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________________ सामायिक नामनो साधु थईने भाव सामायिकथी भ्रष्ट थवाने लीधे अनार्यपणाने प्राप्त थयो छु. खरेखर, भावशल्य घणा दुःखने आपनारुं छे. जे अमृतमाथी खरेखर विष उत्पन्न थयु. हवे ते केम करीने टळशे ? वळी, जे अनार्यदेशमां दयाधर्म नथी, अभक्ष्य पदार्थोने भक्ष्य समजीने खाय छे. अपेय पीणांओने रात-दिवस पीए छे. जे देशमां धर्म शब्द सांभळवो दुर्लभ छे, तो पौषध अने प्रतिक्रमणनी तो वात ज क्यां ? खरेखर, मनना दुष्ट चिंतनथी कडवां फळ प्राप्त थाय छे. मन-वचन-कायाना पापथी भयंकर कर्म बंधाय छे. अहो ! जिनप्रतिमाना दर्शनथी मने आजे घणो संवेग उत्पन्न थयो छे, हवे हं आर्यदेशमां पहोंची संवरनी आराधना करूं. वळी हुं मानुं र्छ के-बुद्धिवंत एवा अभयकुमारे दूरदेशमा रहेला अनार्य एवा मने प्रतिबोध करवा माटे आ प्रतिमा मोकली छे. अभयकुमारना आवा अद्भुत बुद्धिवैभवने कोण न वखाणे ? के जेणे दूर रहेला एवा मने प्रतिबोध पमाड्यो. उत्तम झवेरी पण जोयेलां रत्ननी परीक्षा करे छे, सुभट जोयेला निशानने पाडी शके छे. वैद्य पण जोयेला रोगीने सारो करे छे. सुगुरु जोयेला शिष्यने ज बोध करे छे अने मार्गनो जाणनारो मार्गने विशे जोयेला मार्ग प्रत्ये लगाडी शके छे, परंतु हर्ष थाय छे के-जेणे नहि जोयेला मने बोध पमाड्यो छे, ते बुद्धिवंतोने विशे शिरोमणी सरखो मगधपतिनो पुत्र महारो मित्र जयवंतो वर्ते छे. आ प्रमाणे मनोरथ करतो, स्नान करी, निर्मळ वस्त्र परिधान करी, मुखकोश बांधी जिनेश्वरनी प्रतिमानुं पूजन करे छे. मनमां परम संतोष मेळवे छे. सारंगमल्हार रागमां छट्ठी ढाल संपूर्ण थई, खरेखर, जिनप्रतिमाना भावथी नमस्कार करतां मांगलिकनी माळा थाय छे. दुहा (सोरठा) जई जनकनी पास, करजोडी कुंवर कहइ, अवधारी अरदास, जो अनुमति द्यो तातजी... तो हुं जाउं त्याहीं, प्रभुजी राजगृही पूरइ, मैत्री मांहमांहि, अभयकुमारस्युं आकरी... पेखी तस मुखचंद, नयन अमीरस सिंचीइ, मिली आवउं भूमी वहिलउ विलंब नहीं करूं... 66
SR No.523351
Book TitleAho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal S Shah
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationMagazine, India_Aho Shrutgyanam, & India
File Size3 MB
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