SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 33
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीमती विमला जैन प्रो. रतनचन्द्र जैन का सम्मान जिला न्यायाधीश का सम्मान विराजमान परमपूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी के सुयोग्य शिष्य दिनांक 2 मई 2001, गंजबासोदा (विदिशा) म.प्र.। यहाँ पूज्य मुनिश्री क्षमासागर जी एवं पूज्य मुनिश्री भव्यसागर जी के शुभ सान्निध्य में श्री गीताज्ञान-आराधना-स्वतंत्र पारमार्थिक न्यास गंजबासौदा की ओर से 'जिनभाषित' के सम्पादक प्रो. रतनचन्द्र जी जैन के सम्मान का भव्य समारोह आयोजित किया गया। न्यास की स्थापना 'जैनमित्र' के भूतपूर्व सम्पादक स्व. पं. ज्ञानचन्द्र जी 'स्वतंत्र' की स्मृति में उनकी ज्येष्ठ पुत्री डॉ. आराधना जैन ने की | सम्मानविधि का प्रस्तुतीकरण अभिनव शैली में किया गया जो अत्यंत मनोहर था। इसके शिल्पी पूज्य मुनिश्री क्षमासागर जी थे। उनकी सन्निधि में सम्पन्न किया जाने वाला प्रत्येक समारोह, चाहे वह विद्वत्संगोष्ठी हो या विद्वत्सम्मान, उनकी चारुत्वदर्शी, वैज्ञानिक सुबुद्धि का स्पर्श पाकर रमणीय और स्मरणीय बन जाता है। उनकी कार्यशैली के विशिष्ट गुण है : आत्मानुशासन, समयानुशासन, वचनानुशासन और आचरणानुशासन। उनके सम्पर्क ड़े बाबा के महामस्तकाभिषेक समारोह के अवसर पर 23 | मात्र से सम्पूर्ण समाज का हृदय इन गुणों में परिनिष्ठित हो जाता है। सफरवरी 2001 को कुण्डलपुर में परम पूज्य आचार्य श्री | वह एक सूत्र में आबद्ध होकर अपने गुरु की बतलाई हुई रूपरेखा विद्यासागर जी, उनके संघस्थ सभी साधुओं एवं आर्यिकाओं के | को कार्यान्वित करने के लिय यंत्रचालित सा सक्रिय दिखाई देने सान्निध्य में श्रीमती विमला जैन, जिला एवं सत्र न्यायाधीश को भारत लगता है। मुनिश्री की कार्यशैली में भावसौन्दर्य, वाक्सौन्दर्य, सरकार के कपड़ामंत्री श्री धनंजय कुमार जी द्वारा ब्राह्मी-सुन्दरी- आचरणसौन्दर्य, वेशसौन्दर्य, वस्तुसौन्दर्य, दृश्यसौन्दर्य, संस्कृतिसौन्दर्य अलंकरण, 2001 से सम्मानित किया गया। डॉ. सुधा मलैया द्वारा और प्रस्तुतिसौन्दर्य इन बहुविध सौन्दर्यों का संगम होता है। इन सन् 2001 में बाह्मी एवं सुन्दरी के नाम पर यह अलंकरण स्थापित समस्त अनुशासनों और सौंदर्यों से मण्डित था यह सम्मान-समारोह। किया गया है। वह भारतीय संस्कृति और जैनसंस्कृति की सुगन्ध बिखरते हुए. ___ संविधानज्ञाता, चिंतक, लेखिका और कुशल गृहिणी, जिला | सम्मानभावना को अपनी चरम गरिमा के साथ अभिव्यक्ति देते एवं सत्र न्यायाधीश, न्यायिक सेवा क्षेत्र में सुविख्यात श्रीमती विमला हुए तथा दर्शकों के हृदय में वात्सल्यरस, प्रमोदभाव एवं गुणज्ञता जैन ने महाविद्यालयीन शिक्षा पूर्ण करने से लेकर न्यायिक शिक्षा की का संस्कार उबुद्ध करते हुए यथाभिलषित परिणति को प्राप्त हुआ। कठिन चुनौतियों तक का मुकाबला जिस लगन और आत्मसाधना | गंजबासौदा के सम्पूर्ण दिगम्बर, श्वेताम्बर और तारणतरण से किया है, वह प्रत्येक महिला के लिए अनुकरणीय है। समाज ने एक हृदय हो मुनिश्री के प्रति एवं विद्वद्गुणों के प्रति समर्पण विधि-विधायी कार्यों के साथ श्रीमती विमला जैन अनेक भाव से सम्मान समारोह में योगदान किया। तीनों समाजों के सामाजिक एवं साहित्यिक संस्थाओं से भी सरोकार रखती हैं। उन्होंने प्रतिनिधियों ने एक-एक कर आकर्षक प्रशस्तिपत्र एवं अनेक उपयोगी पर्यावरण, न्यायिक एवं ज्वलंत सामाजिक मुद्दों पर विभिन्न पत्र- | उपहारों से प्रो. रतनचन्द्र जी के प्रति अपनी आदरभावना प्रकट की। पत्रिकाओं में लेखन किया है। भारत में पर्यावरण विधि' (अंग्रेजी) उपहारों का प्रकार एक विद्वान् और श्रावक के ही अनुरूप था, जैसे तथा 'म.प्र. नगर विकास संहिता' (हिन्दी) इन दोनों पुस्तकों से उनके | जिनपूजा के रजतपात्र, पूजापरिधानः धोती-दुपट्टा, घड़ी, पेन आदि। बहुआयामी चिंतन तथा विषय पर पकड़ की झलक मिलती है। नकद राशि भी थी जो प्रो. रतनचन्द्र जी ने न्यास को ही दान कर न्यायपालिका, महिला कल्याण, धार्मिक तथा सामाजिक जागृति के क्षेत्र में रचनात्मक भूमिका के लिए उन्हें सरकारी-गैर सरकारी संगठनों समारोह की गरिमा में वृद्धि की आमंत्रित विद्वानों और श्रीमानों द्वारा पुरस्कृत किया गया है। अपने कार्य के सिलसिले में श्रीमती जैन | ने जिनमें शीर्षस्थ थे : प्रो. (डॉ.) भागचन्द जी 'भागेन्दु' श्री सुरेश ने विश्व के अनेक देशों में भ्रमण किया है तथा अपने व्यापक अनुभवों | जेन आई.ए.एस. एवं स्व. पं. वंशीधर जी व्याकरणाचार्य के सुपुत्र का उपयोग जनसेवा तथा न्यायिक कार्यों में कर रही हैं। श्री विभवकुमार जी कोठिया, बीना। स्थानीय विद्वान् प्रो. पी.सी. श्रीमती जैन के पति श्री सुरेश जैन, मध्यप्रदेश सरकार के वरिष्ठ | जैन, श्रीनन्दन जी दिवाकीर्ति एवं पं. लालचन्द्र जी राकेश ने समारोह अधिकारी हैं और उनके सतत प्रयासों से भोपाल में आचार्य | को सफल बनाने में सक्रिय योगदान किया। विद्यासागर इंस्टीट्यूट आफ मैनेजमेंट स्थापित की गई है। । अन्त में अपने प्रवचनामृत की वर्षा करते हुए पूज्य मुनिश्री 'जिनभाषित' परिवार की ओर से श्रीमती विमला जैन को हार्दिक | क्षमासागर जी ने प्रो. रतनचन्द्र जी को शुभाशीष प्रदान किया कि बधाई। वे जिनवाणी एवं 'जिनभाषित' की सेवा करते हुए अणुव्रतों से ऊपर सम्पादक | उठने की भावना रखें एवं प्रयत्न करें। -मई 2001 जिनभाषित 31 For Private & Personal Use Only | दी। Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.524252
Book TitleJinabhashita 2001 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy