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4. आगम विषयक ऊहापोह।
मेरे लिये उपयुक्त लगा, 'धर्ममंगल' में पुन: प्रकाशन की अनुमति 5. जैन संस्कृति का संरक्षण, धर्म प्रभावना। .
देवें। आपके सम्पादकीय भी अध्यात्म, मनोविज्ञान, समाज विज्ञान 6. साधु परम्परा विशेष तौर पर सन्त शिरोमणि 108 | का बेजोड़ संयोग होते है। पं. श्री रतनलालजी बैनाड़ा के लेख भी आचार्य श्री विद्यासागर जी के दिव्य उपदेशों का प्रसार। बहुत पसंद आते हैं। प्रस्तुत अंक में आपका सम्पादकीय 'विवाह एक धार्मिक
सौ. लीलावती जैन अनुष्ठान' तथा 'कर्मों का प्रेरक स्वरूप' दोनों ही दिशाबोधक एवं
धर्ममंगल, 5 दिशांत अपार्टमेंट ज्ञानवर्द्धक हैं। पुराने लेखकों - स्व. पं. नाथूराम प्रेमी, पं. जुगलकिशोर
दिपा. हा. सोसा. संघवीनगर,
औंध, पुणे-7 मुख्तार, पूज्य वर्णीजी आदि को आप अवश्य स्थान देते हैं, यह स्पृहणीय है। "शंका-समाधान" में बैनाड़ाजी जिज्ञासाओं को जाग्रत
"जिनभाषित' के सितम्बर व अक्टूबर के अंक मिले, जिन्हें कर ऊहापोह का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
देखकर प्रसन्नता हुई। पं. रतनलालजी बैनाड़ा द्वारा “शंका-समाधान" पत्रिका हर दृष्टि से श्रेष्ठ है। आप सभी की मुक्त कंठ से प्रशंसा
पढ़कर आनन्द की अनुभूति हुई। आज तक इस पत्रिका के जितने करता हूँ।
भी अंक आये हैं हमने उनकी पूरी फाईल बनाई है, जिसे हम जब शिवचरणलाल जैन सीताराम मार्केट, मैनपुरी (उ.प्र.)
चाहें, तब देख सकते हैं। अभी तक ऐसी सुन्दर पत्रिका देखने को पिन कोड-205001
नहीं मिली, शाम को स्वाध्याय के समय पढ़ने का आनन्द आता है।
यह पत्रिका अच्छी निकल रही है। स्वच्छ मुद्रण, आकर्षक साजसंयोग से 'जिनभाषित' के सितम्बर एवं अक्टूबर दोनों ही अंक सज्जा एवं सुरुचिपूर्ण सामग्री - इन तीनों ही दृष्टियों से यह पत्रिका एक साथ मिले है। पत्रिका दोनों ही सरसरी तौर पर पढ़ गया हूँ। बेहद | स्तरीय है। स्तरीय एवम् सामयिक सामग्रीयुक्त, सुन्दर प्रकाशन, उत्तम सम्पादन
सुरेश भाई एम. गाँधी के लिये हार्दिक शुभकामनाएँ स्वीकार करें। आवरण पृष्ठ पर आचार्य
गाँधी मेडीकल स्टोर्स वीरसागर जी एवं आचार्य शिवसागरजी के चित्र बेहद प्रेरक हैं। हमें
डॉ. गाँधी रोड, हिम्मतनगर (गुज.) पूर्वाचार्यों को ज्यादा प्रसारित/रेखांकित करना चाहिये। "वैराग्य के
"जिनभाषित' पत्रिका एक उच्च कोटि की पत्रिका है। इसके सभी अवसरों का मनोरंजनीकरण'' पर सम्पादकीय अत्यन्त सामयिक एवं
लेख किसी न किसी विषय पर अच्छा प्रकाश डालते हैं। इस माह प्रभावी है। स्व. मुख्तार जी का भवाभिनन्दी मुनि वाला लेख भी
का सम्पादकीय लेख "विवाह एक धार्मिक अनुष्ठान" पठनीय और द्रष्टव्य एवं विचारणीय है। एक बार पुनः सुन्दर प्रकाशन हेतु शुभेच्छा।
अनुकरणीय है। इस पत्रिका में कुछ दिवगंत विद्वानों के लेख भी रहते डॉ. चिंरजीलाल बगड़ा सम्पादक - दिशाबोध
हैं, जो पुराने होते हुये भी नूतन जैसे ही लगते हैं और उनके द्वारा 48, स्ट्रेण्ड रोड, (3rd फ्लोर) कोलकाता - 700007
अच्छा बोध प्राप्त होता है। सितम्बर के अंक में स्व. क्षुल्लक श्री गणेश
प्रसाद जी वर्णी आदि 5 स्व. विद्वानों के लेख हैं, जो पठनीय होने आपके द्वारा सम्पादित पत्रिका 'जिनभाषित' के तीन अंक | के साथ ही शिक्षाप्रद है। पं. रतनलालजी बैनाड़ा का 'शंका-समाधान' जुलाई-अगस्त, सितम्बर एवं अक्टूबर प्राप्त हुये। तीनों अंकों पर | का पृष्ठ तो अत्युत्तम है, जो अनेक शंकाओं पर अच्छा समाधान आचार्य श्री शांतिसागरजी, आ. वीरसागर जी. आ. शिवसागरजी । प्रस्तुत करता है। के चित्र प्रकाशित किये गये हैं, जो बहुत ही सुन्दर एवं चित्त को । संक्षेप में यह पत्रिका अनेक दृष्टियों से अत्यन्त उपयोगी और भारत को पहले कौनो आशांतिसागर जी का जीवन- । पठनीय है। इन सब संयोजनों के लिये प्रधान सम्पादक का प्रयत्न चारित्र दिया है। बहुत ही अच्छा होता यदि अन्य अंकों में भी आ. अत्यन्त सराहनीय है। ऐसी उत्तमकोटि की पत्रिका के प्रकाशन के लिये वीरसागरजी व आ. शिवसागरजी के जीवन-चारित्र का परिचय | सबको हार्दिक बधाई। प्रकाशित किया जाता। महान् गुरुओं के जीवन-चारित्र से पाठकों को
उदयचन्द्र जैन, सर्वदर्शनाचार्य प्रेरणा मिलती है।
वाराणसी 'जिनभाषित' के अकों में उत्तम लेख दिये गये हैं, जो आपकी विद्वत्ता का परिचय देते हैं। पत्रिका अनुपम, सुन्दर एवं आकर्षक है।
'जिनभाषित' का अक्टूबर, 2001 का अंक यथा समय प्राप्त पत्रिका द्वारा जैन धर्म का प्रचार-प्रसार होता रहेगा। आपको बहुत-बहुत
हुआ। सर्वप्रथम, सम्पादकीय ही पढ़ता हूँ, “विवाह एक धार्मिक बधाई।
अनुष्ठान" में जिन-शास्त्रसम्मत अवधारणाओं से विवाह के धार्मिक पुरुषोत्तम दास जैन
अनुष्ठान एवं विवाह-विधि की धार्मिकता एवं सात्त्विकता प्रतिपादित 1088, डागान स्ट्रीट
की गयी है। लेख तैयारी के श्रम, शोध, पुरुषार्थ निश्चिंत ही प्रशंसनीय पो. - जगाधरी (हरियाणा) 135003 | हैं। वर्तमान में पश्चिम के अंधानुकरण की दौड़ ने युवा पीढ़ी को भ्रमित
कर रखा है, इस पावन संस्कार में जो कलुषता एवं वीभत्सता आ आपके सफल, उत्कृष्ट सम्पादन से ओतप्रोत पत्रिका | गई है, इसे देख-विचार कर हम अभी सचेत और सतर्क नहीं हुए, "जिनभाषित' बराबर मिल रही है। पत्रिका अन्तर्बाह्य दोनों ओर से
| तो हमें अपने आपको जैन कहलाकर गौरवान्वित होने का कोई अधिकार सर्वांग सुन्दर है। गत अंक में "भवाभिनन्दी और मुनिनिन्दा” लेख | नहीं बनता है। आवश्यकता इस बात की है कि इन दुष्प्रवृत्तियों एवं
-दिसम्बर 2001 जिनभाषित 3
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