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प्रमाद / लापरवाही / असावधानी व्यक्ति के जीवन को नीरस और असफल बना देती है। शरीरिक सुस्ती दवा से और मानसिक सुस्ती स्वपुरुषार्थ से ठीक होती है। यह प्रमाद / सुस्तपन जीवन का बोझ है। इससे व्यक्ति कभी उत्थान नहीं कर पाता। उसे हर समय हर कार्य में उलझन ही लगती है और अन्त में पछतावा हाथ लगता है, ऐसे व्यसन से हमें सदा बचना चाहिये। सजगता, सर्तकता जीवनोत्थान के प्रमुख आधार हैं।
लोभ समस्त सामाजिक/मानसिक एवं वैयक्तिक बुराईयों का भण्डार होता है। लोभ का व्यसनी सद्गुणों से बहुत दूर रहता है। हमें सारे संसार के वैभव को पाने की भावना से एवं भोजनादि की अति लिप्सा से अपने को दूर रखकर जीवन के उत्थान की दिशा में सोचना है। लोभ ऐसा व्यसन है, जिसके अनेक बीभत्स रूप हैं इस बुराई को अपने मस्तिष्क में न आने दें। अपेक्षायें हमारे जीवन को तनाव, निराशा, झूठे,
दंभ नीरसता से दूषित कर हमारा समाजिक स्तर नीचे गिरा देती हैं । प्रत्येक व्यक्ति अपेक्षाओं के मकड़जाल में जीता है। यदि उसकी अपेक्षायें पूरी नहीं होती तो वह अपने को अपाहिज / अपंग या अधूरा मानकर निराशा के गर्त में चला जाता है। दान, पूजा, स्तवन आदि
रजवाँस (सागर) म.प्र.
चमत्कारों से युक्त जैन मंदिर जतारा का भौंयरा जी
प्रकाश जैन 'रोशन'
छठवीं सातवीं शताब्दी में स्थापित तंत्र, मंत्र, यंत्र की सिद्धि मंत्रघटा, जंत्रघाटी, सलीमाबाद, जयतारा आदि नामों से अलंकृत जतारा के जैन मंदिर का भयरा श्री पपौरा, अहार, बँधा एवं पवा जी आदि क्षेत्रों के समान अतिशय एवं चमत्कारी है । मन्दिर की ऐतिहासिकता के बारे में कहा जाता है कि राजा जय शक्ति जो जिन सिद्धान्तों का पालन करता था जिसकी मृत्यु 857 में हुई थी, के समय जैन मन्दिर के भोंयरे की भव्य प्रतिमायें प्रतिष्ठित हुई थीं। भौंयरे की भव्य प्रतिमाओं का निर्माण कब का है, ज्ञात नहीं है। मूलनायक भगवान् पार्श्वनाथ के जिनालय का मूल श्रोत प्राचीन भोयरा (तलघर) है जिससे लगी हुई चारों ओर की वेदियाँ मन्दिर को शोभायमान करती हैं। इस भूगर्भ की महत्ता के बारे में उल्लेखनीय है कि इस भौंयरे में दो शिलालेख हैं पहला शिलालेख संवत् 1153 के उल्लेख के साथ निसाव के पत्थर पर है, जबकि इसी स्थान पर दूसरा शिलालेख प्रतिमा के नीचे लगा सन् 1421 का है। प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रथ्वी वर्मा का पुत्र | मदन वर्मा सन् 1130 से 1165 तक यहाँ का शासक रहा है। मंदिर के द्वितीय जिनालय का निर्माण भी इसी समय का है। मंदिर के अन्य जिनालय इसी दशक में हुये पंच कल्याणकों के दौरान निर्मित हुये हैं
इस तरह एक परकोटा के भीतर स्थित चार जिनालयों में विभक्त भट्ट जैन मन्दिर दो गंध कुटी, दो स्वाध्याय सदन एवं अतिशय युक्त भौंयरे के साथ धार्मिक स्थल की महत्ता को स्वत:
महान कार्य भी अपेक्षाओं के चलते दूषित हो जाते हैं।
तनाव हमारी जीवन शक्ति को नष्ट कर देता है। मानवीय रिश्तों को असंतुलित कर देता है। तनाव हमारे जीवन को घुन की तरह लग जाता है, जो हमारे तन-मन को क्षीण करता है । वस्तुस्थिति की समीक्षा करें, तो पता चलता है कि तनाव गलत सोच है, जो बिना आधार के जीवन को खोखला बनाता है। तनाव से ही गंभीर रोग हो जाते हैं, जिससे हमारा अंत हो जाता है। अतः हम वस्तु के स्वभाव को समझकर अपने सोच को सकरात्मक बनावें, जिससे हमें और समाज को नई दिशा मिल सके।
ये ऐसे व्यसन हैं जिनकी तरफ हमारा ध्यान हीं नहीं जाता ये ही हमारे पतन के कारण हैं। इन्हें अपने अन्दर न पनपने दें। और आने वाली पीढ़ी को भी यही मार्गदर्शन दें कि मानसिक व्यसन ही हमारी दिशा और दशा के जिम्मेदार हैं, ये जीवन को निराशा एवं पतन की ओर ले जाते हैं। इनसे बचने के लिये सकारात्मक सोच के साथ समता, संयम और साधना की त्रिवेणी में गोते लगाने पड़ेंगे।
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ही उजागर कर देता है।
इस अतिशय क्षेत्र की अनेक जैन संतों ने चमत्कारी भी बताया है। ऐसा माना जाता है कि श्री नेमिनाथ जिनालय में विराजमान भगवान् नेमिनाथ की प्रतिमा के दायें हाथ में अंगूठा के पास से आतताइयों ने मूर्तिभंजन का प्रयास किया किन्तु उन्हें सफलता नहीं मिली। छैनी के निशान अभी भी विद्यमान हैं, क्षेत्रीय भौंयरे जी में देवों द्वारा किये गये नृत्य गायन भजन, कीर्तन एवं पूजन की क्रियायें जतारा के अनेक श्रावकों ने सुनी हैं ।
क्षेत्र के अंतर्गत स्थानीय समाज की एक प्रबन्ध कारिणी समिति के अलावा जैन नवयुवक संघ, जैन महिला समिति, जैन महासमिति आदि अनेक सामाजिक संस्थायें हैं जो क्षेत्र की व्यवस्था एवं विकास का कार्य करती हैं। वर्तमान में परम पूज्य मुनि श्री विमर्शसागर महाराज इसी क्षेत्र की महान् विभूति हैं। देश के महान आध्यात्मिक संत श्री गणेश प्रसाद वर्णी यहीं से प्रेरणा पाकर आगे बढ़े हैं जबकि अन्य विद्वानों में श्री पं. मोतीलाल वर्णी, कड़ोरे लाल भायजी, स्वरूप चंद वनपुरिया, पं. मौजीलाल जैन अट्टार आदि विद्वान आध्यात्मिकता के क्षेत्र में अग्रेषित हुये हैं
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मंत्री- दि. जैन समाज एवं दि. जैन महासमिति जतारा, जिला टीकमगढ़ (म.प्र.) फोन - 54223
-जनवरी 2003 जिनभाषित 21
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