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________________ यदि गाय माता है तो उसे काटते हो क्यों? ____ डॉ. सुरेन्द्र कुमार जैन 'भारती' गाय संसार का सबसे निरीह प्राणी है जिसे पशु जाति की । अर्थात्- मेरे आगे गायें रहें, पीछे गायें रहें, मेरे हृदय में अपेक्षा तो पशु कह सकते हैं किन्तु जब उसका वात्सल्य देखते हैं तो लगता है कि वह मानव जननी से कम नहीं है। प्रीति को श्रीकृष्ण श्रेष्ठ गोपालक के रूप में आज भी श्रद्धास्पद हैं। परिभाषित करना हो तो गाय और बछड़े की मिसाल सामने रखनी आज पाठ्यपुस्तकों में गाय को मांस देने वाला पशु या गाय से ही पड़ती है। गाय के स्थान पर भैंस को नहीं रखा जा सकता यह मांस मिलता है; पढ़ाया जाने लगा है जो उसकी अहिंसक वृत्ति से एक उदाहरण से स्पष्ट है। एक बार गाय का 'बछड़ा' दौड़ते- अन्याय है। माँ के मरने पर शिशु की क्षुधा को शान्त करने वाला दौड़ते आया और कुएँ में गिर गया जब गाय ने उसके (भाने का जब कोई नहीं था तब गाय ने आगे आकर अपना दूध प्रस्तुत किया स्वर सुना तो वह भी रस्सी तुड़ाकर भागी और उसी कुएँ में गिर और जीवनदान दिया। आज संसार में ऐसे लाखों मनुष्यों की गयी किन्तु जब यही स्थिति भैंस के साथ घटित हुई कि उसका संख्या है जिन्हें माँ का दूध पीने का सौभाग्य नहीं मिला, जो गाय 'पाड़ा' कुएँ में गिरा तो वह उसे बचाने के लिए कुएँ में गिरने की का दूध पीकर ही पले-बढ़े और संसार में गाय के दूध से जीवन बजाय कुएँ की जगत पर खड़ी-खड़ी टर्राती रही। वात्सल्य की दान पाकर सुख भोग रहे हैं। उसी जननी तुल्य गाय का ऐसा प्रतिमूर्ति गाय पुत्र और माता के स्नेह, वात्सल्य, प्रीति का आधार अनादर कि उसे दुग्ध विहीन होने पर मांस के लिए काट दिया बन गयी। गाय को कृषि प्रधान भारत देश में प्रमुख धन माना गया जाय? आचार्य अमितगति ने 'श्रावकाचार' में गाय की रक्षा को है यथा- "गोभिर्न तुल्यं धनमस्ति किंचित्" और हो भी क्यों न | पुण्य कर्म माना हैउसके समान पवित्र विचार, दान की पूंजी किसके पास है? लोक गो-बालब्राह्मण-स्त्री पुण्यभागी यदीष्यते। में यह नीति प्रसिद्ध है कि "तृणं भुक्त्या पयः सूते कोऽन्यो धेनुसम: सर्वप्राणिगणत्रायी नितरां न तदा कथम्।।11/3 शुचिः।" अर्थात् आश्चर्य है कि तिनके चबाकर दूध उत्पन्न करने यदि गौ (गाय), ब्राह्मण, बालक और स्त्री की रक्षा करने वाली गाय के समान और कौन पवित्र है? महाभारत में भी कथन वाला पुण्य भागी है तो जिसने सम्पूर्ण प्राणी समूह की रक्षा का व्रत आया है कि "मातरः सर्व भूतानां सर्व सुख प्रदा:" अर्थात् गाय लिया है वह उससे विशिष्ट क्यों नहीं अर्थात् वह विशिष्ट ही है। सभी प्राणियों की माता एवं सभी को सुखप्रदान करने वाली है। | आज गाय से प्राप्त पदार्थों को रोग नाशक मानकर 'काऊयह मनुष्य की ही अधमता है जो ऐसी गायों को दूध के स्थान पर थैरेपी' बनायी गयी है जिससे कैंसर जैसे असाध्य रोग भी ठीक मांस पाने के लिए काट डालता है। हिन्दुओं में गाय को मातृ तुल्य होने लगे हैं। डॉ. गौरीशंकर जे. माहेश्वरी के अनुसार 'काऊमानकर पूजा जाता है जिससे विधर्मी-कसाई गाय के प्रति विरोध थैरेपी' से मधुमेह, गुर्दा, हृदय और कैंसर जैसी बीमारियों पर काबू रखते हैं और जब उसे काटते हैं तो सर्वप्रथम लात से प्रहार से किया जा सकता है। गाय के दूध से निर्मित घी से गठिया का उसका अपमान करते हैं फिर काटते हैं। कटते समय भी गाय के उपचार किया जाता है। गाय का घी लगाने से नेत्रविकार, कुष्ठ रंभाने की ध्वनि (चीत्कार) निकलती है मानो अपने पुत्रों को और जलने के रोगों में लाभ होता है। गाय के दूध में वसा कम प्राणरक्षा के लिए बुला रही हो। होने से कोलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता तथा उसमें 'केरोटिन' होने से भारतीय संस्कृति में गाय की प्रतिष्ठा उसकी निरीहता, कैंसर नहीं होता। दिल के मरीजों के लिए गाय का दूध अमृत के चरने का स्वभाव, दुग्ध-दान वात्सल्य और बछड़े उत्पन्न करने के | समान है। यूरोपीय चिकित्सकों ने गाय के दूध से तपेदिक की कारण है। गाय का दूध पथ्य होता है एवं घी अमृत तुल्य माना चिकित्सा की है। गाय के दूध से मानव शरीर की प्रोटीन और गया है। बछड़े बड़े होकर बैल बनकर खेती के काम आते हैं। | कार्बोहाइड्रेट की पूर्ति तो होती ही है साथ ही रोग-प्रतिरोधी खेतों को बीजवपन से पूर्व हल चलाकर नरम बनाया जाता है यह | क्षमता भी बढ़ती है। गाय के इतने उपकार होने पर भी देश के कार्य बिना बैलों की सहायता के नहीं होता था आज भले ही कत्लखानों में प्रतिदिन लगभग 50,000 गायों की नृशंस हत्या कर ट्रेक्टर जैसे यंत्र उपलब्ध हैं किन्तु वे भी बैलों जैसे उपयोगी नहीं | दी जाती है। भारत जैसे अहिंसक देश के लिए यह कलंक की हो सकते। क्योंकि बैल खेतों में मात्र कार्य ही नहीं करते थे बल्कि | बात है। एक गाय को काटकर मांस, रक्त, हड्डी, चर्बी आदि बेचने उनका मल-मूत्र विसर्जित कर खाद भी प्रदान करते थे। इसलिए | से लगभग 20,000 रुपये की आय में ही दूध पिलाया जाता है। तो कामना की गयी कि उदाहरण के लिए एक देशी गाय के 4 स्तनों में से दो स्तनों का ही गावो में अग्रतः सन्तु गावो में सन्तु पृष्ठतः। दूध बछड़े को पिलाया जाता है शेष दो स्तनों का दूध दुह लिया गावो में हृदये सन्तु गवां मध्ये वसाम्यहम्॥ जाता है जो मनुष्यों-बालकों के पीने के काम आता है। आयुर्वेद 18 जनवरी 2003 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524269
Book TitleJinabhashita 2003 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2003
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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