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________________ परन्तु सल्लेखना में इन सभी बातों का सर्वथा अभाव है। रूप में स्वीकार कर उसका अवलम्बन किया है। जैन दर्शन में इसे सल्लेखना में न किसी प्रकार का राग-द्वेष, न इष्टानिष्ट बुद्धि | मृत्यु महोत्सव के रूप में देखा जाता है। और न ही कोई शल्य ही है, प्रत्युत्त निरपेक्ष वीतराग विशुद्ध किसी भी दर्शन के अंतरंग भावों का ज्ञान होने के बाद ही परिणाम है। इन तथ्यों से स्वतः स्पष्ट है कि सल्लेखना समाधिमरण इस तरह के प्रश्न चिह्न लगाने की कोशिश करना चाहिये। यहाँ है, आत्मघात करना नहीं है, बल्कि साम्य भावों से अंतिम विदाई | यह द्रष्टव्य है कि राजा राम मोहन राय ने सती प्रथा पर रोक लगाई है। यह अकाल मरण भी नहीं है, अपितु समता का जीवन जीना | थी। सल्लेखना उस काल में भी होती थी। उन्होंने इस मामले में है जब तक जियें निर्मल भावों के साथ जियें। यह अंतिम यात्रा की किसी तरह का विरोध नहीं किया। वह जानते थे कि इसमें सती पूर्व तैयारी है। मेरी सफल पावन यात्रा हो इस उद्देश्य को लेकर | प्रथा जैसी प्रक्रिया नहीं है, जिस पर प्रश्न खड़ा किया जाए। साधक अपनी साधना के फल के रूप में सल्लेखना स्वीकारता है। आवश्यकता इस बात की है कि हम सत्य को समझकर इसका फल परम निर्वाण अर्थात मोक्ष सुख है। अपनी बुद्धि और विवेक का विकास करें तथा भावना भाएँ कि सल्लेखना जैसे पावन अहिंसा परिणामों को आत्महत्या का | अंतिम मरण हमारा सल्लेखनापूर्वक हो। किसी भी धार्मिक भावना रूप देना अपनी अल्पज्ञता का प्रकटीकरण है। आत्महत्या भावुकता | को नष्ट करने की कुचेष्टा भारतीय संविधान के विपरीत है। धर्मनिरपेक्ष एवं कषायजन्य परिणति का परिणाम है। क्षमाभावपूर्वक साम्य | राष्ट्र में एक बनें और अपनी संगठन शक्ति को बढाएँ। अंतिम स्वभाव में लीन हो जाना ही सल्लेखना है। जैन दर्शन के अलावा | लक्ष्य हमारा यह हो कि प्रभु की आराधना और आत्म साधना के अन्य चिंतकों ने भी सल्लेखना को उत्तम और आवश्यक साधना के | साथ सल्लेखनापूर्वक मरण हो। प्राचार्य पं. नरेन्द्र प्रकाश जी जैन का अखिल । फिरोजाबाद में तत्त्वार्थसूत्र पर विद्वत्संगोष्ठी भारतीय अभिनन्दन होगा सम्पन्न विगत माह कोलकाता में देश के कोने-कोने से समागत __“जैन मुनि वर्षायोग प्रभावना समिति फिरोजाबाद प्रतिनिधि महानुभावों की एक महत्त्वपूर्ण सभा में जिसकी | (उ.प्र.)" द्वारा परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी के सुयोग्य अध्यक्षता श्री निर्मलकुमार सेठी ने की, निश्चय किया गया कि | शिष्य पूज्य मुनि श्री समता सागर जी, पूज्य मुनि श्री प्रमाणसागर जैन जगत् के मूर्धन्य मनीषी, यशस्वी प्रवक्ता, अखिल भारतवर्षीय | जी एवं पूज्य एलक श्री निश्चयसागर जी की आशीष-छाया में दि. जैन शास्त्री परिषद् के कर्मठ अध्यक्ष तथा 'जैन गजट' आयोजित त्रिदिवसीय संगोष्ठी 12,13, एवं 14 अक्टूबर 2002 (साप्ताहिक) के प्रधान सम्पादक माननीय पण्डितप्रवर प्राचार्य को स्व. सेठ छदामीलाल जैन ट्रस्ट के अन्तर्गत श्री महावीर नरेन्द्र प्रकाश जी जैन, फिरोजाबाद का अखिल भारतीय अभिनन्दन जिनालय फिरोजाबाद में अत्यन्त सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई। भव्य समारोहपूर्वक यथाशीघ्र आयोजित किया जाये और इस संगोष्ठी में निम्नलिखित विद्वानों ने तत्त्वार्थसूत्र के विभिन्न अवसर पर उनके व्यक्तित्व और कर्तृत्व पर आधारित एक भव्य पक्षों पर अपने विद्वत्तापूर्ण शोध आलेखों का वाचन किया: अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित कर समर्पित किया जावे। सर्वश्री प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जी फिरोजाबाद, प्रो. रतनचन्द्र जी भोपाल, पं. शिवचरणलाल जी मैनपुरी, पं. मूलचन्द्र जी लुहाड़िया, आयोजन के सुव्यवस्थापन हेतु अखिल भारतीय समिति पं. रतनलाल जी बैनाड़ा, डॉ. शीतलचन्द्र जी जयपुर, डॉ. एवं सम्पादक मण्डल का गठन भी किया गया है। श्रेयांसकुमार जी बड़ौत, डॉ. जयकुमार जी मुजफ्फरनगर, पं. माननीय प्राचार्य नरेन्द्र प्रकाश जी विश्रुत मनीषी, निहाल चन्द्र जी बीना, डॉ. अशोककुमार जी लाडनूँ, डॉ. सुरेन्द्र ओजस्वी, वक्ता, यशस्वी प्रशासक और प्रख्यात लेखक हैं। कुमार जी 'भारती' बुरहानपुर, प्रो. अजित कुमार जी विदिशा, उनकी रचनाधर्मिता से आप सभी सुपरिचित हैं। डॉ. अशोक कुमार जी ग्वालियर, डॉ. के.एल. जैन, टीकमगढ़, अतः सभी मानवीय विद्वानों, संस्था-प्रमुखों, साहित्यकारों डॉ. श्रीमती नीलम जैन गाजियाबाद, डॉ. विमला जैन फिरोजाबाद, एवं समाज बन्धुओं से सादर अनुरोध है कि-पण्डितप्रवर प्राचार्य डॉ. अंजु जैन फिरोजाबाद, डॉ. रश्मि जैन फिरोजाबाद एवं श्री नरेन्द्र प्रकाश जी को समर्पित किये जाने वाले अभिनन्दन ग्रन्थ मनोज जैन निर्लिप्त अलीगढ़। में प्रकाशनार्थ प्राचार्य जी से सम्बन्धित अपनी रचनाएँ, । प्रत्येक सत्र में पठित आलेखों की मुनि श्री समतासागर आलेख/काव्य-सुमनांजलि/संस्मरण निम्न पते पर यथाशीघ्र भेजने जी एवं प्रमाण सागर जी द्वारा विद्वत्तापूर्ण समीक्षा की जाती थी, की कृपा करें। यदि आपके संग्रह में उनसे सम्बन्धित किसी जिससे शोधालेखकों को नई-नई जानकारियाँ प्राप्त हुई और विशेष प्रसंग का कोई चित्र हो तो उसे भी भेजने का कष्ट करें। उन्होंने अपने आलेखों को पारिमार्जित और परिवर्धित किया। प्रोफेसर डा. भागचन्द्र जैन 'भागेन्दु' अनूपचन्द्र जैन, एडवोकेट 28, सरस्वती कालोनी, दमोह (म.प्र.) 470661 फिरोजाबाद - अक्टूबर-नवम्बर 2002 जिनभाषित १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524267
Book TitleJinabhashita 2002 10 11
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages40
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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