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________________ क्र. १५ सन १९९६ की धारा २ (ग) में निम्नानुसार | परंतु आजादी के बाद कतिपय जैनेतर गेरूए | प्रमाण भी नहीं मिलते हैं, परंतु ऐतिहासिक, संशोधन करना आवश्यक होगा। वस्त्रधारियों ने जबरन उन चरणों पर अपना कब्जा | भौगोलिक और पौराणिक तथ्यों को नजरअंदाज कर चढ़ावा प्राप्त करने के लिए अपनी दुकानदारी | किया जा रहा है। २ (ग) में पूर्व निहित प्रावधान,इस अधिनियम के चला रखी है। परिणाम यह हुआ कि सदियों से जैन आजादी के बाद जब कतिपय जैनेतर प्रयोजन के लिये अल्पसंख्यक से अभिप्रेत है, (१) धर्मावलंबी अपनी उपासना स्थली पर हिंसा और केन्द्रीय सरकार द्वारा राष्ट्रीय अल्पसंख्यक साधुओं ने यहां कब्जा जमाया तो भारत के अशांति के भय से अपने आराध्य की जय तक अधिनियम १९९२ (१९९२ का सं. १९) के दिगम्बर जैन तीर्थ के अध्यक्ष ने वहां पहुंचकर नहीं बोल पाते, पूजन तो दूर की बात है। क्या ऐसे कलेक्टर की अध्यक्षता में एक बैठक में भाग लिया प्रयोजन के लिये इस रूप से अधिसूचित किया बहुसंख्यकों के पास इन प्रश्नों के उत्तर हैं: था। वे दस्तावेज आज भी विद्यमान हैं, जिनमे गया समुदाय। (१) यह कि अधिकांशतः वैदिक तीर्थ | सामंजस्य कर यह तय हुआ था कि जैनियों के २ (ग) में अब जोड़े जाना वाला अंश- | (देवियों को छोड़कर) भारत की नदियों के किनारे | साथ हिंदू धर्मावलंबियों को भी वहां जाने दिया (२) राज्य सरकार द्वारा म.प्र. राज्य अल्पसंख्यक | अवस्थित हैं, फिर गिरनार पर्वत स्थित पंर चरणों जायेगा और जैन धर्मावलंबियों को पूजन करने से अधिनियम १९९६ (१९९६ की संख्या १५) के पर वैदिक तीर्थ अब कहां से बन गया। जबकि | नहीं रोका जायेगा, परंतु अब कथित साधु उस प्रयोजन के लिये इस रूप में अधिसूचित किया | केवल जैन तीर्थ ही प्रायः पर्वतों पर होते हैं। समझौते को भी नहीं मानते और अल्पसंख्यक गया समुदाय) जैन समुदाय। जैनियों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है, (२) जिन दत्तात्रय की उपासन गिरनार पर्वत २ग (२) को संशोधन करने के उपरांत के चरणों पर अब होने लगी है, उनकी स्थली तो बहुसंख्यकों के हिंसक व्यवहार से जैन समाज के लोग वहां दर्शन और जयकार बोलने को भी तरस म.प्र. राज्य अल्पसंख्यक आयोग की अनुशंसा | चित्रकूट में, मंदिर आबू में पहले से है, दक्षिण में जाते हैं, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। पर राज्य शासन जैन समाज को अल्पसंख्यक भी चिकमगलूर के पास ही कहीं समाधि बताई जा घोषित करने की अधिसूचना जारी कर सकता है। रही है, फिर एक ऋषि की जन्मस्थली या समाधि ऐसे कई प्रकरण हैं, जिनमें अल्पसंख्यक चूंकि म.प्र.शासन इसे स्वीकार कर चुका है। अतः एक से अधिक जगह कैसे हो सकती है? जैन समाज के तीर्थ असुरक्षित हो गये हैं। अनेक प्रक्रिया में अधिक विलंब नहीं लगना चाहिये। जैन तीर्थों को नकार दिया जाता है। अल्पसंख्यक (३) चरणों की पूजा केवल जैन धर्म के कुछ लोगों ने यह प्रश्न उठाया है कि केवल | तीर्थों पाही अधिकांशत होती | घोषित होने पर जैन समाज अपने विधिक तीर्थों पर ही अधिकांशतः होती है, गिरनार पर्वत न्यासियों के हित ही इससे सधेगे, यह भी भ्रामक अधिकारों को निश्चय ही सुरक्षित रख सकेगा। की पाँची टोंक पर चरण ही स्थित हैं, जो है। वस्तुतः इससे जैन तीर्थों की सुरक्षा एवं प्रबंधन जैन, भारत के मूल निवासी हैं और वे इस देश की | ऐतिहासिक रूप से तीर्थंकर नेमिनाथ के हैं, तो वे भी,हो सकेगा। उदाहरण के लिए जैन तीर्थ गिरनार यहाँ वैदिक कैसे हो गये? मुख्य धारा में सदैव अग्रणी रहे हैं, रहेगेभी। अपेक्षा जी को ही ले लें कि कैसे कतिपय बहुसंख्यकों ने है संविधान में प्रदत्त आधारों पर अल्पसंख्यक (४) जूनागढ़ में तीर्थकर नेमिनाथ से जिनकी एक ऐतिहासिक तथ्य को झुठला दिया है और घोषणा की ओर इन्हें संरक्षण प्रदान करने की। शादी होने वाली थी उन राजकुमारी राजुल के नरेश जोर-जबर्दस्ती के कब्जे से, प्रशासन भी असहाय पिता का दुर्ग है, जो नेमिनाथ की बारात यहां आने ३४/१०, दक्षिण तात्या टोपे नगर, नजर आ रहा है। का प्रमाण है। भोपाल फोन : ७७४०३७ इतिहास, भूगोल और शास्त्र पुराण साक्षी हैं कि गुजरात में जूनागढ़ के निकट स्थित गिरनार (५) चूंकि नेमिनाथजी यदुवंशी और भगवान श्री कृष्ण चचेरे भाई थे और कृष्ण जी की पर्वत तेईसवें जैन तीर्थकर नेमिनाथ की तपोभूमि द्वारिका यहां पास ही समुद्र में उपस्थित थी, जबकि और मोक्ष कल्याणक की पावन स्थली रही है, | दत्तात्रय ऋषि के यहां आसपास कोई ऐतिहासिक त्वरितं किं कर्त्तव्यं विदुषा संसारसन्ततिच्छेदः । किं मोक्षतरोर्बीजं सम्यग्ज्ञानं क्रियासहितम्।। भगवान् किमुपादेयं गुरुवचनं हेयमपि च किमकार्यम् । को गुरुरधिगतत्त्व: सत्त्वहिताभ्युद्यत: सततम् ॥ भगवान् उपादेय क्या है ? गुरुवचन । हेय क्या है ?अनुचित कार्य (पाप)। गुरु कौन है ? जो तत्त्व ज्ञानी हो और सदा प्राणियों के हित में लगा रहता हो। विद्वान को शीघ्र क्या करना चाहिए ? संसाररूपी बेल का उच्छेद । मोक्षरूपी वृक्ष का बीज क्या है ?सम्यक्चारित्रसहित सम्यग्ज्ञान । 22 अप्रैल 2001 जिनभाषितJain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524251
Book TitleJinabhashita 2001 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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