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________________ विषय सामग्री ने पत्रिका को गरिमा प्रदान की है। आपको कोटिशः बधाई। श्रीपाल जैन 'दिवा' शाकाहार सदन, एल-75, केशरकुंज, हर्षवर्धन नगर, भोपाल-3 'जिनभाषित' का अप्रैल 2001 का अंक प्राप्त हुआ। हार्दिक धन्यवाद । अंक में दी गई सामग्री न केवल पठनीय है, वरन् संग्रहणीय एवं अनुकरणीय भी है। भगवान महावीर के 2600 वें जन्मकल्याणक महोत्सव के वर्ष में उनके सन्देशों का व्यापक प्रचार- प्रसार आवश्यक ही नहीं, अतिआवश्यक है, विशेषकर आज के इस आपाधापी वाले युग में तो वे अतिप्रासंगिक हैं। उनके अनेकान्तवाद और अपरिग्रहवाद आज विश्व की समस्याओं को सुलझाने में सक्षम हैं। केवल आवश्यकता उनको खुले मस्तिष्क से समझने की है। इसके अतिरिक्त यह महोत्सव महानगरों तक सीमित न रहकर भारत के गाँवगाँव तक मनाया जावे और देश के प्रत्येक जैन मंदिर एवं शास्त्र भण्डार में संगृहीत हस्तलिखित ग्रन्थों का सूचीकरण होना चाहिए। मूर्तिलेखों का भी संग्रह आवश्यक है। विश्वास है "जिनभाषित' इसदिशा में आवश्यक पहल करेगा। इस कार्य में मैं अपनी सेवाऐं जितनी भी जरूरी हों देने के लिये तत्पर हूँ। डॉ. तेजसिंह गौड़, एल-45, कालिदास नगर, पटेल कालोनी, उज्जैन-456006 'जिनभाषित' का अप्रैल 2001 का अंक देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई। इसके आकर्षक सचित्र आवरणपृष्ठ ने भी मन मोह लिया। सम्पादकीय एवं 'महावीर प्रणीत जीवनपद्धति की प्रासंगिकता पूर्णरूपेण सामयिक आलेख हैं। चारों अनुयोगों का सार इस पत्रिका में समाहित है। आबाल-वृद्ध, पुरुष-महिला सभी के लिए उपयोगी एवं वर्तमान स्थितियों से अवगत कराने वाली यह पत्रिका उन्नति के शिखर का स्पर्श करे, ऐसी शुभकामना है। डॉ. आराधना जैन, मील रोड, गंज बासोदा (विदिशा) म.प्र. मई 2001 जिनभाषित 4 Jain Education International 'जिनभाषित' का अप्रैल 2001 का अंक प्राप्त हुआ। यह जानकर अत्यन्त प्रसन्नता हुई कि आपके ज्ञानगाम्भीर्य का लाभ हमें पत्रिका के माध्यम से भी सुलभ होता रहेगा। पत्रिका के इस अंक में आपके वैदृष्य की झलक स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर हो रही है। सभी आलेख, नवनीत, बोधकथा, शलाकापुरुष, नारीलोक, अल्पसंख्यक मान्यता से जैनसमाजको लाभ एवं कुण्डलपुर पर विशेष सामग्री सभी प्रेरणादायी एवं ज्ञानवर्धक हैं। मैं पत्रिका के अनवरत प्रकाशन की कामना करती हूँ । डॉ. श्रीमती कृष्णा जैन सहा. प्राध्यापक-संस्कृत विभाग, शा. महारानी लक्ष्मीबाई कला वाणिज्य महा. लश्कर, ग्वालियर 474009 "जिनभाषित" का महावीरजयन्ती विशेषांक प्राप्त हुआ। सामग्री का चयन पठनीय है, छपाई सफाई भी सुन्दर है। श्री निहालचन्द जी के सुझाव अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। मेरा अपना विचार यह है कि सरकार पर निर्भरता या धन से कोई आयोजन असरकारी नहीं होता। असरकारी स्तर पर किया गया काम ही असरकारी होता है। जमनालाल जैन अभय कुटीर, सारनाथ (वाराणसी) 221007 'जिनभाषित' का अप्रैल अंक प्राप्त हुआ। धन्यवाद वर्तमान समय में पत्रिकाओं का बाहुल्य हो रहा है। अगर पत्रिका अपनी कोई पहचान बना सके तो उपयोगी होगी। पत्रिका के लिये निष्पक्षता भी आवश्यक है। पत्रिका के सम्पादक मंडल में माने हुए विद्वान् हैं अतः अपेक्षा यह है कि पत्रिका का स्वरूप भविष्य में भी ठीक रहेगा। श्रद्धेय पू. पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य द्वारा रचित 'विद्याष्टक' को काफी समय से खोज रहा था, मिल नहीं पा रहा था। आपने पत्रिका के माध्यमसे उपलब्ध करा दिया. इस हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद। पत्रिका के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ। आप बहुत-बहुत बधाई | डॉ. हरिश्चन्द्र शास्त्री सहा. प्राचार्य श्री गोपाल दि. जैन सिद्धान्त संस्कृत महाविद्यालय, मुरैना (म.प्र.) For Private & Personal Use Only 'जिनभाषित' पत्रिका का अवलोकन कर अत्यंत प्रसन्नता हुई सामग्री स्तरीय तथा पठनीय है। बधाई स्वीकार करें। समाज सुधार हो या न हो, लेकिन एक लेख अवश्य ऐसा प्रकाशित करें तो ठीक रहेगा। डॉ. नरेन्द्र जैन 'भारती सनावद (म.प्र.) 'जिनभाषित' अप्रैल 2001 प्राप्त हुआ। भगवान महावीर के 2600 वें जन्मकल्याणक महोत्सव के लिए समर्पित इस अंक को चाँदनपुर (श्री महावीर जी) में विराजित भ. महावीर के मनोज्ञ प्रतिमा-चित्र से मण्डित किया गया है, जो अत्यंत प्रासंगिक है। पत्रिका को पूर्ण आस्था और विश्वास के साथ आद्योपान्त पढ़ा। विषयसामग्री का चयन और संयोजन स्तरीय एवं गरिमामय है। स्वर्णयुग के प्रतिनिधि पं पन्नालाल जी साहित्याचार्य के महाप्रयाण पर लिखा गया सम्पादकीय श्रद्धासुमनों के सौरभ से ओतप्रोत है 'कुण्डलपुर की भूवैज्ञानिक परिस्थितियों का विवेचन पढ़कर नवीन मंदिर के निर्माण की आवश्यकता सबकी समझ में आ जायेगी। संक्षेपेण अंक सुन्दर 2 संग्रहणीय पठनीय एवं ज्ञानवर्धक है। धर्मदिवाकर पं. लालचन्द्र जैन 'राकेश' नेहरू चौक, गली नं. 4, गंज बासोदा (विदिशा) म.प्र. 'जिनभाषित' अप्रैल 2001 का अंक पहली बार मुझे प्राप्त हुआ और इसे देखने-पढ़ने का मौका मिला। यूँ तो पत्रिकाएँ और जर्नल्स निकलती हो रहती है. पर जिनभाषित सब से कुछ अलग सा लगा। इसमें सब कुछ है और सबों के लिए है। मध्यप्रदेश से और भी जैन पत्रिकाएं निकलती होंगी, पर आप अपनी पत्रिका के माध्यम से जैन समाज और बुद्धिजीवी वर्ग की जो सेवा कर रहे हैं, वह प्रशंसनीय है। सभी लेख, कविता और संस्मरण पढने योग्य है जिनसे हम कुछ न कुछ सीख सकते हैं। डॉ. विनोद कुमार तिवारी रीडर व अध्यक्ष, इतिहास विभाग यू. आर. कालेज, रोसड़ा- 848210 (समस्तीपुर) बिहार www.jainelibrary.org
SR No.524252
Book TitleJinabhashita 2001 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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