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5 दिसम्बर, 2002 के "जैन गजट' में माननीय श्री
3. हम देवी देवताओं का अस्तित्व स्वीकारते हैं. उनको शंकरलाल जी भीण्डर वालों का पत्र पढ़ा, जिसमें उन्होंने | सम्यग्दृष्टि मानने के लिए भी तैयार हैं, पर उनका यथायोग्य सम्मान 'जिनभाषित' के संपादक और बिजौलिया समाज द्वारा महासभा करना उचित मानते हैं। उनको भगवान् के साथ वेदी पर विराजमान के विरुद्ध पारित प्रस्ताव को भ्रामक बतलाया है। इस विषय में करना, उनकी आरती उतारना, उनकी पूजा करने को मिथ्यात्व का मेरा निम्न कथन है
पोषण मानते हैं। हमें स्वीकार है कि उनका यथायोग्य सम्मान हो. 1. क्षेत्रपाल पद्मावती का मंदिर में होना आवश्यक नहीं है
अधिक नहीं। पर यदि कोई स्थापित करता है तो द्वार के बाहर ही स्थापित करना
4. माननीय श्री शंकरलाल जी ने लिखा है कि चाँदखेड़ी चाहिए। पूज्य आर्यिका सुपार्श्वमती जी तथा आचार्य श्री कुन्थुसागर
मंदिर जी के शिलालेख में भगवान् आदिनाथ की प्रतिमा के अतिरिक्त जी ने इनको द्वारपालवत् कहा है।
अन्य प्रतिमा का उल्लेख नहीं है। इसके उत्तर में निवेदन है कि 2. पिछले माह बिजौलिया समाज के प्रमुख व्यक्तियों से
स्फटिक मणि के मूलनायक का शिलालेख वहाँ अभी भी लगा
हुआ है, ये मूर्तियाँ वहाँ पहले से ही थीं। यह तो पूज्य मुनिश्री 108 चर्चा हुई। सबने यही कहा कि 1998 से पूर्व यहाँ क्षेत्रपाल
सुधासागर जी महाराज का साहस था जो उन्होंने भूगर्भ की प्रतिमाओं पद्मावती की मूर्ति थी ही नहीं। अब मेरा प्रश्न यह है कि जब पूर्व
को प्रकट किया। में नहीं थी, तो विराजमान क्यों की गई? महासभा का तो सिद्धांत
पं. सुनील शास्त्री है कि पूजा-पद्धति जहाँ-जैसी है, उसमें बदलाव नहीं किया जाना
962, सेक्टर-7, आवास विकास चाहिए फिर पूर्व परंपरा को क्यों बदला गया?
कॉलोनी, बोदला, आगरा
ज्ञान प्राप्ति का अमूल्य अवसर
पिछले बहुत समय से देखा जा रहा था कि समाज में बहुत से भाई-बहिन धर्म शिक्षा प्राप्त करने की इच्छा रखते हुए भी अध्ययन नहीं कर पा रहे थे क्योंकि उनको उचित अध्यापक उपलब्ध नहीं हो पाते थे। इस समस्या के समाधान में "श्रमण संस्कृति संस्थान, सांगानेर" द्वारा 23 फरवरी 2003 से 5 मार्च 2003 तक एक जैन धर्म शिक्षण शिविर आयोजित किया जा रहा है, जिसमें देश के सभी प्रदेशों से आये हुए शिवरार्थी भाग ले सकेंगे। शिविर में अध्यापन पं. रतनलाल जी बैनाड़ा एवं ब्रह्मचारी भाइयों द्वारा किया जावेगा। शिविर में जैन धर्म शिक्षा भाग 1, 2, 3, 4 छहढाला, द्रव्यसंग्रह, तत्त्वार्थसूत्र का अध्यापन कराया जायेगा। एक शिविरार्थी किसी एक विषय का शिक्षण ले सकेगा। शिविर में भाग लेने वाले कृपया निम्न सूचना शीघ्र भिजवा देवें।
शिविरार्थी का नाम पिता/पति का नाम पता
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आयु . फोन नं. लौकिक शिक्षा
धार्मिक शिक्षा कहाँ तक ले चुके हैं : 7. शिविर में क्या पढ़ना चाहेंगे
शिविर में 20 वर्ष से 60 वर्ष तक के शिविरार्थी शामिल हो सकते हैं। आपका पत्र आने पर आपको फोन से आपका शिविरार्थी रजिस्ट्रेशन दे दिया जावेगा। शिविरार्थियों का भोजन, आवास एवं शिक्षण सामग्री नि:शुल्क प्रदान की जावेगी। शिविर स्थल : श्री दिगम्बर जैन संघी जी मंदिर, सांगानेर, जयपुर फोन नं. 0141-2730390
आयोजक श्रमण संस्कृति संस्थान वीरोदय नगर, सांगानेर, जयपुर फोन नं. 0141-2730552
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जनवरी 2003 जिनभाषित
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