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________________ पड़ौसी ने कहा! अतः सर्वोत्तम तो यही होगा कि परिग्रह से | पायेंगे?' 'अब ऐसा ज्यादा कुछ फरक भी नहीं | परे रहा जाए।' 'इन्हें तो मैं समझा लूँगा।' पड़ौसी ने है दोनों में।' दूध वाला बोला- 'गाय दूध के 'सो तो आप ठीक कहते हैं।' पड़ौसी कहा- 'लेकिन उन्हें कैसे समझाऊँगा जिनके वास्ते खरीदते हैं तो कार अलाऊँस के वास्ते। ने कहा - 'पर मैं जो हूँ सो अभी भी गृहस्थाश्रम बीच मैं काम करता हूँ, जिनके मध्य मैं उठता बल्कि अलाऊँस की खातिर तो कार का में हूँ। साथ में एक अदद पत्नी वा तीन बच्चे बैठता हूँ, जिनके लिये समाज में आपकी चलती हालत में होना भी दरकार नहीं है।' हैं, जिनकी बहुत सारी हसरतें बहुत दिनों से स्थिति के आकलन के लिए आपके सदगुणों पड़ौसी ने इस कथन को मस्तिष्क के मेरी पदोन्नति से हिलगी हुई हैं। बेटियों ने से ज्यादा ऊपरी तामझाम महत्त्वपूर्ण होता है। एक कोने में रख लिया। बोले कुछ नहीं। सहेलियों से अपने पापा की कार में पिकनिक अफसरी करना है तो मातहतों के लिए अफसर आटो-डीलर भी उनसे तत्काल मिला और उन ले जाने का वादा कर रखा है। बटे की योजना का रूप धारण करना भी तो जरूरी होता है। सारी स्कीमों का विस्तृत विवरण दिया, अपनी कार को ड्राइव करते हुए, दिन में कई | होता है न आदरणीय?' जिनके अंतर्गत न्यूनतम ब्याज और अधि- बार अपने दोस्तों के घर के सामने से सरपट कतम किश्तों में नई कार मुहैया कराई जा निकल जाने की बनी हुई है। पत्नी की मैंने आदरणीय बने रहने हेतु वार्तालाप सकती थी। इनके अलावा अन्य कई लोगों ने | चिरपोषित अभिलाषा है कि वह अपनी कार को यहीं विराम देना उपयुक्त समझा। इसके अपनी पुरानी कार बेचने के उद्देश्य से पड़ौसी | में बैठ कर दूर अपने गाँव जाये, जहाँ गाँव बाद जो हुआ वह लगभग तय था। पड़ौसी से सम्पर्क साधा। इस तरह, कुछ ही समय वाले उसे देखकर चकित रह जायें। कहें कि ने कार खरीदी। यही कोई दस-बारह वर्ष में चारों ओर से घिर जाने पर पड़ौसी पूर्णतः देखो फलाँ की बिटिया का भाग्य! जिसे नाक पुरानी। घर तक खुद चला कर लाए। पुत्र ने विवृत्त पाए गए। उन्हें लगा मानों लोग कार | पौंछने का शऊर नहीं था, आज अपनी कार भी कार पर हाथ साफ किया। एक दो बार के लिए ग्राहक नहीं, बल्कि बिटिया के लिए | में फर्राटे भर रही है।' सरपट दौड़ायी भी। बेटियाँ भी नजदीक के वर तलाश रहे हों। तब तो पड़ौसी आपको नई कार फिकनिक-स्पॉट तक हो आई। पर होता यों और इसी दौरान पड़ौसी का प्रमोशन खरीदना चाहिए।' मैंने इस सलाह को निरापद था कि कभी कार का एक पुर्जा टूटता, तो आर्डर आ गया। वह अफसर बन गए, साथ मानते हए कहा - 'अगर गाँव-खेड़े तक जाना कभी दूसरा। गेरेज में कार रिपेयर करातेही वाहन भत्ते के पात्र भी। है, तो फिर कार के चलने की गारंटी होना कराते पड़ौसी को इतना ज्ञान हो गया कि वह __मैं बधाई देने पहुंचा तो उन्हें उतना चाहिए वरना फर्ज करो कि गाँव में जाते ही खुद कार ठीक करने लगे। मैं बहुधा उन्हें प्रसन्न नहीं पाया, जितनी की अपेक्षा थी। पुरानी कार बिगड़ जाये और उसे बैलों से बोनेट खोले कार के अंदर झाँकते पाता। 'क्या बात है पड़ौसी?' मैंने मुस्कराते खिंचवा कर शहर की गेरेज तक लाना पड़े अथवा कार के नीचे घुस कर कुछ टाइट करते हुए पूछा - 'मिठाई में शक्कर कुछ कम नजर तो फिर कितनी भद्द उड़ेगी?' देखता। पड़ौसी डयूटी से लौटते और कार आ रही है।' _ पड़ौसी गंभीर हो गए। मैंने भी में भिड़ जाते। पहले पेंट-कमीज पहन कर 'सो तो सही है मान्यवर, पर नई कार खरीदने की हैसियत भी तो बन पड़ना चाहिए रिपेयर करते थे। बाद में लुंगी-बनियान में आ मुस्कराहट समेट ली। न? आप तो जैन साब, जानते ही हैं कि गए। उन्हें बुरा न लगे इसलिये मैं कार की 'अब आपसे क्या छिपाना जैन साब,' बड़की राजधानी के एक होस्टल में रहकर चर्चा उनसे कभी नहीं करता। केवल कनखियों पड़ौसी ने किंचित् विचलित होते हुए कहा'मैं कार खरीदने को लेकर बड़ी द्विविधा में से उनके चेहरे पर बढ़ती पीड़ा और बनियान कालेज में पढ़ रही है। छुटकी पी.एम.टी.की हूँ। नयी लूँ या पुरानी? चलनेवाली लूँ या गैर तैयारी में तमाम ट्यूशनों में जा रही है और में बढ़ते छिद्रों को निहारता रहता। रिपेयर के बेटा इंजीनियर बनने की कोशिश में अभी से बाद जब व कार की ट्रायल लेने निकलते तो चलनेवाली। लूँ भी अथवा न लूँ? कुछ समझ नहीं आ रहा। आप ही सलाह दें कि मैं क्या कोचिंग ले रहा है। ऐसे में घर में कभी नमक फटी बनियान पहने हुए होते, जैसे सब कुछ कम पड़ जाता है, तो कभी तेल। और फिर पूर्व आभासित था। करूं?' अब गंभीर होने की बारी मेरी थी। नई कार के लोन की किश्त! बाप रे! जितना कहते हैं कि प्राचीन काल में जब किसी महापुरुषों ने पड़ौसी से प्रेम करने की हिदायत अलाऊँस मिलेगा उससे दुगने से भी ज्यादा। से बदला लेना होता था, तो उसे हाथी उपहार तो दी है, लेकिन सलाह के संदर्भ में वे मौन अब यह भी तो अच्छा नहीं लगेगा कि फटे में दे दिया जाता था अथवा जब किसी की रहे हैं। व्यक्तिगतरूप से मैं सलाह देने को कपड़े पहिन कर नई कार चलाई जावे।' मति मारी जाती थी तो वह घर के सामने हाथी बड़ा रिस्की मानता हूँ। गलत पड़ जाये तो _ 'तब तो पड़ौसी आपको कार कतई बँधवा लेता था। इससे समाज में उसकी अगले से जिंदगी भर को ठन जाती है। नहीं खरीदना चाहिए,' मैंने कहा - 'घर के प्रतिष्ठा तो अवश्य बढ़ जाती थी, पर घर इसलिए तनिक दार्शनिकता ओढ़ते हुए मैंने सदस्यों को कुछ समय के लिए कार का मोह खोखला होने लगता था। लगा कि जैसे कहा - 'परिग्रह तो पड़ौसी हर हाल में दुख त्याग देना उचित होगा। लोभ का संवरण पड़ौसी कुछ वैसी ही स्थिति में पड़ गए हों। का कारण माना गया है। जिस वस्तु में हम करना श्रेयस्कर होगा। वैसे भी गुरुजनों ने लोभ को पाप का जनक निरूपित किया है। कषायों सुख की आशा करते हैं, वस्तुतः उसमें सुख 7/56-ए, मोतीलाल नेहरू नगर होता नहीं है। सुख का छलावा मात्रा होता है। को वश में करने का उपदेश दिया है। तो क्या (पश्चिम) भिलाई (दुर्ग) छत्तीसगढ़, आप परिजनों को इतना भी नहीं समझा पिन-490020 -दिसम्बर 2001 जिनभाषित 31 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524258
Book TitleJinabhashita 2001 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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