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________________ बालवार्ता बुद्धिचातुर्य की कथाएँ प्रस्तुति : श्रीमती चमेलीदेवी जैन प्राचीन काल की ( जैन साहित्य एवं बौद्धसाहित्य कथात्मक वाङ्मय की दृष्टि से बहुत समृद्ध है। था। बात है, उज्जयिनी नगरी के अनेक विषयों पर संक्षिप्त, विस्तृत ऐसी कथाएँ विपुल परिमाण में प्राप्त है, जो शताब्दियों पूर्व लिखी गई, किन्तु, जिनका महत्त्व आज भी उससे कम नहीं हुआ, जितना उनके बालू की रस्सी समीप एक छोटा सा ग्राम था। उसमें अधिकांशतः रचना काल में था। वस्तुत: जिसे साहित्य कहा जा सके, उसकी यही विशेषता है, वह राजा ने नट-ग्राम के लोगों को कभी पुरातन नहीं होता। उसमें प्रेषणीयता के ऐसे अमर तत्त्व जुड़े होते हैं, जो उसे सदा | नटों का निवास था । उज्जयिनी से संदेश भेजा -'तुम अभिनव बनाये रखते हैं। पञ्चतन्त्र इसका उदाहरण है, जिसमें वर्णित कथाएँ, सारे इसलिए वह नट-ग्राम के लोगों के गाँव के पास जो नदी संसार में व्याप्त हुईं, प्राच्य, प्रतीच्य अनेकाअनेक भाषाओं में अनूदित भी। जैन-साहित्य नाम से प्रसिद्ध था। उन नटों| एवं बौद्ध-साहित्य में बुद्धिप्रकर्ष की कथाओं का बड़ा सुन्दर समावेश है, जो रोचक भी है, उसकी बालू बहुत उत्तम है। में एक भरत नामक नट था। है, बुद्धिवर्धक भी। मनोरंजन के साथ-साथ आज भी उन कथाओं द्वारा पाठक अपनी | उस बालू की एक रस्सी बनाओ उसके एक पुत्र था। उसका | | सूझबूझ को संवार सकता है। और उसे मेरे पास उज्जयिनी नाम रोहक था । वह अपने श्वेताम्बर ग्रन्थ नन्दिसूत्र में ऐसी ही एक कथा है चतुर बालक रोहक की जो भेजो।" यहाँ प्रस्तुत की जा रही है। माता-पिता को बहुत प्रिय गाँववासी नटों ने संदेश सुना। था। ग्राम के अन्य नटों का उत्तर दें।" जो उत्तर देना था, रोहक ने उनको अच्छी संदेशवाहक को वापस विदा भी उस पर बड़ा स्नेह था। तरह समझा दिया। किया। उन्होंने रोहक के समक्ष यह प्रसंग उपस्थित रोहक एक संस्कारी बालक था । किया। रोहक ने उनको उसका उत्तर समझाया और नट उज्जयिनी आये । राजा के समक्ष प्रत्युत्पन्नमति था, बडी सूझबूझ का धनी था। आयु जाकर राजा को बताने के लिए कहा । गाँववासी | उपस्थित हुए । राजा द्वारा जिज्ञासित तिलों की में बडे नट भी, जब उनके समक्ष कोई समस्या या | रोहक द्वारा दिया गया समाधान भलीभॉति ह्दयंगम संख्या के विषय में कहा -“महाराज ! हम नट हैं, उलझन आती तो रोहक से उसका समाधान पूछते। कर राजा के पास उज्जयिनी गये तथा उन्होंने राजा नाचना-कूदना, खेल-तमाशे दिखलाना, रोहक उन्हें बड़ी बुद्धिमानी से समस्या के साथ | से निवेदन किया - "राजन, हम लोग तो नट हैं, कलाबाजी द्वारा लोगों का मनोविनोद करना हम निपटने का मार्ग बताता। वे बहुत संतुष्ट होते। रस्सी बनाना हम लोग क्या जानें? कभी रस्सी बंटने जानते हैं, गिनने की कला-गणित शास्त्र हम कहाँ गाड़ियों में भरे तिलों की गिनती का प्रसंग ही नहीं आया। हाँ, इतना अवश्य कर से जानें! फिर भी हम आपको तिलों की तुलनात्मक सकते हैं, यदि वैसी बनी हुई रस्सी देख लें तो राजा ने अपनी परीक्षा-योजना के अन्तर्गत संख्या निवेदित करते हैं । गगन-मंडल में जितने एक बार तिलों से परिपूर्ण गाड़ियाँ नटों के गांव में तारे हैं इन गाडियों में उतने ही तिल हैं । आप ठीक उसकी प्रतिकृति - उस जैसी ही दूसरी रस्सी हम बना देंगे। आपका पुरातन संग्रहालय है। अनेक भेजी तथा नटों को संदेश भिजवाया कि इन गाड़ियों अपने गणितज्ञों से तारों की गिनती करा लीजिए, वस्तुओं के साथ वहाँ कोई-न-कोई बालू की रस्सी में भरे हुए तिल संख्या में कितने हैं, बतलाएँ ।। दोनों एक समान निकलेंगे। अवश्य होगी। वह रस्सी कृपाकर हमें एक बार यदि वे तिलों की ठीक ठीक संख्या नहीं बता सके उज्जयिनी-नरेश ने मंद स्मित के साथ | भिजवा दें। उसे देखकर वैसी-की-वैसी बालू की तो उन्हें कड़ी सजा दी जायेगी। उनके लिए यह मुस्कराते हुए नटों से पूछा "सत्य बतलाओ, यह रस्सी निश्चितरूप से बना देंगे।' सर्वथा असंभव बात थी। नट घबरा गए, तिलों | उपमा तुम लोगों को किसने बतलाई है ?' की गिनती कैसे हो। उन्होंने रोहक के आगे अपनी एक वृद्ध नट बोला -'स्वामिन् ! हमारे राजा जान गया कि ये नट रोहक की बताई परेशानी की चर्चा की। गाँव में भरत नामक नट का पुत्र रोहक नामक बालक हुई युक्ति से बात कर रहे हैं। राजा रोहक की सूक्ष्मरोहक ने कहा - "घबराओ नहीं। घबरा है। उसी ने यह युक्ति बतलाई है।' ग्राहिता तथा पैनी सूझ से बहुत प्रभावित हुआ। जाने से बुद्धि अस्त व्यस्त हो जाती है, प्रतिभा की राजा ने नटों को पुरस्कृत किया तथा वहाँ | (मुनि श्री नगराजकृत 'आगम और त्रिपिटक' से साभार) उर्बरता मिट जाती है। आप लोगों को मैं एक उत्तर । से बिदा किया। रोहक की बुद्धिमत्ता पर राजा प्रसन्न १३७, अराधना नगर, भोपाल ४६२००३ म. प्र. बतला रहा हूँ। राजा के पास जाकर आप वही हुआ। राजा अभी कुछ और परीक्षा करना चाहता 20 अप्रैल 2001 जिनभाषित - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524251
Book TitleJinabhashita 2001 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Jain
PublisherSarvoday Jain Vidyapith Agra
Publication Year2001
Total Pages36
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jinabhashita, & India
File Size4 MB
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