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________________ 'इसी प्रकार इंद्रियों को अनावश्यक विषयभोग के व्यसन से बचाया जा सकता है। इसे ही जैन आचार में दम या इन्द्रियदमन कहा गया है और इसी कारण इन्द्रियदमन की आवश्यकता प्रतिपादित की गयी गीत तुम बजाय इसके कि कोई सूर्य जनमते • अशोक शर्मा इन्द्रियदमन अपरिहार्य फ्रायड के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों का प्रचार होने के बाद 'दमन' शब्द खतरनाक मालूम होने लगा है, पर इच्छाओं के विसर्जन में इसकी मनोवैज्ञानिकता सिद्ध है। रागजन्य इच्छाओं को ज्ञानजन्य वैराग्य से विसर्जित किया जा सकता है, किन्तु व्यसनजन्य और गृद्धिजन्य (इन्द्रियलोभजन्य) तथा अन्य दैहिक उत्तेजनाजन्य अनावश्यक तुम बजाय इसके कि कोई सूर्य जनमते, इच्छाओं से मुक्ति पाने के लिए इन्द्रिय दमन अपरिहार्य है। ड्योढ़ी की जलती कन्दीलें बुझा गये। हानिकारक नहीं इन्द्रियदमन अर्थात् शरीर में उत्पन्न होने वाली अस्वाभाविक छत पर चढ़ते देखा हो जिसने सूरज को एवं अनावश्यक उत्तेजनाओं को नियंत्रित करना हानिकारक नहीं है, वह पूरब की प्रसव-वेदना क्या जाने? बल्कि स्वास्थ्यप्रद एवं शान्तिप्रद है। अस्वाभाविक एवं अनावश्यक जो कैद उजाले की मुट्ठी में रहता हो इच्छाएँ एक दैहिक विकृति है। विषयभोग द्वारा विकृति का पोषण वह अँधियारों के शिविर भेदना क्या जाने? अस्वाभाविक इच्छाओं की उत्पत्ति द्वारा आर्त्तभाव को जन्म देता है और आर्तभाव (मानसिक पीड़ा) अनेक मनोरोगों और शारीरिक तुम बजाय इसके कि कोई दुर्ग जीतते. व्याधियों को प्रतिफलित करता है। अतः अस्वाभाविक एवं उठी हुई सारी संगीनें झुका गये। अनावश्यक उत्तेजनाओं को निष्क्रिय कर देने से आर्त्तभाव की उत्पत्ति का महान कारण निरस्त हो जाता है जिससे स्वास्थ्य और शान्ति की उपलब्धि होती है। सपनों के लुटने का दुःख तुम क्या जानो उत्तेजनाओं का नियन्त्रण क्रमशः हाँ, ऐन्द्रिय उत्तेजनाओं का नियंत्रण क्रमशः किया जाना चाहिए। आँख तुम्हारी टूटे सपने कब ढो पाई? जितने अंश में रागभाव विगलित होने पर चारित्रिक क्षमता उत्पन्न खिलती बगिया पर अपना भी हक जता रहे हुई है उतने ही अंश में ऐन्द्रिय उत्तेजनाओं का दमन करना युक्त है। स्वेद बहाते किन पाँवों में पड़ी बिवाई? ऐसा होने पर चारित्रिक विकृति के लिए अवकाश न रहेगा। तुम बजाय इसके कि कोई चित्र बनाते, उन्मुक्त भोग दमन का विकल्प नहीं कैनवास पर खिंची लकीरें मिटा गये। वैराग्यविहीन अथवा क्षमताविहीन इन्द्रियदमन से चारित्रिकविकृतियाँ उत्पन्न होती हैं। उनसे बचने के लिए फ्रायड ने जो उन्मुक्त भोग का उपाय बतलाया है वह भारतीय आचार संहिता में अंगीकृत नहीं किया गया, क्योंकि यह तो उस औषधि के समान अमृतघट ही जिन ओठों की प्यास रही हो, है जो रोगी को एक साधारण रोग से बचाने के लिए उससे भी भयंकर वे शिवकण्ठों का गरल पचाना क्या जानें? रोग से ग्रस्त कर देती है। इच्छाओं का वैराग्यविहीन दमन जितना हानिकारक है उससे भी कहीं ज्यादा घातक उन्मुक्त भोग है। इसके घाट पराये नाव लगा बैठे जो अपनी लोमहर्षक परिणाम हम अमेरिका जैसे स्वच्छन्द भोगी देशों में दिनोंदिन वे पतवारों का धरम निभाना क्या जानें? बढ़ती हुई विक्षिप्तता और आत्महत्याओं के रूप में देख सकते हैं। तुम बजाय इसके कि खतरा मोल उठाते निष्कर्ष यह है कि ऐन्द्रिय उत्तेजनाओं के शक्त्यनुसार क्रमिक संघर्षों को तहखानों की राहें दिखा गये। दमन से इच्छाओं का नाड़ीतन्त्रीय या स्नायविक स्रोत निष्क्रिय हो जाता है। अतः इच्छाओं के विसर्जन में इन्द्रियदमन उतना ही अभ्युदय निवास, 36/बी, मैत्री बिहार, मनोवैज्ञानिक साधन है जितना विषयों से वैराग्य। सुपेला, भिलाई, दुर्ग (छत्तीसगढ़) 137, आराधना नगर भोपाल-462003 मई 2001 जिनभाषित 18Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524252
Book TitleJinabhashita 2001 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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