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________________ आपके पत्र, धन्यवाद : सुझाव शिरोधार्य 'जिनभाषित' पत्रिका के उच्चस्तरीय एवं कुशल संपादन । से अनभिज्ञ रहती है। ऐसी प्रवृत्ति को हतोत्साहित किया जाना हेतु अनेकश: बधाई। मैं यह पत्रिका विगत जुलाई (2002) माह | चाहिए। से निरंतर पढ़ रहा हूँ। पत्रिका बहुत अच्छी लगी। इस पत्रिका के डॉ. नरेन्द्र जैन 'भारती' सनावद प्रकाशन से जैनदर्शन एवं संस्कृति से संबंधित एक उच्चस्तरीय आपका सम्पादकीय भोजपुर में सन्त और बसंत, आचार्यश्री एवं आगमसम्मत पत्रिका की कमी दूर हुई है। इसमें प्रकाशित विद्यासागर जी का शास्त्रराधना, मुनिश्री प्रमाण सागर जी, पं. सामग्रीयाँ ज्ञानवर्द्धक एवं प्रेरणाप्रद होती हैं। विशेषत: पं. रतनलाल जुगलकिशोर जी द्वारा, डॉ. नीलम जैन, पं. मिलापचन्द्र कटारिया, जी बैनाड़ा द्वारा प्रस्तुत जिज्ञासा-समाधान ज्ञान पिपासुओं के लिए डॉ. वन्दना जैन, डॉ. ज्योति जैन, सुशीला पाटनी, प्रो. डॉ. के.जे. पठनीय मननीय एवं संग्रहणीय भी है। आजाबिया, पं. रतनलाल बैनाड़ा व डॉ. सुरेन्द्र जैन भारती सभी ने _ अक्टूबर-नवम्बर 2002 के संयुक्ताङ्क में बिजौलिया प्रसंग .अपने सार गर्भित विचार और लेखों से इस पत्रिका को मूल्यों पर से संबंधित महासभा का प्रस्ताव एवं भर्त्सना प्रस्ताव तथा आधारित, जिनवाणी की विशिष्टता एवं सत्य को उजागर किया सम्पादकीय प्रतिक्रिया पढ़ी। यद्यपि मैं भर्त्सनाप्रस्ताव के भावों से है। प्रकृति के समीप लौट चलें आरोग्यता प्रेरक है। सभी लेख सहमति रखता हूँ, तथापि मेरा व्यक्तिगत विचार यह है कि जिनभाषित जैसे उच्च स्तरीय पत्रिका को सामाजिक एवं व्यक्तिगत अति उत्तम और उपयोगी हैं। इन लेखों से और आपके सम्पादकीय से यह पत्रिका रत्न जड़ित हो गई है। इंतजार रहता है व पूरी आरोप-प्रत्यारोप एवं भर्त्सना आदि जैसी सामग्रीयों के प्रकाशन पढ़कर आनन्द प्राप्ति होती है। प्रशंसनीय है। से दूर रखना चाहिए। पत्रिका का उच्च स्तर बनाये रखने के लिए देवेन्द्रकुमार जैन यह आवश्यक है। किसी भी विवाद का स्पष्टीकरण तो हो, परन्तु 90, सूर्य निकेतन आरोपात्मक एवं भर्त्सनात्मक शैली का उपयोग नहीं, ताकि दिल्ली-110092 सामाजिक एवं व्यक्तिगत सौहार्द कायम रहे। जिनभाषित सितम्बर, 2002 देखकर हार्दिक प्रसन्नता हुई। पुनः पत्रिका के कुशल सम्पादन हेतु आपको अनेकशः | राष्ट्रीय स्तर के सुप्रसिद्ध श्रेष्ठी एवं विद्वान पण्डित रतनलाल जी बधाई। आशा है आपके सम्पादकत्व में यह पत्रिका निरन्तर प्रगति | बैनाड़ा ने श्रावकाचार के अनेक शास्त्रीय प्रमाण देकर श्रावकों को के पथ पर अग्रसर होती रहेगी। देव पूजा के पूर्व प्रतिदिन दातून एवं पानी के कुल्लों द्वारा मुख शुद्धि विमल सेठी, गया | के लिए अपनी सहजता और सरलता पूर्वक प्रभावी ढंग से प्रेरित 'जिनभाषित' का दिसम्बर, 2002 का अंक मिला। कवर किया है। निर्बाध शब्द अवश्य थोड़ा कठिन हो गया है। इसकी पृष्ठ पर तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ चारणाद्रि पहाड़-मंदिर एलोरा सरल व्याख्या आवश्यक है। स्वस्थ्य जीवन जीने के लिए उनकी (महाराष्ट्र) का चित्र नयनाभिराम लगा। सभी लेख स्तरीय हैं यह आगम सम्मत शास्त्रीय व्यवस्था अत्यधिक उपयोगी है। मेरे शास्त्राराधना एवं सल्लेखना लेख चिन्तन तथा मनन करने योग्य हैं। विनम्र अभिमत में देवदर्शन, मंत्रजाप एवं सामान्य लोकव्यवहार "नौकरों से पूजन कराना" (स्व. पं. जुगल किशोर जी मुख्तार) के पूर्व मुखशुद्धि आवश्यक कृत्य है। मुखशुद्धि के उपरांत किए का लेख प्रकाशित कर आपने समाज को सही दिशा निर्देश देने | जाने वाले उपरिलिखित कृत्य आत्मसंतोष प्राप्त करने के लिए का कार्य किया है। मैंने अपने पूज्य पिताजी से बार-बार यह सुना | गुणात्मक दृष्टि से अधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध होते है। है कि पुराने समय में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कभी कभार होती थीं | वैज्ञानिक श्रमण परम्परा एवं जैन जीवनशैली के ज्ञान को परन्तु उनमें जो जिनबिम्ब प्रतिष्ठापित होते थे उनकी न्यौछावर | रेखांकित करते हुए ऐसे प्रश्नोत्तर हमारी स्वस्थ्य जीवन शैली को राशि देने वाले दातार को यह नियम दिलवाया जाता था कि उसके बनाए रखने एवं उसे उत्तरोत्तर विकसित करने के लिए आधारभूमि परिवार का एक व्यक्ति पूजन करेगा। आज के अर्थ प्रधान युग में का कार्य करते हैं। यह आवश्यक है कि प्रत्येक पाठक अपनी पंचकल्याणकों के प्रतिष्ठाचार्य तक इस तरह का नियम नहीं जिज्ञासा को संतुष्ट करने के लिए इसी प्रकार के प्रश्न और प्रतिप्रश्न दिलवाते। आज की स्थिति यह है कि जैन समाज के नाम पर प्रस्तुत करें जिससे कि श्रद्धेय बैनाड़ा जी अपने सरल हृदय, सरल पंचकल्याणक हो रहे हैं, जबकि पंचकल्याणक के नाम पर सारे भाव और सरल ढंग से उत्तर देकर हमारी दैनंदिनी जीवन शैली को भारतवर्ष से चंदा लेने वाले चंद लोग ट्रस्टी बनकर उस राशि का | समृद्ध करते हुए हमारे ज्ञान के भण्डार को सदैव वृद्धिंगत कर सकें। मनमाना उपयोग करते हैं। चंदा भी इतनी दूर जाकर एकत्रित करते श्रीमती विमला जैन हैं कि वहाँ की समाज भक्तिवश चंदा दे देती है परंतु वस्तु स्थिति 30, निशात कॉलोनी,भोपाल म.प्र.- 462003 -जनवरी 2003 जिनभाषित 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524269
Book TitleJinabhashita 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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