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________________ बड़े बाबा की शरण में आकर नास्तिक भी आस्तिक बनकर जाते हैं •आचार्य श्री विद्यासागर महाभारत का युद्ध होना है और व्यवस्थित होने की आवश्यकता है। सभी योद्धाओं के मन में विकल्प है | कुण्डलपुर में २७ फरवरी २००१ मैंने अपने जीवन में बीस-बाईस कि हम विजयी होगे या नहीं ? तब पंचकल्याण गजरथ महोत्सवों को देखा कृष्ण अर्जुन से कहते हैं, 'हे अर्जुन ! है, लेकिन गजरथ की परिक्रमा का सबसे दिया गया प्रवचन तुम हाथ में अपने गाण्डीब धनुष को बड़ा पथ यहाँ का था। जब पहली धारण करो, तुम्हारी विजय निश्चित परिक्रमा में ही ४५ मिनिट लग गये, सोचा इसमें है। अर्जुन ने कृष्ण से पूछा, आप कैसे कह रहे हैं | पिता जी होता है। यहाँ उत्तर में ये बड़े बाबा हैं। तो शाम ६.०० बज जायेगे। जल्दी-जल्दी कराने कि विजय हमारी ही है? कृष्ण ने कहा, 'अर्जुन | बाबा का अर्थ दादा होता है। यानी दक्षिण में बड़े के लिये सेवा दल वालों को बाजू में करके परिक्रमा देखो, सामने यथाजातरूपधारी का दर्शन हमारी पिताजी बाहुबली तो यहाँ बड़े बाबा उनके दादा ये हुई , तब तो जल्दी हो सकी। हमारे पैर थके नहीं। विजय का प्रतीक है।' यह यथाजातरूप मंगल का भगवान आदिनाथ हैं। दादाजी का समर्थन तो सब उत्साह के साथ इतने बड़े कार्यक्रम का अंतिम कार्य प्रतीक है। जो भी मांगलिक कार्य करना चाहता है, करते हैं। अभी क्या हुआ? अभी तो बड़े बाबा का गजरथ सानंद संपन्न हो गया। सभी लोगों में उसका ध्येय असत्य को हटाकर सत्य को स्थापित बड़ा मंदिर बनने तो दो, फिर क्या होता है देखना। भक्तिभाव व उत्साह देखा और सभी ने व्यवस्थित करने का हुआ करता है। जब बड़े बाबा के आप लोगों की एक पाई भी लगती है तो उसको होकर इसका आनंद लिया। आप लोगों के बीच में महामस्तकाभिषेक कार्यक्रम की योजना बनाई जा भी उतना ही पुण्य संचय होने वाला है। आप लोगों इतना बड़ा संघ रहा, ब्रह्मचारी, ब्रह्मचारिणियाँ रही थी और बड़े कार्यक्रम की योजना बड़ी बनी। | का सात्विक धन लगेगा तो और अतिशय बढ़ेगा आदि भी रहे इन सब की चर्चा हुई, संघ का निर्वाह कार्यक्रम कैसे होगा? क्या करेंगे? अरे! हमारे बड़े | फिर बुंदेलखंड की जनता की बात ही अलग है। हुआ, यह सबसे बड़ा काम है। बाबा भी यथाजात रूप ही हैं, और फिर बड़े बाबा | लोगों ने कहा महाराज आप बुंदेलखंड का पक्ष का काम बड़ा होता है क्योकि बड़े बाबा की रेंज | क्यों लेते हैं? क्यों नहीं लेगे? अरे भैया ! बड़े बाबा यहाँ पर दो-दो बड़े कार्यक्रम हुए, एक तो बहुत बड़ी है, यह तो स्थानीय जनता का विशेष | भी तो बंदेलखंड में ही हैं, तो मैं क्यों नहीं यहाँ की | पंचकल्याणक का, दूसरा बड़े बाबा के पुण्य बड़े बाबा से जुड़ा हुआ है। अभी तो कुछ | जनता का पक्ष लूँगा? सभी ने इस कार्यक्रम में | महामस्तकाभिषेक का। यह सब जो काम हुआ है, नहीं है, जब बड़े बाबा उच्चासन पर स्थापित होंगे | बड़ा सहयोग दिया। प्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने कह | वह देवों के सहयोग के बिना नहीं हो सकता था। तब कैसे व्यवस्था करोगे इस जनता की ? अभी दिया कि 'बड़े बाबा का कार्य कराने के लिये इसीलिए तो कहा हैतो यह प्रारंभिक मंगलाचरण है। बड़े बाबा की शरण | प्रशासन वचनबद्ध है'। यहाँ लगा ही नहीं, सात धम्मो मंगलमुक्किळं, अहिंसा संजमो तवो, में आकर बड़े-बड़े नास्तिक भी आस्तिक बनकर | दिन में कैसा क्या हो गया? सब हो गया। बड़े बाबा | देवावितस्स पणमंति, जस्सधम्मे सया मणो।। गये हैं। दिन पर दिन बड़े बाबा का अतिशय बढ़ ही | के दरबार में बड़े-बड़े काम सहज रूप में हो जाते देव लोग भी सच्चे अहिंसाधर्म की एवं सच्चे रहा है घट नहीं रहा। यह मैं नहीं कह रहा, इस | हैं, यही तो बड़े बाबा का अतिशय है। सभी लोग महोत्सव में आई जनता कह रही है। ये बड़े बाबा | कहते थे पानी की व्यवस्था कैसे होगी? अपने आप देवगुरुशास्त्र की भक्ति एवं प्रभावना में लगे रहते हैं तो सबके बड़े बाबा हैं। यह तो उनका सदा का काम है । गजरथ के पूर्व पानी के झरने फूट पड़े, यह सब जनता का ही पुण्य एक दिन बदलियाँ जैसी आ गई थीं। वैसे हर बार है। वैसे यहां की जनता को ज्यादा व्यवस्था की दक्षिण भारत में भगवान बाहुबली हैं, उनको आती हैं, लेकिन धार्मिक वातावरण में सात्विक आवश्यकता नहीं है। व्यवस्थापकों को स्वयं वहाँ पर 'दोडप्पा' कहते हैं। दोडप्पा का अर्थ बड़े भावनाओं का संयोग जब मिलता है तब देव स्वयं - अप्रैल 2001 जिनभाषित 23 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.524251
Book TitleJinabhashita 2001 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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