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________________ श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर सर्वोदय कॉलोनी, अजमेर अजमेर। 2 फरवरी, 03 सहज रूप से अपने हार्दिक भावों के साथ किये गये कर्मों को श्रेयस्कर बतलाते हुए प. पू. मुनि 108 श्री क्षमासागर महाराज ने अपने मंगल उद्बोधन में सर्वोदय कॉलोनी स्थित श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन मन्दिर परिसर में कहा कि अगर इनके साथ स्व व परकल्याण की भावना निहित हो, तो सोने में सुहागा वाली बात हो जाती है। एक मां अपने बच्चे का लालनपालन सेवा सुश्रुषा आदि जैसे करती है, वैसे ही सूर्य प्रकाशमान होकर बिना किसी भेदभाव के जगत को प्रकाश व ऊर्जा प्रदान करता है। व्यक्ति द्वारा किए गए कर्मों से दूसरों का कितना हित व अहित होगा, इस पर विचार करते हुए अपने कर्मों पर कमांड रखते निर्मल भावना से अगर इन्हें पूर्ण किया जाये, तो यह हुए कर्म सर्वजनहिताय हो जाते हैं। अधिकतर देखा गया है कि अच्छे कार्यों का श्रेय लेने को तो सब आतुर रहते हैं, लेकिन गलत व बुरे कार्यों के लिए इधर-उधर झांक कर इन्हें दूसरों पर थोपने की चेष्टा की जाती है। मुनि श्री ने आगे कहा कि विभिन्न श्रेणियों के मनुष्यों की मानसिकता व उनके आस पास के वातावरण से उनके द्वारा किये गए कर्मों का फल आश्रित रहता है। प्रथम श्रेणी में वे हैं, जो फल की आकांक्षा तो करते हैं, लेकिन कर्म नहीं करते हैं। वे लॉटरी आदि साधनों द्वारा धन कमाने की इच्छा रखते हैं। दूसरे व्यक्ति वे हैं, जो कर्म तो करते हैं, पर फल भगवान पर छोड़ देते हैं। तीसरे यह जानते हुए कर्म करते हैं कि अच्छा या बुरा जैसा भी कर्म वे करेंगे, वैसा ही उन्हें फल प्राप्त होगा। चौथे प्रकार के कर्म मनुष्य करते हैं, पर कभी फल की आशा नहीं करते। पांचवें प्रकार के मनुष्य न कर्म करते हैं और न किसी प्रकार के फल की आशा रखते हैं और उन्हें निठल्ला माना जाता है। महज संसार चलाने, गृहस्थी व अपनी बरकत के लिए रूटिन मानकर जो कर्म किए जाते हैं, उनसे शान्ति व संतोष की प्राप्ति नहीं होती। जिन्होंने मुदित मन से आत्म कल्याण की भावना के साथ कर्मों को पूर्ण किया हो, जो भले ही संसार चलाने हेतु क्यों न हो, लेकिन इन कर्मों को करने वालों को सुख व शान्ति की अनुभूति होती है। भगवान की पूजन व अर्चना क्यों, कब कैसे व किसी प्रकार के विवादों व चक्करों तथा पंथ व्यामोह में पढ़कर इन्हें करने वालों को आत्मसुख व आत्म संतोष की प्राप्ति नहीं होती, लेकिन जहां शुद्ध भावना से आत्म कल्याण व आनंद मानते हुए पूजा-अर्चना की जाती है, उससे पुण्य बंध के साथ सुख व शान्ति प्राप्त होती है। दूसरों के 32 समाचार मार्च 2003 जिनभाषित Jain Education International जीवन की क्षति न हो और हितकारी भाव जहां समाहित हो, ऐसे कर्म करने से जीवन का उत्थान होता है। मुनि 108 श्री भव्यसागरजी महाराज ने सुन्दर कथानक के 1 108 श्री भ माध्यम से कहा कि समता धारण कर क्रोध से बचते हुए दूसरों की सुरक्षा के भाव जहां समाहित हो, वे विपत्तियों के शूल को फूल समझते हैं । हीराचंद जैन श्री ओमप्रकाश जी जैन पद्मश्री के अलंकरण से विभूषित सुप्रसिद्ध समाजसेवी एवं कुन्दकुन्द भारती न्यास के न्यासी धर्मानुरागी श्रीमान् ओमप्रकाश जी जैन को इस वर्ष गणतंत्र दिवस के सुअवसर पर पद्मश्री के अलंकरण से विभूषित किए जाने हेतु चयनित किया गया है। इस आशय की सूचना भारत सरकार के महामहिम राष्ट्रपति जी की ओर से केन्द्र सरकार द्वारा जारी अधिसूचना में दी गई है। यह समाचार जानते ही राजधानी एवं देश की जैन समाज में हर्षोल्लास का वातावरण छा गया एवं श्री जैन को चारों ओर से बधाइयों का तांता लग गया। ज्ञातव्य है कि धर्मानुरागी श्रीमान् ओमप्रकाश जी जैन विगत पचास वर्षों से भी अधिक समय से परमपूज्य आचार्यश्री विद्यानन्द जी मुनिराज के पावन आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन में जैन समाज एवं भारत राष्ट्र की सेवा में तन-मनधन से समर्पित सुप्रतिष्ठित व्यक्तित्व हैं । तथा आपकी गुणगरिमा विनम्रता एवं दूरदर्शितापूर्ण कार्यशैली को अपनी एक विशिष्ट पहिचान है। दिल्ली जैन समाज की विभिन्न प्रतिष्ठित संस्थाओं एवं गणमान्य व्यक्तियों के साथ-साथ श्री कुन्दकुन्द भारती न्यास एवं प्राकृतविद्या परिवार के समस्त कार्यकर्त्ताओं एवं सदस्यों की ओर से धर्मानुरागी श्री ओमप्रकाश जी जैन को उनकी इस गरिमापूर्ण उपलब्धि के सुअवसर पर हार्दिक बधाई और अभिनन्दन के साथ-साथ उनके सुदीर्घ, स्वस्थ जीवन एवं उच्चतम लक्ष्यों की प्राप्ति के निमित्त हार्दिक मंगल कामनाएँ प्रेषित हैं। राष्ट्रपति भवन में गरिमापूर्वक आयोजित होने वाले भव्य समारोह में श्री जैन को यह अलंकरण महामहिम राष्ट्रपति जी के कर कमलों से यथासमय समर्पित किया जाएगा। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524271
Book TitleJinabhashita 2003 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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