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________________ धन्य धन्य अभयकुमारनइं, अकारण बांधव एह रे, भवोदधि कुपथकी उद्धर्यो, करुणा परमाहि रेह रे... परम दावानल बळतां थकां, भीषण भव अटवीमां हि रे, मोह नीद्राइ धार्या भणी, जेह ठाडी ग्रही लांहि रे... ते परम बंधु तेहनउ सही, उपगारीमांहि सिरदार रे, थयउ धरमाचारय माहरु, मारग देखाडणहार रे... हवइ नाही निरमल धोतीया, पहिरिनइं मुखकोस रे, जिनपूजा युगतिसुं करी, पामिउ मनि परम संतोष रे... राग सारंगमल्हारमई, कही छठी ढाल रे, जिनप्रतिमा भविस्युं भजी, कहई न्यान दि मंगलमाल रे... परमात्मदर्शननी प्राप्ति पछी नाहीने अंधारी ओरडीमां जईने महारा मित्रे आ पेटीमां शुं मुक्युं हशे एम उत्साहथी व्याकुल मनवाळा तेणे पोते पेटी उघाडी, जाणे चंद्रकिरणथी रचेला होय एवां अंदर बे वस्त्र जोईने रसिक एवा तेणे ते पहेर्या अने पछी दिव्य आभूषणो वडे पोतानां शरीरने सुशोभित कर्यु. पछी डाबडो उघाड्यो एटले तेणे ते डाबडानी अंदर अंधकारने नाश करवा माटे उदय पामेला चंद्रबिंब सरखा, चारे दिशाने प्रकाशित करता दिव्यज्योति समान अरिहंतना बिंबने दीर्छ. ते वखते आभूषणनी बुद्धिथई एटले आ कांई आभूषण छे एम धारीने आर्द्रकुमारे मस्तके, कंठे, हृदयने विशे एम सर्व अंगने विशे पण घटना पाम्यं नहि. तेणे विचार्यु के बाजुबंध हशे के पगे पहेरवा, हशे ? _ पछी खेद पामेला अने अनिमेष दृष्टिथी परमात्माना बिंबने जोई रहेला ते आर्द्रकुमारने, “पूर्वे में कोई ठेकाणे आवी वस्तु जोयेली छे, पण मंदाभ्यासीने शास्त्रनी जेम ते मारा स्मरणमां आवतुं नथी.” एवो ऊहापोह करतां पूर्वजन्म सांभरी आव्यो. अने थयुं के, अहो ! अद्भुत ! आ बिंब तो वीतरागी, देवाधिदेव, तरणतारणहार, त्रण भुवनना नाथ, परमारथ पंथने आपनार, मोहनी जालने छेदनार, भवभय ने भांगनार, भीषण भवाटवीमां सार्थवाह, भवसमुद्रमां दीवादांडी समान परमात्मानुं छे. हुं धन्य बन्यो के मने युगादिदेव श्री आदिनाथ भगवंतना दर्शन थया. पूर्वे हुं फक्त नाम मात्र 65
SR No.523351
Book TitleAho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal S Shah
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationMagazine, India_Aho Shrutgyanam, & India
File Size3 MB
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