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________________ नहीं होगा। और (2) आचरण या व्यवहार का। शब्दों की महिमा भगवान महावीर का जीव अपने सैकड़ों भव पहले | को मानने वालों की संख्या हमारे समाज में निरन्तर बढ़ती भील की पर्याय में था। पुरुरवा भील था उसका नाम | जा रही है, परन्तु जो उस महिमा को अपने में उतार सकें और काम शिकार करना था। एक दिन शिकार करने |, ऐसे लोगों की संख्या नगण्य है। बकौल बाबा गया। तीर ताना। छोड़ने ही वाला था कि भीलनी ने | तुलसीदास 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे। जे आचरहिं, ते कंधा झकझोर दिया। बोली-'क्या करते हो, गजब हो | नर न घनेरे।' परोपदेशक ढोल की तरह होते हैं और जायेगा?' यह तीर किस पर चला रहे हो? वह बोला कि | सदाचारी होते हैं पुष्प की सुगन्ध की तरह। ढोल के बारे देखती नहीं हो, वह झाड़ी के पीछे दो आँखें किसी हिरण में कहावत है 'दूर के ढोल सुहावने', किन्तु पुष्पों को की चमक रही हैं। तो लोग गले के हार बनाकर पहनते हैं। व्रती ही समाज 'अरे बाबले, वह हिरण नहीं, वीतरागी मुनि हैं। ये की शोभा हैं। आज कुछ लोग व्रतों की और व्रतियों की क्या पाप करने जा रहे हो तुम? भीलनी ने उसे समझाया। महिमा को नकारने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वह तुरन्त तीर नीचे हो गया। पुरुरवा भील मुनिराज | वक्त जल्दी ही आयेगा जब ऐसे लोग समाज द्वारा नकार के चरणों में गिर गया। उसने कहा-मुझे धर्म का कुछ | दिये जायेंगे। उपदेश दीजिए, महाराज! आज समाज में दो तरह के लोग हैं - (1) जो ____ पास जाकर उस समय अगर वह मुनिराज इस | स्वयं किसी मजबूरी से अथवा कर्मोदयवश व्रत धारण नहीं चक्कर में पड़ जाते कि पहले इसे पूरे 'समयसार' का | कर पा रहे हैं, किन्तु जो व्रतधारी हैं, उनकी समुचित ज्ञान करा दें, तब उसके बाद इसे कुछ उपदेश दें तो विनय करते हैं, उन्हें यथोचित सत्कार देते हैं और (2) पुरुरवा भील का भी उद्धार होने वाला नहीं था। उस जो जान-बूझकर ऐलान करते हुए स्वयं व्रत धारण न भील को उन मुनिराज ने केवल इतना ही कहा कि तुम | करने में खुशी मानते हैं तथा जो व्रती हैं, उनकी खिल्ली शराब पीना छोड़ दो, मांस खाना छोड़ दो और शहद | उड़ाते हैं। ये दूसरी तरह के लोग हमारी चिन्ता का विषय खाना छोड़ दो। मद्य-मांस-मधु इन तीन का त्याग करो, | हैं और हम समाज से अपील करते हैं कि इनसे बस इतना उस भील से कहा। बाकी आत्मा का ज्ञान | सावधान रहें। कोई कितना ही ज्ञानवान हो, किन्तु व्रती कराने के चक्कर में वह नहीं पड़े। अगर आत्मा का पूरा के सामने वह तुच्छ है। जिसका सिर व्रतियों के चरणों ज्ञान कराने के चक्कर में पड़ जाते तो भील का इतना में नहीं झुकता, वह अहंमन्य है, उसकी होनहार अच्छी नहीं क्षयोपशम था ही नहीं कि वह समयसार तो क्या, | है। ऐसे लोगों को आदर देने से जिनकी होनहार अच्छी बालबोध भी समझ पाता। इसलिये मद्य-मांस-मधु के | है, उनका भी बिगाड़ हो सकता है, हो रहा है। आचार्यों त्याग रूप जो थोड़ा सा संयम पुरुरवा भील ने धारण | ने कहा है -"स्वयं यथाशक्ति व्रतादिक धारण करो, यदि किया, उसके प्रभाव से वह महावीर बना। इससे स्पष्ट है | धारण नहीं कर सको तो उनमें श्रद्धा तो अवश्य रखो।" कि जरा-सा व्रत या त्याग तीर्थंकर भी बना सकता है। | जो स्वयं व्रत धारण नहीं करते और न उनमें श्रद्धा रखते त्याग की महिमा पैसे से बढ़कर है। हैं, ऐसे लोगों को सद्बुद्धि प्राप्त हो, हमारी तो यही त्याग भी दो तरह का होता है- (1) शब्दों का | कामना है। 104 नई बस्ती फीरोजाबाद- : सुदामानगर इन्दौर में महावीरद्वार बेवसाइट तैयार ___ इन्दौर। 28 फरवरी 2002। भगवान महावीर सभी को ज्ञातकर अति प्रसन्नता होगी कि ||2600वाँ जन्मजयन्ती महोत्सव वर्ष में इन्दौर की प्रसिद्ध कॉलोनी सुदामानगर में भव्य महावीर द्वार का निर्माण | अनेकान्त ज्ञानमंदिर शोधसंस्थान, बीना की संचालित किया जा रहा है। इसका शिलान्यास परमपूज्य उपाध्याय गतिविधियों एवं पाण्डुलिपियों की सूचियों, अनेकान्तदर्पण, श्री निजानन्दसागरजी इस अवसर पर महती धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए पूज्य उपाध्यायश्री ने कहा कि संस्थान समाचार आदि विषयक जानकारी प्राप्त करने व्यक्ति को दूसरों की प्रगति के लिये द्वार बनना चाहिये, हेतु संस्थान की बेवसाइट तैयार हुई है जिसको इस दीवार नहीं। अहिंसा वर्ष में बनने वाला यह महावीर द्वार जन-जन में अहिंसा का संदेश देते हुए मानव मात्र की नाम से खोला जा सकता है- www.Shrutdham.com प्रगति का पथ प्रशस्त करेगा। पदमचन्द्र मोदी, महामंत्री मार्च 2002 जिनभाषित 10 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524260
Book TitleJinabhashita 2002 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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