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________________ व्यंग्य दोषारोपण का खेल शिखरचन्द्र जैन कर पाने खल वाछित ला से मेरा विफलता का दोष किसके श्री शिखरचन्द्र जी जैन पेशे से इंजीनियर हैं। भिलाई दोषारोपण के खेल में किसी नियम का सिर मढ़ दिया जाय, यह समस्या, पालन होगा अथवा कोई आचारस्टील प्लांट के महाप्रबंधक पद से हाल ही में सेवानिवृत्त आदमी के सामने, सृष्टि के प्रारम्भ से संहिता मानी जायेगी, ऐसा सोचना ही रही है। यहाँ विफलता से मेरा हुए हैं। अभिरुचि शुरू से ही साहित्यिक रही है। व्यंग्यलेखन भी नादानी होगी। आशय न केवल वांछित लक्ष्य प्राप्त में इन्हें विशिष्ट दक्षता हासिल है। 'सरिता', 'मुक्ता' आदि विदित हो कि यह खेल न कर पाने से है, बल्कि किए गए प्रसिद्ध पत्रिकाओं में इनके व्यंग्य प्रकाशित हो चुके हैं। मेरे सर्वव्यापी है, बहु-आयामी है। अंतकिसी कार्य या प्रयत्न के अप्रिय | विशेष आग्रह से 'जिनभाषित' के लिए नियमित रूप से र्राष्ट्रीय स्तर पर भी खेला जाता है और परिणाम से भी है। दोषारोपण से मेरा लिख रहे हैं। प्रस्तुत व्यंग्य इसी की अगली कड़ी है। अंतर्राज्यीय स्तर पर भी। देश के तात्पर्य न केवल एक की असफलता दोषारोपण आनन्दानुभूति कराने वाला महत्त्वपूर्ण खेल है। अन्दर यह खेल न केवल राज्यों के के लिए दूसरे को दोषी ठहरा देने से इस व्यंग्य को पढ़कर यदि आप चाहें तो अपनी अनुभूतियों बीच बल्कि शहरों, नगरों, कस्बों और है, बल्कि ऐसा कर, बच निकलते के भण्डार से दोषारोपण के कुछ और उदाहरण हमें प्रेषित | गाँवों के बीच भी खेला जाता है। हए, परमानन्द की अनुभूति प्राप्त । कर सकते हैं। भौगोलिक सीमाओं के परे, यह खेल करने से भी है। प्रकट है कि ऐसा कर विभिन्न धर्मों, सम्प्रदायों, जातियों, पाना सहज नहीं है। विशेषकर तब, जबकि अन्य । मश्किल है। पर शनैः-शनैः ज्यादा से ज्यादा । कुनबों, पुरुषों, महिलाओं, पति-पत्नी, बापलोग भी चतुर होते जा रहे हैं। वस्तुतः वो हो । लोग इस पद्धति को अपना कर प्रसन्न होने लगे | बेटों आदि के बीच समान रूप से प्रिय है और ही गए हैं और इस कारण यह समस्या अब और और इस तरह एक-दूसरे पर दोषारोपण का खेल | बिला-नागा खेला जाता है। भी जटिल हो गई है। प्रचलन में आया। इस खेल में कुश्ती प्रतियोगिता की तरह पहले ऐसा नहीं था। मानव-सभ्यता की कहते हैं कि सफलता का श्रेय लेने, लोगों एकल अथवा कबड्डी की तरह सामूहिक भागीदारी आरम्भिक अवस्था में लोग बहुत थोड़े में ही संतुष्ट की लाइन लग जाती है, पर विफलता का बोझ हो सकती है। एक व्यक्ति एक समूह से भिड़ हो जाया करते थे। मसलन, मानव-जाति की उठाने कोई आगे नहीं आता। इसके लिये जब सकता है अथवा पूरा समूह एक व्यक्ति के पीछे उत्पत्ति तथा इसके फलस्वरूप, कालांतर में आवश्यकता होती है, जाँच आयोग का गठन | पड़ सकता है। समूह में खिलाड़ियों की संख्या उपजे बवंडर के लिए, जो कि अभी तक थमा | करना होता है, जो कि अनगिनत बैठकें, अनेक | पर भी कोई पाबंदी नहीं है। प्रादेशिक स्तर का नहीं है, केवल वर्जित फल को दोष देकर ही लोग अवधि-विस्तार तथा काफी मशक्कत के बाद कोई अदना-सा राजनीतिक दल, राष्ट्रीय स्तर के संतुष्ट होकर रह गये। भाग्य, जिसे न कभी किसी यह तो पता लगा देता है कि दोषी कौन नहीं | किसी विशाल राजनीतिक दल पर निर्भय हो ने देखा न जाना, युगों-युगों तक, विफलता के है पर बहुधा यह नहीं बतला पाता कि दोषी कौन दोषारोपण कर सकता है। बड़े दल तो, खैर, छोटे लिए दोषी ठहरा दिए जाने का उत्तरदायित्व भली- है! दोषी खोजने हेतु जाँच आयोग का गठन, दलों को, अगर वे उनके गठबंधन में नहीं हैं तो, भाँति निभाता रहा है। एक अहम युद्ध में करारी सर्वप्रथम कब हुआ, यह तुरंत बतला पाना तो हिकारत की नजर से देखते ही हैं। हार के लिए, एक अदने से घोड़े की मामूली-सी | मेरे लिए संभव नहीं है, शोध करना होगा, पर ज्ञातव्य है कि हमारे देश के एक समय नाल के न होने को ही दोषी मानकर संतोष कर ऐसा लगता है कि इसका संबंध, शासन में लिया गया। इस तरह, कई-एक अदृश्य अथवा के प्रसिद्ध राजनीतिक दल के सदस्य एवं अध्यक्ष प्रजातांत्रिक प्रणाली के आविर्भाव से रहा होगा। निर्जीव वस्तुएँ, एक लम्बे अरसे तक, आदमी जिसमें अब केवल एक ही सदस्य शेष है उस क्योंकि इस प्रणाली में किसी कृत्य अथवा निर्णय को, असफलता की पीड़ा से राहत दिलाने का दोषारोपण के खेल में सबसे कुशल खिलाड़ी माने के लिए किसी एक व्यक्ति को उत्तरदायी ठहराना कार्य सफलतापूर्वक करती रहीं और आदमी जाते हैं। वह कभी भी, किसी पर भी, किसी भी सहज नहीं होता। सबकी सामूहिक जिम्मेदारी बाकायदा इनसे संतुष्ट होता रहा। प्रकार का दोषारोपण बेखटके कर जाते हैं और मानी जाती है। इस बात से ऐसा भी आभासित लेकिन यह स्थिति शाश्वत नहीं रही। होता है कि वस्तुतः प्रजातंत्र की स्थापना का ऐसा करते हुए अच्छी-भली चलती हुई सरकार कारण कि आदमी हर क्षेत्र में निरंतर अनुसंधान उद्देश्य ही यह रहा होगा कि शासन अथवा को गिराने की क्षमता रखते हैं। एक राजनीतिक करते हुए, आनंद प्राप्ति के नए-नए तरीके | राजनीति में लिए गए निर्णय के लिए किसी एक दल ने तो चुनाव में अपनी हार के लिये सीधे खोजता रहा तथा अपने जीवन को अधिक से व्यक्ति को दोषी न ठहराया जाए तथा कम से। चुनाव आयोग को ही दोषी करार दिया। कतिपय अधिक सुखमय बनाने का प्रयास करता रहा। कम इन क्षेत्रों में तो व्यक्तिगत दोषारोपण से बचा राजनीतिक दलों के सदस्य, अपने ही गोल-पोष्ट यद्यपि शास्त्रों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख कर जाए। इस तरह खेल को कुछ और जटिल बनाते पर गोल करते हुए पाये जाते हैं। इस तरह, इस दिया गया था कि संसार में सुख है ही नहीं, फिर हुए इसके नियम और आचार-संहिता के निर्माण खेल में, सभी राजनीतिक दलों की सक्रिय भालाग, रत सतलनिकालनकमाफिक, यन- | का प्रयत्न भी किया गया। भागीदारी के उदाहरण अपरिमित हैं। आप यदि केन-प्रकारेण आह्लादित हो लेने के अवसर पर प्रयत्न कोई कितना ही कर ले, नियमों चाहें तो अपनी पसंद के कुछ और उदाहरण यहाँ तलाशन म लग रह आर इस प्रक्रिया में कब, | और आचार-संहिताओं से आदमी का वैसे भी | जोड़ कर इस लेख को और आगे बढा सकते किसने. अपनी असफलता का दोष किसी और | छत्तीस का आँकडा है। सबसे ज्यादा आनंद. | हैं। मैं बस यहीं विराम लगा। के सिर मढ़ दिया और फिर उसे तिलमिलाते हुए | आदमी को, नियम तोड़ने और आचार-संहिता 7/56-ए, नेहरू नगर (पश्चिम), भिलाई देख कर आनन्द का अनुभव कर लिया, कहना | का उल्लंघन करने में ही आता है। अतः (दुर्ग) छत्तीसगढ़-490020 -जुलाई-अगस्त 2001 जिनभाषित 33 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524254
Book TitleJinabhashita 2001 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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