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________________ विबुधार्चित बुध बुद्ध तुम, तुम शंकर सुखकार ।। धर्म कथन में आप सम, वैभव अन्य न पाय । शिवपथ विधिकर बह्म तुम, तुम पुरुषोत्तम सार ॥25॥ | रहते ग्रहगण दीप्त पर, रवि सम तेज न आय ॥37॥ त्रिगज दुःख हर प्रभु न,, न, रतन भू माँहि । न, त्रिलोकीनाथ को, नमैं भवसिंधु सुखाँहि ॥26॥ गण्डस्थल मद जल सने, अलिगण गुंजें गीत । मत्त कुपित यूँ आय गज, पर तव दास अभीत ॥38॥ शरण सर्व गुण आय, क्या विस्मय जग नहि थान । भिदे कुम्भ गज मोतियों से भूषित भू भाग । स्वप्न न मुख दोषहि लखो, आश्रय पाय जहान ॥27॥ | सिह ऐसा क्या कर सके, जिसको तुमसे राग ॥39।। तरु अशोक तल शुभ्र तन, यूं शोभे भगवान । प्रलय काल सी अग्नि दव, उड़ते तेज तिलंग । मेघ निकट ज्यों सूर्य हो, तमहर किरण वितान ॥28॥ | जनभक्षण आतुर, शमे, आप नाम जलगंग ॥400 सिंहासन पर यूँ लगे, कनक - कान्त तन आप ।। ज्यों उदयाचल पर उगे, रवि कर - जाल प्रताप ॥30॥ लाल नेत्र काला कुपित, भी यदि समद भुजंग । नाम नागदम पास जिस, वह निर्भीक उलंघ ॥41|| दुरते चामर शुक्ल से स्वर्णिम देह सुहाय । हय, हाथी भयकार रव युत नृपदल बलवान । चन्द्रकान्त मणि मेरु पर मानो जल बरसाय ॥31॥ | नाशे, प्रभु यशगान तव, ज्यों सूरज तम हान ॥42॥ शशि सम शुभ मोती लगे, आतप हार दिनेश । " प्रकट करें त्रय छत्र तुम तीन लोक परमेश ॥32॥ भाले लग गज रक्त के, सर तरने भट व्यग्र । रण में जीतें दास तव, दुर्जय शत्रु समग्र ॥43॥ गूंजे ध्वनि गम्भीर दश, दिशि त्रिलोक सुखदाय । मानो यश धर्मेश का, नभ में दुन्दुभि गाय ॥33॥ क्षुब्ध जलधि बडवानली, मकरादिक भयकार । आप ध्यान से यान हो, निर्भयता से पार ॥44।। मन्द मरुत गन्धोद युत सुरतरु सुमन अनेक ।। तजी आश, चिन्तित दशा, महा जलोदर रोग । गिरत लगे वच पंक्ति ही नभ से गिरती नेक ॥34॥ अमृत, प्रभु-पदरज लगा, मदन रूप हों लोग ॥45॥ त्रिजग कान्ति फीकी करे, भामडल द्युतिमान ।। सारा तन दृढ़ निगड़ से, कसा घिस रहे जंघ । ज्योत नित्य शशि सौम्य पर, दीप्ति कोटिशः भान ॥35॥ नाम मंत्र तव जपत ही होय शीघ्र निर्बन्ध ॥46।। तव वाणी पथ स्वर्ग शिव, भविजन को बतलाय । गज अहि दव रण सिंधु गद, बन्धन भय मृगजीत । धर्म कथन समरथ सभी, भाषामय हो जाय ॥35॥ | सो भय ही भयभीत हो, जो थुति पढ़े विनीत ॥47॥ स्वर्ण कमल से नव खिले, द्युति नखशिख मन भाय । | विविध सुमन जिनगुण रची, माला संस्तुति रूप । प्रभु पग जहँ-जहँ धरत तह, पंकज देव रचाय ॥360 | कंठ धरे सो श्री लहे, मानतुंग अनुरूप ॥48॥ अलवर में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव शिवाजी पार्क अलवर में नवनिर्मित श्री संभवनाथ दिगम्बर जैन मंदिर द्वारा आयोजित श्री आदिनाथ दिगम्बर जिनबिम्ब पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव राष्ट्रसंत, शाकाहार प्रवर्तक, सराकोद्धारक प.पू. उपा. श्री ज्ञानसागरजी महाराज ससंघ के पावन सान्निध्य में प्रख्यात प्रतिष्ठाचार्य वाणी भूषण पं. डॉ. विमलकुमार जैन शास्त्री एवं पं. डॉ. शीतलचन्द्र जैन जयपुर के निर्देशकत्व में सानन्द सम्पन्न हुआ। अनन्त कुमार जैन शिवाजी पार्क, अलवर मार्च 2002 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524260
Book TitleJinabhashita 2002 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2002
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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