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________________ भोपाल में जैन ग्रन्थों की नकल पर विवाद काम तो अच्छा है, पर नीयत ठीक नहीं लगती प्राचार्य नरेन्द्रप्रकाश जैन, सम्पादक- 'जैन गजट' भावनगर (सौराष्ट्र) के श्री सत्श्रुत प्रभावना ट्रस्ट ने गत | में मुनिभक्त अध्यक्ष एवं मुमुक्षु उपाध्यक्ष की मौखिक अनुमति तीन वर्षों से प्राचीन जैन ग्रन्थों और पाण्डुलिपियों के सूचीकरण | लेकर इन्होंने गत 25 सितम्बर को सूचीकरण का कार्य शुरू किया का कार्य अपने हाथ में लिया हुआ है। अब तक महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, | और अगले ही दिन मन्दिर में किसी भक्त या कार्यकर्ता को न राजस्थान और उत्तरप्रदेश में स्थित 81 मन्दिरों के लगभग 35000 | पाकर कुछ ग्रन्थों की लेपटॉप और स्केनर की सहायता से फोटो ग्रन्थों की सूचियाँ बनाई जा चुकी हैं। 31 मार्च 2003 तक की | कापी करते हुए पकड़े गए। इसके लिए न तो इन्होंने अनुमति ली समयावधि में इस कार्य को पूरा कर लेने की ट्रस्ट की योजना है। | थी और न किसी ने इन्हें अनुमति दी थी। यह कार्य कपटपूर्वक यह एक अति व्ययसाध्य प्रोजेक्ट है। ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री हीरालालजी | किया जा रहा था। के अनुसार अब तक बारह लाख रुपया खर्च हो चुका है। सम्प्रति । सूचीकरण के साथ ही इन्होंने ग्रन्थों पर अपनी संस्था की प्रति माह 50,000 रुपयों का व्यय हो रहा है। इस तकनीकी कार्य | सील लगाई तथा संस्था (ट्रस्ट) के नाम के टेग (लेबिल) भी को सम्पन्न करने के लिए डॉ. देवेन्द्रकुमार शास्त्री (नीमच) को लगाए। (यद्यपि दि. 26 सितम्बर को जारी की गई एक प्रेस भारी वेतन पर नियुक्त किया गया है। सहयोग के लिए तीन-चार | विज्ञप्ति में डॉ. देवेन्द्रकुमारजी ने इससे इनकार किया है, लेकिन सहायक भी उन्हें दिये गए हैं। सुना है कि इस योजना की पूर्ति के | भोपाल से प्रकाशित 'दैनिक भास्कर के दिनांक 1 एवं 2 अक्टूबर लिए स्व. सेठ शशि भाई ने एक बड़ी निधि ट्रस्ट को दानस्वरूप | के अंकों में इसकी पुष्टि की गई है।) डॉ. सा. के दो सहयोगी प्रदान की थी। विद्वानों पं. प्रभातकुमार एवं पं. सुधाकर जैन ने पकड़े जाने पर यह कौन कहेगा कि यह कार्य अच्छा नहीं है। पहली बार समाज से लिखित क्षमायाचना करते हुए यह स्वीकार भी किया है इतने बड़े पैमाने पर इस तरह का नेक कार्य हो रहा है। इससे भारत | कि उनका यह कृत्य अनाधिकृत एवं अवैधानिक था। शास्त्रों पर के सभी जैन मंदिरों में उपलब्ध जैन ग्रन्थों की तालिकाएँ तैयार हो ट्रस्ट के टेग लगाने तथा ट्रस्ट की प्रिण्ट सूची पर इन ग्रन्थों के सकेंगी तथा शोधार्थी उनका लाभ उठा सकेंगे। इसी बहाने मन्दिरों | रिकार्ड बनाने की बात भी उन्होंने मंजूर की है। नीयत ठीक न के शास्त्र भण्डारों को व्यवस्थित भी किया जा सकता है। इतना होने पर अब और क्या सबूत चाहिए। अच्छा कार्य करते हुए भी यदि लोग उसे सन्देह की दृष्टि से भोपाल के मुनिभक्तों में इस घटना को लेकर उबाल है। देखते हैं तो इसके पीछे कुछ कारण तो होने ही चाहिए। प्रारंभ | गत 30 सितम्बर, सोमवार को समाज की एक बैठक भी हुई थी, में (श्रुतपंचमी/जून '99 से लगभग डेढ़ वर्ष तक) इन्दौर की | जिसमें लगभग दो हजार धर्मानुरागी तथा अन्य मन्दिरों के अध्यक्ष लोकप्रिय संस्था 'कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ' की भी इस कार्य में सहभागिता | (सर्वश्री रमेशचन्द्र मनया, पी.पी.जैन, श्रीपाल जैन 'दिवा' आदि) रही, किन्तु बाद में उसने स्वयं को इनसे पृथक् कर लिया। क्यों? | उपस्थित थे। मुनि संघ सेवा समिति के अध्यक्ष श्री अमरचंद कारण शायद यही रहा कि सत्श्रुत प्रभावना ट्रस्ट की छवि समाज अजमेरा तथा महामन्त्री श्री नरेन्द्र वन्दना ने ट्रस्ट के इन वेतनभोगी में एक एकान्तपोषक संस्था के रूप में रही है। यह वही संस्था है, | विद्वानों द्वारा ग्रन्थों के साथ की गई छेड़छाड़ की जानकारी दी। जिसने सर्वश्री निहालचन्द्र सोगानी, कहानजीस्वामी, शशिप्रभु, श्रीमद् सभा में एकमत से इस अवांछनीय कृत्य की निन्दा की गई। राजचन्द्र एवं चम्पा बहन की मूर्तियाँ ध्यान-मुद्रा में एक ऐसे जब कुन्दकुन्द ज्ञानपीठ इनके साथ सहयोग कर रही थी, अन्दाज में स्थापित की हैं कि लोगों को इनके संन्यासी (अथवा | तब ग्रन्थों पर लगाए जाने वाले टेगों पर लिखा रहता था-'जैन आधुनिक पंच परमेष्ठी) होने का भ्रम हो । ट्रस्ट के मुखपत्र 'स्वानुभूति | साहित्य सूचीकरण परियोजना'। टेग पर ट्रस्ट और ज्ञानपीठ का प्रकाश' में छपे इस चित्र की पिछले दिनों तक चर्चा रही है। | नाम नहीं रहता था। यह सही भी था। ज्ञानपीठ के हटते ही टेगों व्यक्ति-पूजा की इस प्रवृत्ति ने धर्मभीरु लोगों के मन में सन्देह की भाषा बदल गई। अब उन पर लिखा हुआ है- 'सत्श्रुत के बीज बोए हैं। प्रभावना ट्रस्ट के सौजन्य से' इस बदलाव के पीछे दुराशय तो. सोनगढ़-विचारधारा की संस्थाएँ अच्छा कार्य भी करती झलक ही रहा है। इन तथाकथित वीतरागविज्ञानियों की यह फितरत हैं, तो भी विवाद के घेरे में आ जाती हैं। उसका कारण अतीत के | रही है कि वे पहले से ही भविष्य के मंसूबे बनाकर काम करते हैं। अनुभव ही हैं। इनके अच्छे-से-अच्छे कार्यों में भी कुछ छल | दस-बीस साल बाद यदि ट्रस्ट यह दावा करे कि भारत के तो रहता ही है। भोपाल में चौक बाजार में स्थित पंचायती मन्दिरजी | सभी जैन मन्दिरों में सुरक्षित साहित्य का रख-रखाव वही -अक्टूबर-नवम्बर 2002 जिनभाषित 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524267
Book TitleJinabhashita 2002 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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