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________________ इंटरनेट, मॉडलिंग के माध्यम से नित नये | की गरिमा बढ़ती है। लेकिन सिर्फ फैशन या | बच्चों में कपड़ों के नित नये-फैशन अपनाने फैशनेबल कपड़े दिखाये जाते हैं। गाँव-गाँव, | दिखावे के नाम पर कुछ भी पहनना हमारे | की होड़ लगी रहती है। शहर-शहर और देश-विदेश में बढ़ती सौंदर्य मापदण्डों पर सही नहीं उतरता। यदि आप धार्मिक कार्यों में भी हमें पहनावे में प्रतियोगिताएँ और उनमें शामिल फैशन- एयरहोस्टेस या ऐसी ही कोई सर्विस में हैं तो | शालीनता बरतनी चाहिए। मंदिर सादे वस्त्र परिधान एक व्यामोह सा पैदा कर रहे हैं।। आधुनिक ड्रेस आपकी पर्सनालिटी का हिस्सा पहनकर ही आना चाहिए। हमारे यहाँ धोती आधे-अधूरे वस्त्र पहिनने में संकोच का | है। पर यदि एक हाउस वाइफ सब्जी का थैला दुपट्टा, साड़ी धार्मिक पोशाक हैं। पर कुछ भी अनुभव नहीं हो रहा है। आज फूहड़ और | लिये आधुनिक ड्रेस पहनकर बाजार जाये या पहनने की छूट से हमारी धार्मिक मर्यादा को भड़कीली अश्लील पोशाकों से नारी की | कॉलेज की छात्रा आधुनिक ड्रेस पहनकर | ठेस पहुंची है। धार्मिक उत्सव, समारोहों में अस्मिता ही खतरे में पड़ गयी है। बढ़ती हुई | कॉलेज जाये तो विसंगति दिखाई देगी ही। | पेंट शर्ट, जीन्स पहने पूजन करते देख थोड़ाबलात्कार छेड़छाड़ की घटनाएँ और आंकड़े पहनावे का जिक्र हो तो आधुनिक ड्रेस | बहुत क्षोभ तो होता ही है। पूछते हैं कि क्या नारी सुरक्षित है? पहनावे जीन्स का चर्चा होना सहज है। एक रिक्शा | आज पूरा विश्व संस्कृति को बचाने की का अमर्यादित रूप हमारे नैतिक मापदण्डों | चालक से लेकर बहुराष्ट्रीय कम्पनी के उच्च | मुहीम में लगा है, विकसित देशों विशेषकर पर सही नहीं उतर पा रहा है अतः हम अपने अफसर तक जीन्स के दीवाने नजर आते हैं। दक्षिण पूर्वी एशिया, अफ्रीका आदि देशों में विवेक का प्रयोग करें और अपने आपको यूं तो जीन्स की अनेक खूबियों ने छोटे-बड़े| उनकी संस्कृति के साथ खिलवाड़ हो रहा है। भोग्या के रूप में पेश न करें। सभी के बीच इसे लोकप्रिय ड्रेस बना दिया कृत्रिम और भोगवादी पाश्चात्य जीवन शैली हम 21वीं सदी में आ गये हैं। हरक्षेत्र है पर मौके-बेमौके और फूहड़ तरीके से इस | को अपनाकर हम सुख समृद्धि नहीं अपितु में मानो चमत्कार हो रहे हैं क्या आर्थिक, क्या | पोशाक के प्रदर्शन ने इसे आलोचना का केन्द्र विनाश को गले लगा रहे हैं, हम पहनावे के राजनैतिक, क्या सामाजिक, क्या शैक्षणिक | भी बनाया है। इसके प्रदर्शन को देखते हुए। माध्यम से अपनी संस्कृति को गरिमामय पर सबसे अधिक चमत्कार हुए हैं तो वह है | अनेक बार स्कूल-कॉलेजों के प्रिसिंपल, बनाएँ और बदलती हुई परिस्थितियों में अपने हमारे पहनावे में, हमारी ड्रेस में। अपनी रुचि | स्वयंसेवी संस्थाओं ने इसके विरोध में जीवन मूल्यों को बचाएँ और संयमित जीवन के अनुसार वस्त्र पहनना प्रत्येक व्यक्ति का आवाज उठायी है। पर कौन किसकी सुन रहा शैली अपनायें। अधिकार है। समय के साथ वेशभूषा में | है। शुरूआत तो हम सबको स्वयं करनी हम भ. महावीर की 2600वीं जन्म परिवर्तन आया है आज की पीढ़ी अपने | पड़ेगी और इस धारणा को भी बल देना पड़ेगा जयन्ती मना रहे हैं। उनका प्रमुख सिद्धांत पहनावे के प्रति सजग है, व्यक्तित्व के कि 'कपड़े कपड़ों की तरह पहनो शो पीस अपरिग्रह है। हम सब नियम लें कि कपड़ों/ 'निर्धारण में पहनावे की उपयोगिता दिख रही | की तरह नहीं।' ड्रेसों की एक सीमा निश्चित करेंगे। कपड़ों से है। अपनी कद-काठी रूप रंग और अपने काम इस फैशनेबिल प्रवृत्ति के दोषी माता- भरी अलमारियों में से कुछ कपड़े जरूरत मंद काज के हिसाब से वस्त्रों को चुनना उचित पिता भी हैं। बचपन से ही बच्चों को एक से लोगों में वितरित कर देंगे। समय रहते चेतें है। व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाने में एक आधुनिक टिपटॉप ड्रेस पहनाकर शो और आने वाली पीढ़ी को सुसंस्कारित करें। पहनावे का योगदान महत्त्वपूर्ण है। यहाँ तक | बाजी करते हैं। मेरा बच्चा सबसे अलग 6, शिक्षक आवास कि कम्प्यूटर के माध्यम से ड्रेस सेट होने लगी | दिखे, सोसाइटी में हमारा रौब रहे ऐसी ड्रेस श्री कुन्दकुन्द (पीजी) है। ड्रेस का चयन उचित ढंग से हो तो व्यक्ति | किसी के पास न हो। ऐसे माहौल में बड़े हुए ___ कालेज, खतौली -251201 उ.प्र. गजल भूल और सुधार भूल जो नहीं अपने, उन्हें अपना बनाने निकले, खुद पे आती है हँसी, कैसे दीवाने निकले। जलके खुद खाक हुआ, अपनी विरासत का महल, जिन कषायों से, जमाने को जलाने निकले। नाव खूटे से बँधी, खूब चली पतवारें, पार तरने के शुभारंभ, बहाने निकले। काँच पत्थर से भरी झोलियाँ खनकती हैं हाथ से हाय! कोहनूर खजाने निकले। • ऋषभ समैया 'जलज' सुधार राग और द्वेष की काजल की कोठरी में जब, शुद्ध समभाव का सुखदीप जलाने निकले। शुद्ध का लक्ष्य लिए, शुभ की डगर पर चलकर, भेद-विज्ञान चरण, मंजिलें पाने निकले। पर में खोजा तो भटकने के सिवा कुछ न मिला, रत्नत्रय कीमती खुद अपने सिरहाने निकले। उनकी महिमा का कोई पार नहीं है साथी, तत्त्व की प्रीति से , निज आत्म सजाने निकले। निखार भवन, कटरा बाजार, सागर 470002 म.प्र.) -मई 2001 जिनभाषित 29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524252
Book TitleJinabhashita 2001 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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