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________________ अल्पसंख्यक-मान्यता से जैन समाज को लाभ • कैलाश मड़बैया भारतीय संविधान के अनुच्छेद २५ व ३० । होगा। करना ही चाहिये, परंतु इसके बावजूद राज्य को (एक) में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि इनके किसी नागरिक के लिये सरकारी, निजी यह गणना अपने स्तर पर कर संसूचित करना अंतर्गत सिख, जैन, बौद्ध, ईसाई तथा पारसी धर्म | संस्थाओं में धर्म, जाति, भाषा के आधार पर प्रवेश आवश्यक होगा। कर्नाटक और तमिलनाडु की तरह को मानने वाले अल्पसंख्यक माने गये हैं। इसी का | पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकेगा। मध्यप्रदेश को भी राज्य मंत्रिमंडल के २१ अगस्त, अनुसरण करते हुए मध्यप्रदेश के माननीय आर्टीकल ३० (१) ९८ के इस विषय में लिये गये निर्णय को सर्वप्रथम मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह जी ने कुंडलपुर में मध्यप्रदेश में तत्काल लागू करना चाहिये। इसके दिनांक २३ फरवरी २००१ को आचार्यश्री सभी अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षा । लिए केन्द्र की अथवा कर्नाटक की दलील देने के विद्यासागर जी के समक्ष मध्यप्रदेश के जैनों को संस्थायें स्थापित करने तथा उनका प्रबंध करने का | कोई आधार नहीं रह जाते। हालाकि मध्यप्रदेश अल्पसंख्यकों का दर्जा देने की घोषणा की है। इसके | अधिकार होगा। शासन ने इस विषय में गंभीरता से विचार किया है। लिए जैन समाज उनके प्रति अपना आभार व्यक्त ___ सरकारी आर्थिक सहायता के मामले में | एतदर्थ अखिल भारतीय दिगम्बर जैन समाज ने करता है। किसी शिक्षण संस्था के साथ इसलिए भेदभाव नहीं आभार भी माना है, जरूरत है केवल संसूचना अल्पसंख्यक का दर्जा मिलने से जैनों को | किया जायेगा कि वह अल्पसंख्यकों द्वारा स्थापित जारी करने की। क्या लाभ होगा इस पर प्रकाश डाला जा रहा है। की गई है। कर्नाटक सरकार ने तो अपने आदेश क्र. यों तो आर्टीकल १५/१६ तथा आर्टीकल | एस.डब्ल्यू. डी. १५०/ बी.सी.ए.९४ बंगलौर संविधान और अल्पसंख्यकों के हित २५ भी इस विषय में उल्लेखनीय हैं, परंतु मुख्य रूप दिनांक १७.९.१९९४ द्वारा दिगम्बर जैन समाज संविधान में कतिपय ऑर्टीकल्स ही ऐसे को पिछड़े वर्गों की सूची में सम्मिलित किया है। से आर्टीकल २६ तथा ३०(१) के तहत जैन समाज हैं, जिनसे अल्पसंख्यकों के हितों का संबंध है। को अल्पसंख्यक घोषित होने पर समुचित और कर्नाटक राज्य शासन के परिपत्र क्र. आइये उन्हीं पर विचार करें। वस्तुत: इससे जैन आवश्यक संरक्षण मिल सकेगा, जो अपरिहार्य रूप एस.डब्ल्यू.डी.८४ बी.सी.ए.९६ दिनांक समाज को कोई आर्थिक लाभ नहीं हैं,पर से वांछनीय है। १२.६.९६ से दिगम्बर जैन समाज के लोगों को लोकतांत्रिक व्यवस्था में संवैधानिक संरक्षण का पिछड़े वर्ग का प्रमाण पत्रजारी करने के निर्देश भी आर्टीकल २६ तथा ३० (१) के अनुसार हक मिलना औचित्यपूर्ण है। इसमें अधिक विलम्ब दिये हैं। इससे संपूर्ण दिगम्बर जैन समाज को धार्मिक संस्थाओं तथा शिक्षण संस्थाओं की होना ही अहिंसक जैन समाज के साथ अन्याय अतिरिक्त परंतु आवश्यक आर्थिक लाभ हो रहा स्थापना और प्रबंधन का अधिकार अल्पसंख्यकों होगा। है। जैन समाज तो म.प्र. सरकार से फिलहाल को प्रदत्त है। इनका न तो सरकारीकरण हो सकेगा अल्पसंख्यक घोषित करने की मांग कर रही है आर्टीकल २६ और न अल्पसंख्यकों को इनसे पृथक किया जा जिससे कोई आर्थिक बोझ भी शासन पर नहीं पड़ने सकेगा। जन व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य को वाला है। हालांकि म.प्र. शासन ने मंत्रिपरिषद की ध्यान में रखते हुए कोई भी धार्मिक समुदाय अपनी चूँकि संस्थाओं की स्थापना और प्रबंधन बैठक दिनांक २१ अगस्त, १९९८ में "आयटम" धार्मिक संस्थायें स्थापित कर सकता है तथा अपने | राज्य सरकारों का विषय है, इसलिए प्रांतीय सरकार क्र. ४० में जैन समाज को अल्पसंख्यक मानते हुए धार्मिक मामलों का प्रबंध इच्छानुसार कर सकता को जनसंख्या के आधार पर जैन समाज को भारत सरकार से घोषित करने हेतु अनुशंसा भी है। चल-अचल संपत्ति खरीद सकता है और कानून अल्पसंख्यक घोषित करना आवश्यक है, तभी की है। परंतु हमारा अनुरोध है कि केन्द्र सरकार को के दायरे में उनका प्रबंधन कर सकता है। संविधान की धारा २६ एवं ३० (१) का लाभ | भले सुप्रीम कोर्ट में लंबित "पई" रिट याचिका मिल सकेगा। इसलिए किसी भी राज्य सरकार को आर्टीकल २९ इस विषय में केन्द्र की ओर देखना आवश्यक नहीं के निराकरण तक प्रतीक्षा करनी पड़े, परंतु म.प्र. किसी भी समुदाय को जो किसी प्रदेश है, न ही दूसरे राज्य की तुलना करना वांछनीय है। सरकार को तो अपने यहां यह संसूचना जारी करने अथवा उसके एक भाग का निवासी हो, अपनी हालांकि केन्द्र सरकार को अपने स्तर पर संख्या में कोई अवरोध नहीं है। अतः करना ही चाहिये। भाषा, लिपि और संस्कृति के रक्षण का अधिकार | के आधार पर जैनियों को अल्पसंख्यक घोषित हां, म.प्र. सरकार को पहले मध्यप्रदेश अधिनियम अप्रैल 2001 जिनभाषित 21 www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.524251
Book TitleJinabhashita 2001 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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