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________________ माननीय सम्पादक जी, विद्यालय में एक प्रति 'जिनभाषित' की प्राचार्य महोदय के नाम आयी ज्ञात कर उसे लेकर खोला तो मुखपृष्ठ से अन्तिम पृष्ठ तक देखता चला गया। अन्तर जो हार्दिक आह्लाद हुआ उसे समीक्षाष्टक के रूप में प्रस्तुत किया है | उर्दू शायरी में भक्ति और अध्यात्म . शीलचन्द्र जैन अनन्य भक्ति तेरी सूरत से नहीं मिलती किसी की सूरत। 1. हम जहाँ में तेरी तस्वीर लिये फिरते हैं। नवाब झाँसवी अरहतप्रभु दिव्यदेशना, विविध विधाओं से बही धार। जिनभाषित अप्रैल अंक पर, महावीर को लो उर धार॥ बायें पृष्ठ पर सुन्दर अन्तस्तत्त्व, दाँयें पृष्ठ पर सम्पादकीय लेख। विद्ववर्य पं. श्री पन्नालालजी, महाप्रयाण का हुआ उल्लेख॥ 2 भगवती आराधना का नवनीत प्राप्त कर, बोध कथा से सुन्दर सार। महावीर की पावन वाणी, आचार्य श्री जी रहे उचार॥ नरतन निन्दनीय या प्रसंशनीय है, बोधकथा से अनुपम ज्ञान। जीवनपद्धति महावीर से, रतनचन्द्र जी करें बखान। 3 कविता द्वारा गुरुस्तवन, कार्ययोजना सुन्दर प्रारूप। उर्दू शायरी से अध्यात्म प्रस्तुति, हुआ प्रफुल्लित मनवच रूह॥ पुण्यपुरुष श्री गणेश प्रसाद जी, साहित्य सपर्या सुन्दर आयाम। कुन्द कुन्द का शुभोपयोग ही, परम्परा से शिव सोपान॥ मिथ्यात्व हटते ही, यथार्थ के दर्शन हो जाते हैं। उठा सके आदमी तो पहले नज़र से अपनी नकाब उठाये। जमाने भर की तजल्लियों से नकाब उल्टी हुई मिलेगी। नवाब झाँसवी दुनिया परस्पर विरुद्ध धर्मों से समन्वित है रंज-ओ-राहत,वस्ल-ओ-फुरकत-,होश-ओ-वहशत क्या नहीं, कौन कहता है कि रहने की जगह दुनिया नहीं। गालिब नारीलोक में गर्भपात पढ़, हृदयतंत्र हो गया है छार। वाणी की शक्ति अपरिमित है लघुकविता द्वय पढ़ मन से, हास्यव्यंग्य सुख नमस्कार।। जख्म तलवार के गहरे भी हों मिट जाते हैं। बालवार्ता बुद्धि चतुरता, बोधगम्य जो कथा प्रसंग। लफ्ज तो दिल में उतर जाते हैं भालों की तरह। मिल्पसंख्यक यदि जैन बनें तो, लाभपूर्ण है बड़ा प्रसंग।।। सागर पालनपुरी 5 बड़े बाबा की शरण सलौनी. छोटे बाबा करे बखान। रतनचन्द्र जी के अभिनन्दन का, अनुकरणीय है प्रसंग महान॥|| पुरुषार्थसिद्धि के प्रयत्न से ही जीवन सार्थक होता है जैन कुम्भ जो कुण्डलपुर का, रवीन्द्र जैन की एक रिपोर्ट।। किसी की चार दिन की जिन्दगी सौ काम करती है, प्रथम दिवस से अन्तिम दिन तक, पढ़ बड़े बाबा को दो धोक। किसी की सौ बरस की जिन्दगी से कुछ नहीं होता। ताहिरा भू-वैज्ञानिक परिस्थितियों का, तथ्यपूर्ण है चिन्तन सार। लख निस्पृहता मात-चिरोंजा, गुरुकृपा का पा प्रसाद॥ मृत्यु संसरण का अन्त नहीं तीर्थ सुरक्षा लक्ष्य बना है, सार्थक पहल की, जैन समाज। विद्यासागर अष्टक लिखकर, पज्य पं. जी गये सिधार॥ मरके टूटा है कहीं सिलसिला-ए-कैदे-हयात, फ़क़त इतना है कि जंजीर बदल जाती है। कवर पृष्ठ पर प्रवेश शिविर है, जैन श्रवण संस्कृति संस्थान। सांगानेर व अशोक नगर में, जिनभाषित समीक्षा आद्योपान्त॥ जीव अनादि से अज्ञानान्धकार में भटक रहा है जन-जन तक पहुंचे जिनभाषित, जन-जन का हो नितकल्यान। ना इब्तिदा की खबर है ना इंतिहा" मालूम, जन-जन का हो नित मंगल, जन-जन बने जिनवर भगवान॥ | रहा ये वहम कि हम है सो भी क्या मालूम। हसरत मोहानी जिन भाषित परिवारसम्पादक श्री रतनचंद्र जी, विद्वद्वर श्री जनभाषित परिवार। सहयोगी सम्पादक पंचशीलसम पंच शारदासुत रहे सँवार। 1. चकाचौंध, 2. संयोग-वियोग, 3. समझदारी और सर्वोदय जैन विद्यापीठ प्रकाशक, नगर आगरा उत्तर प्रान्त। पागलपन, 4. जीवन के बन्धन में बंधे रहने का क्रम, 5. आदि, पढ़कर जो आह्लाद हृदय में, दी शब्दावलो 'पवनदीवान'। 6. अन्त पं. पवनकुमार शास्त्री 'दीवान' 13, आनन्द नगर, आधारताल, प्राध्यापक श्री गोपाल दि. जैन सि. सं. महा. मुरैना (म.प्र.)474001 | जबलपुर-482004 (म.प्र.) - मई 2001 जिनभाषित 5 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org ४ . ।
SR No.524252
Book TitleJinabhashita 2001 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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