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________________ बालवार्ता बुद्धिचातुर्य की कथाएँ मरणासन्न हाथी उज्जयिनीनरेश की हस्तिशाला का एक हाथी रुग्ण हो गया। हस्ति-चिकित्सकों ने हाथी को देखा और कहा कि इसका रोग असाध्य है, यह बच नहीं पायेगा। यह कुछ ही दिनों का मेहमान है। राजा ने विचार किया इस मरणासन्न हाथी के माध्यम से रोहक के बुद्धि-कौशल की परीक्षा की जाए । यह सोचकर राजा ने वह मरणासन्न हाथी नट-ग्राम में भिजवा दिया। हाथी के साथ उसके खाने-पीने की काफी सामग्री भी भिजवा दी। साथ ही साथ राजा ने गाँव वालों को यह आदेश भिजवाया 'यह हाथी रुग्ण है। इसे पर्याप्त खाना पीना दें। इसकी सेवा करें तथा इसके स्वास्थ्य के सम्बन्ध में नित्य प्रति समाचार भेजते रहें, किन्तु कभी भूलकर भी मुझे यह समाचार न दें कि हाथी की मृत्यु हो गई है। यदि किसी ने आकर यह समाचार दिया तो मैं उसे प्राण- दण्ड दूँगा ।' नट बड़े भयभीत हुए हाथी की भलीभाँति देख-रेख सेवा परिचर्या करते हुए। आखिर एक दिन हाथी की मृत्यु हो गई। नट. बहुत दुःखित हुए, अब क्या करें। हाथी के स्वास्थ्य संबंधी समाचार नित्य प्रति भेजने के क्रम के अंतर्गत राजा को सूचित करना आवश्यक था। किन्तु, हाथी के मरने का समाचार कहना उनके लिए दुःशक्य था, क्योंकि वैसा कहने वाले के लिए राजा की ओर से 'मृत्यु दण्ड निर्धारित था। वे चिन्तित थे कि हाथी के स्वास्थ्य के संबंध में कुछ भी सूचना न देने से राजा क्रुद्ध होगा तथा हाथी के मरने की सूचना देने का उनको साहस हो नहीं रहा था। उन सबकी आशा का केन्द्र रोहक था। उन्होंने उसके समक्ष अपनी चिन्ता उपस्थित अप्रैल 2001 के 'जिनभाषित' में आपने चतुर वालक रोहक के बुद्धिचातुर्य का प्रदर्शन करने वाली दो कथाएँ पढ़ी थीं। अब तीन कथाएँ और प्रस्तुत की जा रही हैं। Jain Education International कि वे राजा को इसका क्या उत्तर दें। नट राजा के पास आये। उन्होंने राजा से कहा'महाराज ! आपका हाथी तो अपनी जगह से उठता तक नहीं है।' दूसरा बोला 'हाथी का उठना तो दूर मई 2001 जिनभाषित 30 रहा, उसके तो कान तक नहीं हिलते उसके नेत्रों की पलकें तक नहीं झपकतीं, नेत्रों की पुतलियाँ भी स्थिर हैं। ' राजा ने कहा- 'क्या हाथी की मृत्यु हो गई ?' तीसरे ने कहा ऐसा नहीं बोल सकते घास खाता है और न 'अन्नदाता ! हम तो पर आपका हाथी न पानी ही पीता है।' चौथा नट बोला- 'राजन् और बातें तो दूर रहीं, आपका हाथी साँस तक नहीं लेता।' राजा झुंझलाया और पूछने लगा'सच-सच कहो, क्या हाथी मर गया?' नटों ने कहा- 'अन्नदाता! ऐसे शब्द हम कैसे कह सकते हैं? ऐसा कहने के तो आप ही अधिकारी हैं। हाथी के स्वास्थ्य सम्बन्धी समाचार आप तक पहुँचाना हमारा काम है। उसके स्वास्थ्य की जैसी स्थिति है, हमने आपको निवेदित कर दी है।' नटों की बातचीत में रोहक की बुद्धिमत्ता बोल रही है, यह राजा ने मन-हीमन अनुभव किया। वह प्रसन्न हआ। उसने नटों को पारितोषिक दिया। नट वापस अपने गाँव को आ गये। गाँव का कुआँ नगर में भेजो राजा इतना होने पर भी कुछ और परीक्षा करना चाहता था। उसने एक दिन नटग्राम के नटों के पास अपना संदेश भेजा'तुम्हारे गाँव में एक कुआँ है। उसका जल बहुत मधुर और शीतल है। हमारे नगर में ऐसा प्रस्तुति श्रीमती चमेलीदेवी जैन रोहक ने राजा को कैसे उत्तर दिया जाए, यह युक्ति उनको बतला दी। तदनुसार खे नट राजा के पास आए और जैसा रोहक ने समझाया था, वे राजा से बोले 'महाराज हमारे गाँव For Private & Personal Use Only - का कुआँ हम गाँववासियों की तरह बड़ा भोला है। अकेले नगर में आने में उसे बड़ी झिझक है, संकोच है। वह कहता है कि मैं अपने जातीय जन उज्जयिनी के कुएँ के साथ वहाँ जा सकता हूँ। अकेला नहीं जा सकता। अकेले जाने में बहुत झिझकता हूँ। की रोहक ने उन्हें अच्छी तरह समझा दिया कुआँ नहीं है। अपने गाँव के कुएँ की हमार हुई। राजा ने अब तक जितने भी प्रकार से नगर में भेज दो। यदि ऐसा नहीं कर सके तो तुम कठोर दंड के भागी बनोगे।' ज्यों ही नटों को यह संदेश मिला, वे तो घबरा गए। वे रोहक से बोले- 'पहले की तरह हमको तुम ही इस संकट से बचा सकते हो।' परीक्षा की, रोहक उन सब में उत्तीर्ण हुआ। अब राजा के मन में उसे अपने पास बुलाने की तीव्र उत्कंठा उत्पन्न हुई। मुनिश्री नगराजकृत' आगम और त्रिपिटक' से साभार 137, आराधना नगर, भोपाल 'स्वामिन! आप से विनम्र निवेदन है, आप उज्जयिनी के किसी कुएँ को हमारे साथ हमारे गाँव भेज दें। वहाँ से दोनों कुएं आपके पास आ जायेंगे।' उज्जयिनी नरेश मुस्कुराया, मन-हीमन समझ गया, यह रोहक की बुद्धि का चमत्कार है। पूर्व के वन को पश्चिम में करो राजा ने सोचा- रोहक की एक परीक्षा और ले लूँ वह इसमें सफल रहा तो उज्जयिनी बुला लूँगा । राजा ने नटों के पास सन्देश भेजा कि तुम्हारे नट- ग्राम की पूर्व दिशा में एक वन है, उसको तुम पश्चिम दिशा में कर दो। गाँव के नट बड़ी उलझन में पड़े कि वन को पूर्व दिशा से उठाकर पश्चिम दिशा में कैसे लाया जा सकता है। रोहक ने उन्हें इस समस्या का समाधान देते हुए कहा- 'अपन लोगों को चाहिए कि वन के दूसरी ओर जाकर अपना गाँव बसा लें।' सबने अपनी घास-फूस की झोपड़ियाँ मिट्टी के कच्चे घर वन की दूसरी ओर बना लिए। वहीं बस गए। फलतः वह वन स्वयं ही नटों के गाँव की पश्चिमी दिशा में हो गया। राजा को यह जानकर बड़ी प्रसन्नता www.jainelibrary.org
SR No.524252
Book TitleJinabhashita 2001 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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