SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 21
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्मरण छोटे मियाँ सुभान अल्लाह • पं. मूलचन्द लुहाड़िया बात तब की है जब सन् 1976 में परम | ने भी आचार्यश्री को तनिक भी विचलित नहीं | जीवित रहना कठिन है। इस समय इनको बापूजनीय आचार्य विद्यासागर महाराज | किया। उस समय मैं वहाँ ही बैठा था। मैंने बेहोश हो जाना चाहिए। किन्तु इनके चेहरे पर बुदेलखण्ड में प्रथम बार प्रवेश कर कटनी | भी पत्र पढ़ा, आचार्यश्री मौन, चिंतनलीन बैठे खिला स्मित हास्य एवं दिव्य तेज इनके पहुँचे थे। कटनी पहुँचने से पूर्व ही आचार्य | थे। मैं, वातावरण की स्तब्धता को भंग करते जीवित बने रहने की घोषणा कर रहे हैं। डाक्टर श्री स्वयं तो अस्वस्थ थे ही किन्तु उनके हुए बोला- आचार्यश्री! क्षुल्लक जी की साहब ने कहा मैं तो आश्चर्य चकित हूँ, इन गृहस्थ अवस्था के सहोदर एवं प्रथम साधु समाधि की स्थिति में तो आपको कटनी महात्मा जी के आगे तो मेडिकल विज्ञान के शिष्य क्षुल्लक समयसागर जी भी कटनी | पधारना ही चाहिए। ऐसे अवसर पर तो नियमों | सिद्धांत फेल होते लग रहे हैं। आकर तीव्र ज्वर से पीड़ित हो गए। ज्वर की उपेक्षा करने की भी आगम आज्ञा देता पंडित जी ने आगे कहा किन्तु आज निरंतर बना रहने लगा और 105-106 | है। आचार्यश्री ने मौन तोड़ा। कहने लगे अब | प्रातः काल से क्षुल्लक जी के स्वास्थ्य में डिगरी को छूने लगा। चातुर्मास स्थापना का मेरा कटनी जाना संभव नहीं है। यदि कदाचित् आश्चर्य जनक परिवर्तन परिलक्षित हो रहा है। समय निकट आ रहा था। आचार्य श्री के मन क्षुल्लक जी की समाधि का अवसर आ भी ज्वर भी कम हुआ है और इन्होंने आहार के में नगरीय क्षेत्र को छोड़कर तीर्थक्षेत्र कुंडलपुर जाए तो पंडित जी भली प्रकार समाधि कराने समय औषधि, दूध आदि भी लिया है। दिन में चातुर्मास करने के भाव थे। किन्तु स्वयं में सक्षम हैं। उन्होंने मुझे कहा कि पंडित जी में धीरे-धीरे स्थिति सुधरती सी लग रही है। की अस्वस्थता एवं क्षुल्लक जी का तीव्र ज्वर | को लिख दो कि समाधि का अवसर आने पर हम अंदर कमरे में क्षुल्लक जी के दर्शन करने कुंडलपुर के लिये प्रस्थान करने में बाधक बन | आप आगमानुसार समाधि करा देवें। मैं | पहुँचे। इच्छामि निवेदन कर बैठे। क्षुल्लक जी रहे थे। आचार्य श्री परिस्थितियों के द्वंद्व में जानता था कि आचार्य श्री प्रायः अपना निर्णय के भीतर का अध्यात्म आधारित दृढ़ आत्म निर्णय नहीं कर पा रहे थे। अंत में अंतर में नहीं बदलते हैं। अतः उनसे अधिक आग्रह विश्वास चेहरे पर खिली स्मित मुस्कान एवं बैठे सहज निस्पृही संत की विजय हुई और | करना सार्थक नहीं है। मैंने आचार्यश्री से कहा तेज के रूप में बाहर दिखाई दे रहा था। इस अध्यात्म के संबल से उत्पन्न साहस के बल यदि आपकी आज्ञा हो तो हम कटनी चले अध्यात्म के आगे रोग घुटने टेक देता है। पर आचार्यश्री क्षुल्लक समय सागर जी को | जाएँ। आचार्यश्री ने सहज भाव से उत्तर दिया असाता वेदनीय असहाय हो भाग खड़ा होता तीव्र अस्वस्थता की दशा में कटनी में ही जैसी तुम्हारी इच्छा। है। हमें तो क्षुल्लक जी महाराज का अंग-अंग छोड़कर कुंडलपुर की ओर बिहार कर गए। हम दोनों कार में बैठकर सायंकाल उनके स्वास्थ्य में सुधार के समाचार दे रहा भाई का मोह न सही, किन्तु अपने प्रथम युवा कटनी आ गए। कार कटनी में शिक्षा संस्थान था। हमारे पूछने पर क्षुल्लक जी बोले मैं शिष्य का राग भी उस महान संत को अपने भवन के सामने रुकी, जहाँ क्षुल्लक जी बिल्कुल ठीक हूँ। निश्चय से नहीं डिगा सका। विराज रहे थे। बाहर दालान में पंडित जी, जो | पंडित जी अपने कहे हुए मुहावरे के आचार्यश्री के कुंडलपुर पहुँचने के 1-2 सामायिक से उठे ही थे, मिल गए। मैंने पूछा. | प्रसंग में बोले कि बड़े महाराज आचार्यश्री की दिन बाद ही मैं और मेरे साथी दीपचंद जी पंडित जी क्षुल्लक जी महाराज कैसे हैं?' सहन शीलता तो हमने देखी कि वे अपनी चौधरी वहाँ पहुँच गए थे। आचार्यश्री के पंडित जी का दिया हुआ वह उत्तर आज भी अस्वस्थ दशा में भी कटनी से बिहार कर प्रस्थान करने के बाद कटनी में क्षुल्लक जी | मेरे कानों में गूंजता रहता है। पंडित जी बोले कुंडलपुर पहुँच गए, किन्तु इन छोटे महाराज का स्वास्थ्य अधिक खराब होने लगा। एक | 'बड़े मियाँ सो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सुभान क्षुल्लक जी की सहनशीलता, धैर्य, समता दिन जब क्षुल्लक के स्वास्थ्य की स्थिति | अल्लाह'। उन्होंने आगे कहा कल क्षुल्लक जी देखकर तो हम सब आश्चर्य चकित थे। शरीर अत्यंत चिंता जनक बनी तो पं. जगन्मोहन | की स्थिति अत्यंत चिंता जनक हो गई थी। | में 106-107 डिग्री ज्वर और चेहरे पर लाल जी शास्त्री ने पत्र लेकर एक व्यक्ति को ज्वर ने 107 डिग्री को छू लिया था। कटनी स्मित हास्य मानों कुछ हुआ ही न हो। ये छोटे कार से कुंडलपुर भेजा। पत्र में पंडितजी ने | में वर्धा से संत बिनोबा भावे के व्यक्तिगत महाराज तो मौत के मुंह में पहुँच कर इस तरह आचार्य श्री से निवेदन किया था कि क्षुल्लक डाक्टर आए हुए थे। हमने उनको क्षुल्लक जी मुस्कराते रहे कि मौत भी डर कर भाग गई। जी महाराज अत्यंत अस्वस्थ हैं, समाधि की महाराज को देखने बुलाया। डाक्टर साहब ने इसीलिए मैंने कहा था 'बड़े मियाँ तो बड़े स्थिति बन गई है अतः वे तुरंत कटनी पधार क्षुल्लक जी की नाड़ी, हृदय, रक्त चाप आदि मियाँ, छोटे मियाँ सुभान अल्लाह।' जावें। पंडित जी ने सलाह दी थी कि ऐसी | का परीक्षण किया और कुछसमय बाद बाहर मदनगंज-किशनगढ़- 305801 आपातकालीन परिस्थिति में आप कार का | आकर बोले भाई स्थिति तो बहुत गंभीर है। (जिला- अजमेर) राजस्थान उपयोग कर लेवें। पत्र के इन गंभीर समाचारों | हमारे मेडिकल विज्ञान के अनुसार तो इनका | -मई 2001 जिनभाषित 19 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524252
Book TitleJinabhashita 2001 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy