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________________ नहीं करता। पूजन पद्धतियों से लेकर भजन | उनके विद्यार्थियों में भी बड़ी भ्रामक धारणाएँ । प्रवचनों/विधानों के हो-हल्ले और ध्यान-योग तक अधिकांश मंत्र, श्लोक, धुनें जैनेतर हैं। यदि इस तरह के विवरण पढ़े जावेंगे तो की फैशनबाजी के सिवाय शैक्षणिक स्तर पर परम्पराओं से ग्रहण करके परिवर्तित की गयी पश्चिम की रुचि नकारात्मक ही होगी। इसका | कोई प्रभावी कार्य नहीं हुए हैं। हैं मौलिक नहीं हैं। यदि गहराई से विचार करें कारण तो यह है कि हमारा साहित्य अधिकांश अब क्या करना है? तो हमारी कोई व्यवस्थित शिक्षा पद्धति भी लेखकों, विद्वानों तथा प्रकाशकों तक नहीं नहीं रही या यूं कहें, इस पर विचार भी पहुँचा है और जो पहुँचा है उसके परम्परागत आजादी के बाद से आज तक जो हुआ लगभग नहीं के बराबर किया गया है। नया निरूपण के आधार पर ही उनकी ऐसी धारणाएँ वह पहली और दूसरी पीढ़ी ने किया। प्रश्न है तो भौतिक पीढ़ी क्या रचे? प्राचीन मौलिकता बनी हैं। इन विवरणों से विद्वानों के अध्ययन अब हमें क्या करना है? नयी पीढ़ी को यह को सँभालना, सुरक्षित रखना भी उसे झंझट | की एकांगिता भी प्रकट होती है।... इनके बागडोर सँभालनी होगी। पिछली पीढ़ी ने कुछ दिखने लगने लगा है। अध्ययन से मुझे ऐसा भी लगा कि विदेशों दिया उसे अपनाना होगा, जो भूलें की उन्हें हटाना होगा। अब इक्कीसवीं सदी में तराजू में किये जाने वाले प्रवचन प्रसारणों से पश्चिम विदेशों में जैन धर्म का सच जगत प्रायः अछूता ही रहा है। 'सेवन को छोड़कर कलम धारण करनी होगी। हिसाब पिछले कुछ दशकों में बहुत शोर हुआ सिस्टम्स आफ इंडियन फिलोसोफी' और 'दी लिखने की जगह इतिहास लिखना होगा। कि जैनधर्म का प्रचार-प्रसार विदेशों में खूब वर्ल्ड रिलिजयन्स रीडर (रटलज)' जैसी एकजुट होकर युग के अनुरूप अपनी प्रस्तुति हुआ है। किन्तु यह प्रचार मूलतः वहाँ पर अनेक पुस्तकों में जैन धर्म का विवरण ही नहीं देनी होगी तभी इक्कीसवीं शताब्दी सार्थक निवास कर रहे भारतीय जैनों के मध्य तक है। हाँ, सिक्खधर्म का विवरण प्रायः सभी में होगी और जैन संस्कृति का वजूद बच ही सीमित रहा। जैन गजट 2 दिसम्बर, 99 है, उनका साहित्य भी सभी स्थानों पर पायेगा। में प्रो. नन्दलाल जैन, रीवा का प्रकाशित एक दिखा।" इस प्रकार लेखक ने ऐसे कई तथ्य अब भी न सँभलेंगे तो मिट जायेंगे खुद ही, महत्त्वपूर्ण आलेख इसी विषय को बतलाता उजागर किये हैं जिनसे यह पता लगता है कि दास्ताँ तक भी न होगी हमारी दास्तानों में। है। वे लिखते हैं कि "जैन धर्म के विषय में, विदेशों में भारतीय जैनों की तरफ से जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय पश्चिमी विद्वानों में (कुछ को छोड़कर), तथा लाडनूं -341306 (राज.) प्रतिष्ठाचार्य पं. गुलाबचन्द्र जी पुष्प का अखिल भारतीय सम्मान कश्रेष्ठ भातष्ठाचार्यों ] भी इनका त कर प्र भगवान् महावीर स्वामी के 2600वें | परम्परा हमें केवली भगवन्तों के माध्यम से । गया। लगभग पाँच घण्टे तक चले इस भव्य जन्म महोत्सव के पावन प्रसंग पर दिल्ली के | मिली जिसे विद्वानों ने सरल भाषा में समाज | कार्यक्रम का सफल संचालन अभिनन्दन ग्रन्थ निकटवर्ती अतिशय क्षेत्र बड़ागाँव (खेकड़ा) | को प्रदान किया। पं. 'पुष्प' निःस्पृही, व्रती, | के संयोजक-सम्पादक डॉ. भागचन्द्र जैन में आयोजित भव्य समारोह में विख्यात अनुशासित एवं चरित्र के प्रति जागरुक, श्रेष्ठ | 'भागेन्दु' ने किया। विद्वान् प्रतिष्ठाचार्य पं. गुलाबचन्द्र जी जैन | विद्वान हैं। अन्य प्रतिष्ठाचार्यों एवं विद्वानों को सम्मान समारोह की अध्यक्षता श्री 'पुष्प' को स्वर्णप्रशस्ति, शाल, श्रीफल, एवं | भी इनका अनुकरण करना चाहिए। धर्मचन्द्र जैन (प्रीत बिहार) ने की। अभिनन्दन| पगड़ीबन्धन से सम्मानित कर 'प्रतिष्ठा समारोह के मुख्य अतिथि श्री शान्ति ग्रन्थ का लोकार्पण श्री राजेन्द्र कुमार जैन रत्नाकर' की उपाधि से अलंकृत किया गया। कुमार जैन (आई.पी.एस.) उपमहानिरीक्षक (शालीमार बाग) के द्वारा सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर श्री 'पुष्प' जी के साथ उनकी (एस.पी.जी.) ने कहा कि 'पुष्प' जी का समागत मनीषियों और अतिथियों का सम्मान धर्मपत्नी श्रीमती रामबाईजी को भी सम्मानित सम्मान ज्ञान का सम्मान है। विषमताओं के स्वागताध्यक्ष श्रीचन्द्र जैन, चावल वाले, किया गया। बीच अडिग रहना उनकी विशिष्टता है। इस मुजफ्फरनगर के साथ-साथ अखिल भारतीय विद्वत् सपर्या का यह अनूठा समारोह | अवसर पर श्री डी.टी. बार्डे (आई.पी.एस.) अभिनन्दन समारोह समिति के अध्यक्ष श्री सराकोद्धारक सन्त उपाध्यायरत्न श्री ज्ञानसा- | भी उपस्थित थे। इस अवसर पर 'पुष्प' जी बाबूलाल पहाड़े, हैदराबाद, महामंत्री श्री गर जी मुनि महाराज के ससंघ सान्निध्य में | के व्यक्तित्व, वैदुष्य और कर्तृत्व को उजागर चमनलाल जैन राजस्थली, कार्याध्यक्ष श्री सम्पन्न हुआ। करने वाला 800 पृष्ठ का विशाल अभिन कपूरचन्द्र घुवारा एवं अन्य सदस्यों ने किया। समारोह में अखिल भारतीय विद्वत् | |न्दन ग्रन्थ 'पुष्पाञ्जलि' भी समर्पित किया विद्वत् सपर्या के इस अनुपम कार्यक्रम को परिषद् और शास्त्री परिषद् के लगभग 300 गया। बीच-बीच में संगीत की रस माधुरी से भावख्यातिप्राप्त विद्वानों, हजारों गण्यमान्य नाग- समारोह में बालब्रह्मचारी श्री जयकुमार विभोर किया अहिंसा म्युजिकल ग्रूप, टीकरिकों एवं शताधिक संस्थाओं ने पं. 'पुष्प' | 'निशान्त' जी को अखिल भारतीय समाज मगढ़ के श्री डी.के. जैन और उनके साथियों जी को सम्मानित किया। उपाध्याय श्री ने पं. | की ओर से 'प्रतिष्ठाचार्य' पद पर प्रतिष्ठित 'पुष्प' जी को आशीष देते हुए कहा कि श्रुत | कर प्रशस्ति समर्पित कर सम्मानित किया 32 जुलाई-अगस्त 2001 जिनभाषित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524254
Book TitleJinabhashita 2001 07 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages48
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size5 MB
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