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आचार्य ज्ञानसागर जी की साहित्य - साधना
मुनि श्री क्षमासागर जी में संस्कृत भाषा में रचित अपने महाकाव्यों में तुलसीदासकृत रामचरितमानस की चौपाई शैली के समान शैली अपनाना अपने आप में ही एक संस्तुत्य कार्य है।
संस्कृत काव्यसम्पदा
मन, वाणी और कर्म सभी की पवित्रता के लिए अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह जैसे उदात्त मानवीय जीवन मूल्यों को अपने जीवन में पुष्पित, पल्लवित और फलित करके आध्यात्मिक ऊँचाइयों को छूनेवाले आचार्य श्री ज्ञानसागरजी मानवतावादी, संवेदनशील साहित्यकारों की शृंखला में अत्यन्त आदरणीय हैं।
मानव समाज का कल्याण करने में महाकवि ज्ञानसागर की काव्यसम्पत्ति महाकवि अश्वघोष की काव्यसम्पत्ति से भी अधिक मूल्यवन्त है। क्योंकि महाकवि ज्ञानसागर ने भारतीय मनीषा प्रसूत अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह नामक पाँच सार्वभौम महाव्रतों के परिपालन की सत्प्रेरणा देने की इच्छा से एक चम्पू काव्य और महाकाव्यों की सरस सर्जना करके मानव समाज को संयमपूर्वक अपना जीवन बिताने का सर्वांगीण संदेश दिया है।
उनके "दयोदय चम्पू" के नायक का जीवन पाठकों के मनः पटल पर अहिंसा की दिव्य छवि बनाता है। 'समुद्रदत्त चारित्र' का नामक सत्य और अस्तेय की समुचित शिक्षा देता है। 'वीरोदय' के नायक श्री महावीर स्वामी ब्रह्मचर्य के प्रति आस्था जगाते हैं। 'जयोदय' का नायक अपरिग्रह के महत्त्व को अभिव्यक्त करता है और 'सुदर्शनोदय' के नायक के जीवन में आने वाले घात-प्रतिघात इन उपर्युक्त जीवनोपयोगी सभी महाव्रतों (संयमो) के पालन की शिक्षा के साथ ही साथ अपने व्यक्तित्व की पवित्रता की धैर्यपूर्वक रक्षा करते रहने का प्रभविष्णु संदेश देते हैं महाकवि ज्ञानसागर के ये काव्य समवेत रूप से मानव समाज का समग्र कल्याण करने में अभी तक अनुपम ही हैं। इसके अलावा साहित्यिक दृष्टि से भी ये काव्य कालिदास, भारवि, माघ तथा श्री हर्ष के काव्यों से प्रतिस्पर्धा करते हुए प्रतीत होते हैं। कथावस्तु चरित्र चित्रण, भावपक्ष, कलापक्ष, वर्णन विधान, परिवेष आदि की दृष्टि से भी काव्य अत्यन्त सजीव और सहृदय आल्हादकारी हैं। इनसे संस्कृत साहित्य की अभूतपूर्व श्रीवृद्धि हुई है। यदि समालोचक धर्मनिरपेक्ष होकर कवि की रचनाओं को पढ़ें, तो वे पाएँगे कि ज्ञानसागर की रचनाएँ उच्च कोटि की हैं।
महाकवि ज्ञानसागर के काव्यों में अन्त्यानुप्रास शैली एक ऐसी अभिनव वस्तु है, जिससे कवि की मौलिकता में कोई संदेह नहीं रह जाता। यह कवि द्वारा साहित्य समाज को अनूठी देन है। इस शैली के माध्यम से कवि विरचित काव्यों में एक रमणीय प्रवाह दृष्टिगोचर होता है और दार्शनिक सिद्धान्तजन्य दक्षता भी नहीं चुभती है । कवि की यह शैली भी उनका संस्कृत साहित्य समाज में एक विशिष्ट स्थान निर्धारित करने में समर्थ है। वास्तव
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जयोदय महाकाव्य
इस काव्य में शृंगाररसरूपिणी यमुना और वीर रस रूपिणी सरस्वती का शान्तरसरूपिणी गंगा के साथ अद्भुत संगम किया गया है । 'वृहत्त्रयी' की परम्परा में प्रौढ़ संस्कृत भाषा में इस काव्य की रचना हुई इस काव्य में जयकुमार का परिणय, स्वयंवर में राजाओं के एकत्र होने, दासी द्वारा सुलोचना के समक्ष राजाओं का परिचय देने आदि का वर्णन इसे निःसंदेह 'नैषधीयचरित' के समकक्ष कर देता है। अनवद्यमति मंत्री का अर्ककीर्ति को समझाना अर्थ गौरव की झाँकी प्रस्तुत करता है। पर्वतवर्णन, वनविहारवर्णन, संध्यावर्णन और प्रभातवर्णन इसे माघ के "शिशुपाल वध" की तुलना में ले जाते हुए लगते हैं।
काव्य को पढ़कर लगता है कि साहित्य के माध्यम से दर्शन प्रस्तुत करने की कला में कवि सिद्धहस्त है। इस काव्य का उद्देश्य राजा जयकुमार और सुलोचना की प्रणय कथा के माध्यम से अपरिग्रह व्रत के माहात्म्य का वर्णन करने का रहा है। साथ ही धर्मसंगत, अर्थ, काम और मोक्ष पुरुषार्थ की सिद्धि भी इसी काव्य में की गई है। इस तरह जयोदय काव्यशास्त्रीय, सामाजिक, राजनैतिक, धार्मिक और दार्शनिक दृष्टियों से कालिदास एवं कालिदासोत्तर काव्यों के मध्य में पूर्णतः योग्य है। अट्ठाइस सग वाले इस महाकाव्य को सन् 1950 में ब्रह्मचारी सूरजमल, जयपुर ने प्रकाशित कराया ।
वीरोदय महाकाव्य
यह भगवान महावीर के त्याग एवं तपस्यापूर्ण जीवन पर आधारित बाईस सर्गों वाला महाकाव्य है। यह काव्य एक ओर तो शैली की दृष्टि से कालिदास की श्रेणी में आ जाता है और दूसरी ओर दर्शनपरक होने के कारण बौद्ध दार्शनिक महाकवि अश्वघोष के समकक्ष आता है।
काव्यशास्त्रीय दृष्टि से इस काव्य को देखें तो यह उत्कृष्ट कोटि का महाकाव्य है। इसकी घटनाओं की जीवन्तता इसे इतिहास ग्रन्थ एवं पुराणग्रन्थ की श्रेणी में ले जाती है। इसमें धर्म के स्वरूप की प्रस्तुति का कौशल देखकर लगता है मानो यह कोई धर्मग्रन्थ है
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यह काव्य सहृदयग्राह्य है। इसमें ब्रह्मचर्य की गरिमा और अहिंसा तथा अपरिग्रह का उपदेश अनुकरणीय है। पुनर्जन्म और कर्मसिद्धान्त भी प्राणी मात्र को अच्छे-अच्छे कार्य करने की प्रेरणा - जून 2002 जिनभाषित 9
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