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________________ (पीठ के बल साँस छोड़कर तथा पेट के बल साँस भरकर) । (मोटापे से ग्रस्त रोगी हो तो केवल उबली सब्जी)। शशांकासन, गोमुखासन, पश्चिमोत्तासन, कोणासन, मत्स्यासन व | 9.00 बजे- एक गिलास गर्म पानी लें। शवासन। परहेज भोजन तालिका 1. दमे के रोगी को चाय, कॉफी, मदिरा-पान, बीडी, 1. सर्वप्रथम एक सप्ताह नीबू-गुड़ पानी पर उपवास कराते हैं। तम्बाकू, गर्म मसाले, तला-भुना भोजन, अण्डा, मांस, मछली, 2. दूसरे सप्ताह फलों के रस पर रखते हैं साथ ही दिन में | मिर्च एवं दही से बचना चाहिए। दो बार फल व सलाद देते हैं। 2. मानसिक उद्वेग तथा चिन्ता से मुक्त रहना चाहिए। - इसके बाद - 5/6 बजे प्रातः-नीबू +गुड़+गर्मपानी 9:30 3. धूल, धुंआ, दुर्गन्ध तथा गंदगी से दूर रहें। बजे, मौसमानुसार फलों/सब्जियों का रस। 4. मौसम परिवर्तन के समय सावधान रहें तथा शरीर की 11.30 बजे - सलाद+उबली सब्जियाँ + चोकर सहित आटे की | मौसमानुसार रक्षा करें। चपाती + अंकुरित अन्न। 5. शारीरिक श्रम या दौड़-भाग में अतिरेक न करें। 2.00 बजे - रसदार फल या फलों का रस एक गिलास। 6. बहुत गर्म या बहुत ठंडा न खाएँ। 4.30 बजे - एक गिलास हरी सब्जियों व पालक आदि का सूप, 7. स्नान भी बहुत ठंडे या बहुत गर्म पानी से न करें। शरीर जिसमें सोंठ व तुलसी के पत्ते भी हों। के समान ताप का हल्का गर्म पानी ठीक होता है। 6.00 बजे- सलाद+चपाती+उबली सब्जी+अंकुरित अन्न भाग्योदय तीर्थ प्राकृतिक चिकित्सालय सागर हाशिये की उम्र पीकर अशोक शर्मा एक कविता या कहानी क्या लिखे बोलो जवानी? त्रासदी इन पुस्तकों में आ गई कितनी भयानक हाशिये की उम्र पीकर जी रहे सारे कथानक प्रस्तावना पहले चरण में हो गई इतनी सयानी। कौन जाने और कितनी कौन टूटेगी व्यवस्था हास्य से ज्यादा नहीं है आज नायक की अवस्था विदूषकों की चरित गाथा हो गई इतनी लुभानी आज चारों ओर सबके है घिरा केवल अँधेरा बीन पर नागिन नचाता हर कोई लगता सपेरा जोड़ बाकी की कथाएँ याद हैं सबको जुबानी अभ्युदय निवास 36 बी, मैत्री विहार सुपेला, भिलाई (दुर्ग)- 490023 राजुल-गीत श्रीपाल जैन 'दिवा' सखी री दुपहर शाम हुई। सखी री दुपहर शाम हुई। कर्मकालिमा या पुण्योदय, मैं तो छुई मुई। कंचन-काया भाव-भवन पर, कब अभिराम हुई। छवि का गौरव सूर्य बुझा पर, आतम चमक हुई। यही शाम सच्चा सूरज बन, कैसे उदित हुई। स्वानुभूति कर निज चिंतन की, गहरी नींव हुई। आत्म ज्ञान का भव्य-भवन अब, समता उदित हुई। राजुल तू तो है निर्दोष। सखी री तू है छवि रसकोष। सन्दल गात सुगन्ध वेदना, चिति बस राग-रोष। मुख मण्डल नासिका नयन लख, उपजा रागन होश। छवि आभा वर्षण देहरी पर, चैत्र हुआ है पौष। कनक-कलश रस भर अम्बर मिल, अन्तर अमल अदोष । ममता को समता पी जावे, नार नार निर्दोष। सब कुछ पाकर क्या लेना है, समता पूरित कोष। शाकाहार सदन एल. 75, केशर कुंज हर्षवर्द्धन नगर, भोपाल-3 28 जून 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524263
Book TitleJinabhashita 2002 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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