कृति के द्वारा न सिर्फ स्वाध्याय की एक नई दर्शन, धर्म, संस्कृति, इतिहास, साहित्य, न्याय, व्याकरण, | शैली का विकास हुआ है, अपितु आध्यात्मिक, आचारनिष्ठ और मनोविज्ञान, वास्तुविद्या इत्यादि में अनुपम ज्ञान आपकी विशिष्टता | जिज्ञासु व्यक्तिओं का निर्माण हुआ है। है। साहित्यजगत में आप हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, प्राकृत भाषाओं "धर्म जीवन का आधार" मुनि श्री की एक ऐसी कृति है के अग्रणी विद्वान के रूप में जाने जाते हैं।
जिसके अनुशीलन से धर्म के दशलक्षणों का स्वरूप सरलता से मुनि श्री की लेखनी से उद्धत "जैन धर्म और दर्शन" हृदयंगम हो जाता है, हालांकि दशधर्मों के स्वरूप को समझाते हुए आधुनिक शैली में लिखा शास्त्रतुल्य ग्रंथ है। इस ग्रंथ के माध्यम | पूर्व में कई कृतियों का सृजन हुआ है, किन्तु प्रस्तुत कृति अपने से उन्होंने धर्म और दर्शन जैसे गूढ़ विषय को भाषागत जटिलता से अभिव्यक्ति कौशल के कारण उन सभी से अलग श्रोताओं पर मुक्त कर वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किया है । यह ग्रंथ वर्तमान समय विशिष्ट प्रभाव छोड़ धर्म को जीवन व्यवहार में उतारने की प्रबल के एक बड़े अभाव की पूर्ति करने के साथ ही दीप स्तम्भ का | प्रेरणा देने में सफल रही है। कार्य कर रहा है। इसमें आपने क्लिष्ट से क्लिष्ट जैन दर्शन की आपकी कृति "ज्योतिर्मय जीवन" विभिन्न प्रवचनों के गूढ़ताओं और जटिलताओं को सरल बनाकर अबाल वृद्ध को रूप में मनुष्य की चेतना को ज्योतिर्मय बनाने का सशक्त माध्यम परिचय कराकर अपनी असाधारण प्रतिभा का प्रमाण दिया है। | बनकर "तमसो मा ज्योतिर्गमय की उक्ति को चरितार्थ कर रही
"जैन तत्त्वविद्या" आपकी एक और लोकोपकारी कृति है जो जैनागम के सर्वोन्मुखी-विद्याओं को अपने आप में समाहित
आपके पावन सान्निध्य, आशीर्वाद और प्रेरणा से स्थानकिये हैं। यह आपके चिंतन की सृजनशीलता ओर निर्ग्रन्थ-श्रेयस स्थान पर अनेक शुभ सामाजिक और धार्मिक कार्य होते रहते हैं। साधना का ही फल है कि केवल इस एक ग्रंथ के अनुशीलन से | कई स्थानों पर सानंद सम्पन्न गजरथ एवं पंचकल्याणक महोत्सव जैन तत्त्वविद्या की सभी शाखाओं के उच्च स्तरीय ज्ञान में प्रवीणता आपके कुशल निर्देशन की सफलता का प्रमाण देते हैं। गाँवोंप्राप्त हो जाती है। इन्हीं कारणों से उनकी यह महान् कृति सहज ही शहरों में स्थापित अनेक गौशालाओं और पशु संरक्षण गृह आपकी जैन धर्म की एनसाइक्लोपीडिया कहलाने लगी है।
प्राणी मात्र के प्रति करूणा का प्रमाण दे रही हैं। आपके आशीर्वाद "दिव्य जीवन का द्वार" मुनि श्री द्वारा समय-समय पर | से आयोजित शिक्षण शिविरों में लाभान्वित हजारों लोग आपकी दिये प्रवचनों का संकलन है। इन प्रवचनों में सर्व-धर्म समभाव | तत्वान्वेषी मानसिकता का स्पष्ट प्रमाण दे रहे हैं। निहित है। इन प्रवचनों द्वारा मुनिश्री ने मानव मात्र को एक आदर्श मुनि श्री में समाहित गुणों को पूरी तरह से प्रकट करना नैतिक वातावरण के द्वारा धार्मिक धरातल का ज्ञान कराया है। कभी भी संभव नहीं है कारण वे अनंत गुणों से परिपूर्ण हैं । इस आपके इस प्रवचन संग्रह के माध्यम से मानव को मानवता का | आलेख के माध्यम से मैंने सूरज को दीपक दिखाने जैसा लघु परिचय प्राप्त कर नैतिकता अपनाने का संकेत मिलता है। जीवन कार्य किया है, वास्तव में वे नित-नूतन-नवीन हैं, उनके गुणों को उद्धार की दिशा में आपके प्रवचनों के शब्द लोगों के प्रेरणा स्रोत | ध्यान में रखकर जितना लिखा जाए कम है। बन जाते हैं।
अपने आलेख को यहीं पर विराम देते हुए मैं परम पिता से "अंतस् की आँखें" एक अन्य प्रवचन संग्रह है जिसमें | करबद्ध प्रार्थना करता हूँ कि मुनि श्री स्वस्थ और दीर्घायु होवें मुनिश्री ने धार्मिक और धर्मात्मा के भेद को उजागर किया है। ताकि उनके मंगल सान्निध्य में सृष्टि के जीव अंधकार से प्रकाश उनका कहना है कि धार्मिक वह है जो धार्मिक क्रियाओं के साथ | की ओर, मृत्यु से जीवन की ओर, विष से अमृत की ओर, घृणा जीवन व्यतीत करता है, जबकि धर्मात्मा वह है जो धर्म को अपनी | से प्रेम की ओर, अधर्म से धर्म की ओर जाने की कला सीख सकें आत्मा, अपने जीवन में अपना लेता है। धार्मिक व्यक्ति का धर्म | और सुखद भविष्य का निर्माण कर सकें। ऐसे महान् संत के धार्मिक क्रियाओं के साथ थोड़ी ही देर में विलुप्त हो जाता है, | चरणों में बारम्बार नमन्। जबकि धर्मात्मा का धर्म हमेशा उसके आचरण, विचार और
ई-21, जवाहर पार्क व्यवहार में प्रतिबिम्बत होता है। अपने प्रवचनों के माध्यम से जन |
लक्ष्मी नगर, दिल्ली - 92 जुलाई 2003 जिनभाषित 15
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