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________________ समाचार नेमावर में प्राकृतिक चिकित्सा संगोष्ठी । समाधिस्थ संत परमपूज्य गुरुवर आचार्यश्री ज्ञानसागर जी महाराज गत दिनों देश में सम्पन्न अनेक त्रिदिवसीय संगोष्ठियों के | के चित्र का अनावरण किया एवं दीप प्रज्वलन दिल्ली से आई हुई मध्य श्री सिद्धोदय सिद्ध क्षेत्र, रेवातट, नेमावर की चिकित्सक डॉ. सलिला तिवारी ने किया, उपर्युक्त दोनों डॉक्टरों के साथ डॉ. गोष्ठी इसलिए अधिक सफल कही गई क्योंकि उसमें देश के सुरेश कुमार गाँधी, दिल्ली ने भी अपने महत्त्वपूर्ण विचार रखे। विभिन्न शहरों और गाँवों से करीब 112 चिकित्सक पहुँचे थे, शिविर में स्थानीय और बाहरी कुल 48 मरीजों ने स्वास्थ्य जिसमें से करीब 24 ने 3 दिन के 6 सत्रों में अपनी विषय वस्तु । लाभ लिया, जिनके विषय में इंडियन एक्सप्रेस, अमृतसर के पूर्व प्रस्तुत कर श्रोताओं को स्वस्थ रहने का प्रशस्त मार्ग दिया। | पत्रकार श्री ऋषभ कुमार जैन ने यथायोग्य जानकारी दी। प्रथम दिन के प्रथम सत्र में डॉ. एस.व्ही.राय (सेवानिवृत्त सायंकालीन सत्र में कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री एच.ओ.डी मेडिकल कॉलेज, भोपाल) ने डायबिटीज के बारे में अजयकुमार, श्री आशीष कुमार एवं श्री ओमप्रकाश भाई (सूरत) बताकर स्वास्थ्य को सही रखने का परामर्श दिया। डॉ. गुरु गोस्वामी ने दीप प्रज्वलन कर कार्यक्रम को गति दी। संचालन कर रही डॉ. एवं श्रीमती अन्नपूर्णा गोस्वामी ने पंचमहाभूत तत्त्व (आकाश, रेखा जैन ने, अतिथियों एवं वक्ताओं का संक्षिप्त परिचय दिया पवन, अग्नि, जल और पृथ्वी) के बारे में बताकर उसी से अपने तदुपरान्त डॉ. मुरलीधर कन्जानी ने 'उपवास के विषय में अनुभव', स्वास्थ्य को सही रखने की जानकारी दी। डॉ. अमृतलाल मूढ़त डॉ. वेदप्रकाश गोयल, मुम्बई ने जीने की कला और योग' श्री (अध्यक्ष-म.प्र.प्रा.चि.बोर्ड) ने अपने आलेखों, भाषणों में अस्थमा ऋषभ कुमार जैन ने श्वासोच्छ्वास का 'प्रदूषण एवं पर्यावरण' डॉ. आदि रोगों और उनकी उपचार शैली पर प्रकाश डाला। श्रीमती अन्नपूर्णा गोस्वामी, रायपुर ने स्त्री रोग के विषय में जानकारी भाग्योदय तीर्थ प्राकृतिक चिकित्सालय, सागर के दी। इस बीच बैतूल से पधारे डॉ. मुरलीधर एवं माता योगमूर्ति ने तत्त्वावधान में त्रिदिवसीय गोष्ठी में संतशिरोमणि प.पू. 108 आचार्यश्री पूज्य आचार्यश्री के चरणों में श्रीफल चढ़ाया। जबलपुर से आमंत्रित विद्यासागर जी मुनि महाराज ससंघ उपस्थित थे। सत्रान्त में उन्होंने युवा डॉ. अमित जैन ने मानवशरीर के जोड़ों पर विषद व्याख्यान वक्ता चिकित्सकों के विषयों पर गंभीरता से विवेचन किया और दिया एवं रेखाचित्र एवं प्रोजेक्टर के सहयोग से जोड़ों के दर्द, उन्हें तथा उपस्थित जनसमूह को आशीर्वाद दिया। कार्यक्रम का सूजन, कार्यक्षमता में कमी आना आदि पर मार्गदर्शन दिया। डॉ. संतुलित संचालन ब्र. बहिन डॉ. रेखा जैन (इन्सपेक्टर) ने किया। अमित की प्रस्तुति एवं वक्तव्य शैली ने एक ओर जहाँ समस्त वे अपनी बारह सदस्यीय टीम सहित गोष्ठी की व्यवस्था में भी वरिष्ठ डॉक्टरों को प्रभावित किया, वहीं पूज्य आचार्यश्री को भी व्यस्त रहीं। फलतः उनके साथ-साथ उनकी टीम की डॉक्टर सोचने पर मजबूर कर दिया। दर्शक तो वाह-वाह करके झूम रहे बहिनों की प्रशंसा स्वाभाविक है। थे, जब अमित जी ने कहा कि मानवशरीर में रक्त संचार की सही द्वितीय सत्र में स्वदेशीय आन्दोलन के अध्यक्ष श्री राजीव गति ही सारी बीमारियों का इलाज करती है, तो लोग उनसे अनेक दीक्षित (पूर्व, एस.आई.आर वैज्ञानिक) ने दीप प्रज्वलन किया। बातों को जानने के लिए प्रश्न पर प्रश्न करने लगे, जिनका समाधान दिल्ली से आए डॉ. महेन्द्र गुप्ता ने 'योग, स्वास्थ्य एवं तनाव के उन्होंने सहजता से दिया, कार्यक्रम के मुख्य आयोजक श्री लिए' विषय पर विचार रखे। तीन शिविरों में लगातार आर्थिक चमनलालजी जैन, दिल्ली ने डॉ. अमित को प्रशस्ति पत्र, दुपट्टा सहयोग करने वाली दिल्ली-निवासी श्री चमनलाल जी जैन एवं एवं प्रतीक चिह्न से सम्मानित किया और फिर मंच पर उपस्थित उनकी पत्नी श्रीमती उषा जैन का सम्मान किया गया। उक्त सभी वक्ताओं को सम्मानित किया गया। गोष्ठी में हर वक्ता के भाषण के बाद श्रोतागण प्रश्न करते कार्यक्रम के अगले चरण में डॉ. निर्मला जी मूढ़त, थे और वक्ता उन्हें समाधान देते थे। रात्रि में डॉक्टरगण शिविर में | रतलाम, डॉ. हर्षद राय त्रिवेदी, नीमच ने मोटापा आदि विषयों पर आये लोगों की परेशानियों का हल बतलाते थे। डॉ. अमरनाथ जैन | प्रेरक विचार रखे। सत्र के अंत में परम पूज्य आचार्यश्री ने समस्त (संचालक-भाग्योदय तीर्थ चिकित्सालय, सागर) हास्ययोग का | वक्ताओं के वक्तव्य पर बारी-बारी से समुचित चर्चा की एवं प्रदर्शन करते थे। जनसामान्य को बतलाया कि जब तक फल और फसल पक ना सत्रान्त में परमपूज्य आचार्य श्री ने अपने उदबोधन में | जावे, तब तक जानकार व्यक्ति उनका सेवन नहीं करते। यही बतलाया कि “शिक्षित और दीक्षित" व्यक्ति युग को आगे बढ़ाने | स्थिति साग-सब्जी के साथ भी है। पुराने समय में आँख का दर्द की योग्यता रखते हैं। "योग और उपयोग" को तब उस दिशा में | बंधन से, पैर का दर्द मर्दन से और पेट का दर्द लंघन से' हटाया ले जाया जाता है जिसका कि प्रशिक्षण प्राप्त किया होता है। जाता था, जो शतप्रतिशत प्राकृतिक क्रिया थी। वह आज भी दूसरे दिन सत्र में डॉ. पन्नालाल वर्मा, डॉ. कन्जानी ने | अपना मूल्य बनाए हुए है। 28 जनवरी 2003 जिनभाषित - दूसर । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524269
Book TitleJinabhashita 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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