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________________ जिणचरणकमलपुरओ कुणिज्जरयणं सुभत्तीए 1437॥| अर्थ- जो मन्द-मन्द पवन झकोरों से नृत्य करते हुए, कालायरु-णह-चंदह-कप्यूर सिल्हारसाइदव्वेहि। । कर्पूर और घृत-तैल से प्रज्वलित दीपकों से जिनदेव के चरण णिप्पणधूमवत्तीहिं परिमलय त्तियालीहिं ।।438 ।। कमलों की पूजा करता है वह चन्द्र और सूर्य के समान प्रकाशमान उग्गसिहादेसियसग्ग-मोक्खमग्गेहि बहलधूमेहं। शरीर को प्राप्त करता है ।। 126 ।। जिसमें से प्रचुर धूम्र निकल रहा धूविज्जजिणिंदपयारविंदजुयलं सुरिंदणुयं ॥439॥ है ऐसे शिलारस (शिलाजीत) अगुरु आदि द्रव्यों से मिश्रित धूप से अर्थ-अपने प्रभासमूह से अमित (अगणित) सूर्यों के | जिनेन्द्र देव के चरणों को सुगन्धित करता है वह तीन लोक में समान तेजवाले, अथवा अपने प्रभा पुंज से सूर्य के तेज को भी | परम सौभाग्य को प्राप्त करता है। ॥ 127 ।। तिरस्कृत या निराकृत करने वाले, धूम रहित, तथा धीरे-धीरे 5. श्री कविवर किशनसिंह विरचित क्रियाकोष में गाथा चलती हुई मन्द वायु के वश नाचती हुई शिखाओं वाले और मेघ- 1446, पृष्ठ 228 पर इस प्रकार लिखा है:पटल रूप कर्म समूह के समान दूर भगाया है अन्धकार को अपराह्न भविकजन करिह एव, दीपहि चढ़ाय बहु धूप खेव। जिन्होंने ऐसे दीपकों से परमभक्ति के साथ जिन-चरण कमलों के इहि विधि पूजा करि तीन काल, शुभ कंठ उचारिय जयह माल ॥1446 ।। आगे पूजन की रचना करें, अर्थात् दीप से पूजन करें। 436 अर्थ- अपराह्न काल में दीपक चढ़ाकर तथा धूप खेकर 437॥ पूजा करें। इस प्रकार तीनों समय पूजा कर कण्ठ से जयमाला का कालागुरु, अम्बर, चन्द्रक, कर्पूर, शिलारस (शिलाजीत) | उच्चारण करें 1446॥ आदि सुगंधित द्रव्यों से बनी हुई, सुगन्ध से लुब्ध होकर भ्रमर आ रहे 6. श्री धवल पु. 8/3 में लिखा है "चरु बलि-पुष्फहैं, तथा जिसकी ऊँची शिखा मानो स्वर्ग और मोक्ष का मार्ग ही दिखा | | फल-गंध धूव दीवादीहि सगभत्ति पगासो अच्चणा णाम-चरु, बलि, रही हैं और जिसमें से बहुत सा धुंआ निकल रहा है, ऐसी धूप की | पुष्प, फल, गन्ध, धूप और दीप आदिकों से अपनी भक्ति प्रकाशित बत्तियों से देवेन्द्रों से पूजित श्री जिनेन्द्र के पादारबिन्द युगल को करने का नाम अर्चना है। धूपित करें, अर्थात् उक्त प्रकार की धूप से पूजन करें। 438-439 ।। उपर्युक्त प्रमाणों से यह स्पष्ट है कि जैन शास्त्रों में दीप 4.श्रीदेवसेनविरचित प्राकृत भावसंग्रह गाथा 126,127 पेज | जलाने और धूप खेने के प्रचुर प्रमाण हैं। इतना अवश्य है कि हमें नं. 451 पर लिखा है: विवेक सहित ये कार्य करने चाहिए। अर्थात् धूप अथवा दीपक या कप्पूरतलपयलियमंदमरुपहयणडियदीवहिं । घी, बाजार से खरीदा हुआ न होकर मर्यादित होना चाहिए। आरती पुज्जइ जिणपयपोमं ससिसूर विसमतणुंलहई 126॥ | करने का समय सूर्यास्त के लगभग का है। रात्रि में आरती नहीं सिल्ला रसअयरुमीसियणिग्गयधूवेहिं बहलधूमेहिं। करनी चाहिए। दीप में घी भी इतना ही लेना चाहिए जो आरती धूवइ जो जिणचरणेसु लहइ सुहवत्तणं तिजए। 127॥ | होने तक के लिए पर्याप्त हो। जैन प्रत्याशियों का लोक सेवा अयोग द्वारा चयन विगत दिनों संघ लोक सेवा आयोग के द्वारा सिविल | इनके अतिरिक्त कुछ चयनित प्रतियोगी ऐसे भी हैं जिनके सर्विसेज (मेन) एक्जामिनेशन 2001 का फाइनल रिजल्ट घोषित | नाम के साथ अग्रवाल जातीय होने से अग्रवाल अथवा अग्रवाल किया गया था। जातीय गोत्र-मित्तल, जिंदल, गर्ग, बंसल या गोयल उपनाम जैन समाज के लिए यह गौरव का विषय है कि सामान्य | जुड़ा है तो किसी के नाम के साथ पुंगलिया,शाह, चौधरी, वर्ग से चयनित लोगों में से 6 प्रतियोगी वे भी चयनित हुए हैं, | नायक, लोहिया, कौशल, पाटिल, मोदी, सेठी, लाखावत एवं जिनके नाम जैन के रूप में लिखा/पहचाना जा सका है। संभव है | कोठारी आदि उपनाम युक्त लिखा होने से लगभग 20-25 इनके अतिरिक्त भी अन्य भी प्रतियोगी जैन हों, जिन्हें उपनाम के | प्रतियोगियों के जैन होने की आंशिक संभावना भी है, क्योंकि कारण पहचाना नहीं जा सका। चयनित जैन प्रतियोगियों के नाम, | इनमें से कुछ उपनाम जैन कुलों में भी लिखे जाते हैं । उक्त छह उनकी रेंक के साथ निम्न प्रकार हैं में से प्रथम दो का चयन आई.ए.एस. पद के लिये होगा, ऐसा 1. अभिषेक जैन-3, 2. सौरभ जेन-29, 3. संजय कुमार | सुनिश्चित है। जैन-37, 4. एकता जैन-110, 5. वैभव बजाज-198 एवं 6. ने जिन-भाषित परिवार एवं पाठकगणों की ओर से चयनित जैन-2021 | प्रत्याशियों को उनकी सफलता के लिए साधुवाद । -अगस्त 2002 जिनभाषित 23 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524265
Book TitleJinabhashita 2002 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size6 MB
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