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________________ प्रदर्शनों को जड़-मूल से नष्ट किया जाये। इस बाबत किये जाने वाले प्रयास प्रशंसनीय हैं ही, संस्कृति के संरक्षण का कार्य भी कर रहे हैं। काव्य समीक्षा के अन्तर्गत "संवेदनाएँ एवं संस्मरण" में अभिव्यक्त हृदय के विचारों को लिपिबद्ध देखकर आत्मिक आनन्द से भर गया। पूज्य श्री क्षमासागर जी महाराज के व्यक्तित्व के प्रति आस्था, श्रद्धा एवं विकास को शब्द मिल गये हम श्री शुक्लजी के प्रति आभार व्यक्त करते हैं। 'शंका-समाधान' बहुत ही उत्कृष्ट कॉलम है। पं. रतनलाल जी बैनाड़ा द्वारा पाठकों के प्रश्नों का सम्पक् समाधान प्राप्त होता है। अरविन्द फुसकेले उपा. पारस जन कल्याण संस्थान EWS- 541, कोटरा, भोपाल - 462003 'जिनभाषित' का अक्टूबर, 2001 अंक प्राप्त हुआ। मुखपृष्ठ पर 108 आचार्यश्री विद्यासागर जी महाराज के दादागुरु 108 आचार्य श्री शिवसागर जी महाराज का चित्र देखकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई । पत्रिका की साज-सज्जा, छपाई अत्यधिक मनमोहक है। - सम्पादकीय - 'विवाह एक धार्मिक अनुष्ठान' पढ़कर ऐसा लगा जैसे आपने मेरे मन की बात कह दी। संपादकीय में आपने सभी सामाजिक पक्षों पर प्रकाश डालकर भटकते हुये समाज को अपनी सशक्त लेखनी के माध्यम से भँली प्रकार मार्गदर्शन दिया है। आपका लेख विवाह के सभी पक्षों को उजागर करने वाला है। मेरी ओर से दिसम्बर 2001 जिनभाषित बधाई स्वीकार करें। इसी प्रकार एक अन्य लेख 'वनवासी और चैत्यवासी स्व. पं. नाथूरामजी प्रेमी का ऐतिहासिक एवं महत्त्वपूर्ण है। श्वेताम्बर, दिगम्बर साधुसमाज का स्पष्ट चित्रण करने वाले उपयोगी लेख अवश्य आने चाहिये, जिससे निर्बंध साधुओं का असली रूप समझ में आ सके। इसकी अन्य दो किश्तें आने पर पूरी जानकारी प्राप्त हो सकेगी। Jain Education International अनूपचन्द न्यायतीर्थ 769, गोदिकों का रास्ता किशनपोल बाजार, जयपुर (राज.) 'जिनभाषित' का अक्टूबर, 2001 अंक मिला। सम्पादकीय 'विवाह एक धार्मिक अनुष्ठान' पढ़कर अत्यन्त आनन्द हुआ, इस लेख में समाज में फैली हुई कुरीतियों का अच्छा चित्रण किया गया है । इस पत्रिका का प्रत्येक अंक अपने आप में अनूठा, आकर्षक और आध्यात्मिक सामग्री से भरा होता है, जिसे खोलने के बाद मैं अन्तिम पृष्ठ तक पढ़ने के बाद ही इसे बन्द करता हूँ। यह पत्रिका धर्म में आई कुरीतियों को दूर करने के साथ-साथ सामाजिक अन्धविश्वासों को भी समाप्त करेगी, यह मेरा विश्वास है। स्पष्टीकरण भाई पंकज शाह ने अक्टूबर अंक में मेरे लेख 'श्री महावीर उदासीन आश्रम कुण्डलपुर' की स्थापना के संबंध में स्पष्टीकरण चाहा है मेरा पुनः निवेदन है (लेखानुसार) कि कुण्डलपुर आश्रम की स्थापना पू. गोकुलचन्द्र जी वर्णी नं. 1910/11 में की थी। उन्होंने थोड़ी जमीन खरीदी और झोपड़ियों में त्यागी वृन्द रह कर स्वयं भोजन बनाते थे। इस आश्रम के भवननिर्माण हेतु वे अर्थसंग्रह को इन्दौर गये थे। सर सेठ हुकमचन्द्रजी ने इस योजना को साकार करने हेतु प्रेरणा की और इन्दौर में ऐसे आश्रम की स्थापना के लिये आग्रह किया । अतः 1914 में इन्दौर आश्रम स्थापित हुआ और कुछ समय उसका संचालन भी किया। ब्र. गोकुलचन्द्र जी से सरसेठ सा. ने प्रश्न किया आपको इन्दौर आने से क्या लाभ मिला। ब्र जी ने उत्तर दिया मैं एक आश्रम को लेकर प्रायस रत था। अब दो हो गये एक कुण्डलपुर दूसरा इन्दौर। भवन के लिये भिन्न स्थानों से चन्दा करके ब्र. गोकुलचंद्र जी ने प्रायः बारह हजार की लागत से कुण्डलपुर में आश्रम के भवन का निर्माण पूर्व में झोपड़ियों के स्थान पर कराया (सन् 1915 में)। भवन का उद्घाटन सन् 1918 में हुआ। इस तरह दि. जैन समाज का महावीर उदासीन आश्रम कुंडलपुर प्रथम आश्रम है इसकी स्थापना 1910/11 में हुई, फिर भी भवन का निर्माण 1915/18 में हुआ, जबकि इंदौर आश्रम का भवन 1914 को अस्तित्व में आ गया था। इस स्पष्टीकरण से न तो लेखक की ओर न पत्रिका की विश्वनीयता पर आँच आती है। संदर्भ- मेरी जीवनगाथा (पूज्य गणेश प्रसाद जी वर्णी पेज 288 बाबा गोकुल चन्द जी तथा द्वादश वर्षीय विवरण श्री दि. जैन उदासीन आश्रम इन्दौर सन् 1927 (1914 से 1926 तक की रिपोर्ट) अशोक जैन प्रचार मंत्री- श्री शांतिनाथ दि. जैन अतिशय क्षेत्र 'सुदर्शनोदय' आँवा, जिला - टोंक (राज.) पिनकोड 304802 For Private & Personal Use Only अमरचन्द्र जैन, श्री दि. जैन महावीर आश्रम, कुण्डलपुर, दमोह-470773 www.jainelibrary.org
SR No.524258
Book TitleJinabhashita 2001 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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