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________________ समाचार आदिनाथ भगवान की 5 टन की विशाल पद्मासन प्रतिमाजी उच्च स्थान कमल पर विराजित अजमेर, 31 जनवरी 03 19वीं शताब्दी की ऐतिहासिक धरोहर अजमेर स्थित सोनीजी की नसियाजी, जिसे सेठ सा. की नसियाजी भी कहा जाता है, में सन् 1953 में स्व. सर सेठ भागचंदजी सोनी ने भगवान आदिनाथ की 5 टन की विशाल पदमासन प्रतिमाजी को मूल वेदी के मध्य स्थान में 18 इंच ऊँचे सिंहासन पर विराजित कराया। इस प्रतिमाजी को दिनांक 9 जनवरी, 03 को नवनिर्मित वेदी के ऊपर 1750 किलोग्राम के कमलदल सिंहासन पर परमपूज्य संत शिरोमणि आचार्य 108 श्री विद्यासागरजी की पावन प्रेरणा एवं आशीर्वाद से मुनि 108 श्री सुधासागरजी महाराज ससंघ के सान्निध्य में पं. रविकान्त जैन के निर्देशन में बड़े हर्ष व उल्लास के वातावरण में भव्य समारोह के बीच विराजित किया गया। पूर्व में जब-जब विभिन्न आचार्यगण एवं मुनि संघ यहां पधारे, उन्होंने इसमें वास्तुदोष बतलाया, क्योंकि यह मूर्ति दर्शनार्थियों की नाभि के नीचे विराजित थी। प्राचीन मूल वेदी में तोड़-फोड़ से बचने व अन्य विराजित मूर्तियों के दर्शनों में व्यवधान को देखते हुए इस प्रतिमाजी को उच्चासन पर विराजमान करने की योजना पर चर्चाएं तो हईं, लेकिन इसे क्रियान्वित कर मूर्त रूप नहीं दिया जा सका। गत वर्ष जैन विश्व के सबसे बड़े चौरासी फीट उतंग मानस्तम्भ की जून 2003 में स्वर्ण जयन्ती महोत्सव पर महामस्तकाभिषेक के आयोजन के सन्दर्भ में टेम्पुल ट्रस्ट के ट्रस्टी श्री निर्मलचन्द सोनी व श्री प्रमोदचंद सोनी की नसियाजी की सभी वेदियों के जीर्णोद्धार के साथ-साथ इस प्रतिमाजी को उच्चासन पर विराजमान करने की भावना जाग्रत हुई । इस हेतु ट्रस्टीगणों ने अजमेर जैन समाज के प्रबुद्ध महानुभावों व विद्वानों की एक सभा बुलाकर सारी बातों पर चर्चा की। उन्हें आचार्य 108 श्री विद्यासागरजी महाराज का आशीर्वाद एवं सान्निध्य प्राप्त करने ले गये एवं आचार्यश्री को श्रीफल समर्पित करके सान्निध्य एवं चातुर्मास करने की विनती की। आचार्य श्री चातुर्मास हेतु सिद्धोदय क्षेत्र पधार रहे थे, एतद् उन्होंने सान्निध्य प्रदान करने एवं चातुर्मास हेतु असमर्थता व्यक्त करते हुए इस मंगलमय कार्य के लिए शुभ आशीर्वाद प्रदान करते हुए एवं अपने परम शिष्य मुनि 108 श्री सुधासागरजी महाराज के पास जाने का निर्देश प्रदान किया। आचार्य श्री के पास से लौटते हुए मुनि 108 श्री सुधासागरजी Jain Education International महाराज ससंघ का चांदखेड़ी अतिशय क्षेत्र में अजमेर चातुमांस हेतु प्रार्थना तथा इस कार्य को सान्निध्य प्रदान करने हेतु विनती की गई। बिजौलिया पार्श्वनाथ में चातुर्मास के समापन के बाद मुनि श्री 108 सुधासागरजी महाराज अलवर जाते समय अजमेर पधारे तब उनसे पुन: विनती एवं निवेदन किया गया। मुनिश्री ने यहां आकर ट्रस्टीगणों से विचार-विमर्श किया और निर्देश प्रदान किये। अन्ततः 8 जनवरी को उनके सान्निध्य में कमलदल साढ़े तीन फीट ऊँची वेदी पर विधिविधान पूर्वक विराजित किया गया और दिनांक 7 जनवरी को मुनि श्री की आध्यात्मिक शक्ति, आत्मबल एवं आशीर्वाद से इस प्रतिमाजी को कमलदल पर विराजित किया गया। भगवान आदिनाथ एवं आचार्य विद्यासागरजी महाराज तथा मुनि सुधासागरजी महाराज की जय-जयकार से पूरी नसियाजी गूंज उठी, जहां हजारों की तादाद में भक्तगण मुदित भाव से बड़े उत्साहपूर्वक हर कार्य में योगदान दे रहे थे। इसके साथ ही मूल वेदी में विराजित बारह प्रतिमाएँ तथा अन्य वेदियों में विराजित सभी प्रतिमाजी मन्दिर के दायें भाग में विराजित कर दी गई हैं। अब नसियाजी की तीनों वेदियों का जीर्णोद्धार प्रारम्भ हो गया है और आशा है कि महामस्तकाभिषेक के साथ ही विधिविधान पूर्वक इन समस्त प्रतिमाओं का नूतन वेदियों में विरोजित करने का भव्य कार्यक्रम इसी वर्ष जून माह में होने की संभावना है। इस प्रतिमाजी का उच्चासन पर विराजमान होना सामाजिक व आर्थिक उत्थान तथा समाज को जोड़ने में महत्वपूर्ण साबित होगा, ऐसी आशा है। भव्य समारोह में नूतन वेदी का नक्शा बनाने वाले आर्किटेक्ट सर्वश्री उम्मेदमलजी जैन एवं उनके सुपुत्र श्री निर्मलकुमारजी जैन का तथा कमलदल के निर्माता जयपुर के मूर्तिकार का ट्रस्ट की ओर से शाल ओढ़ा कर सम्मान किया गया। इसके बाद सोनी परिवार के सर्वश्री निर्मलचंदजी सोनी एवं प्रमोदचंदजी सोनी का अजमेर समाज की ओर से श्री ज्ञानोदय तीर्थक्षेत्र के अध्यक्ष श्री भागचंद गदिया द्वारा शाल, माला व साफा ओढ़ा कर भावभीना सम्मान किया गया जिसका तुमूलनाद से उपस्थित साधर्मीगणों द्वारा अनुमोदन किया गया। ट्रस्ट की ओर से सभी धर्मप्रेमियों को मोदक वितरण व बाहर से पधारे हुए अतिथियों के लिए आवास एवं भोजन की सुव्यवस्था रही। For Private & Personal Use Only हीराचंद जैन सह-प्रचार-प्रसार संयोजक मार्च 2003 जिनभाषित 31 www.jainelibrary.org
SR No.524271
Book TitleJinabhashita 2003 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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