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समान पुण्यपापवाळा प्राणीओने ज प्रीति थाय छे. तेओनो स्वभाव एकसरखो होय छे. अने मैत्री एकसरखा स्वभावथी ज उत्पन्न थाय छे. हवे कोई पण उपाय करीने तेने पाछो जैनधर्मी करुं, तेनो आप्तजन थाउं केमके जे धर्ममार्गमां अग्रेसर थाय ते ज आप्त कहेवाय छे.
ते आर्द्रकुमारने हुं तीर्थंकर, बिंब दर्शावू के जेथी कदी तेने उत्तम जातिस्मरण थाय. आ प्रमाणे जयतिसरी रागमां चोथी ढाल पूरी थई. कवि कहे छे के जे सांभळशे तेनुं जीवन उजमाळ थशे.
दूहा-सोरठा चिंतई अभयकुमार, परिणामिकी बुद्धि करी, कोईक छे निरधार, ए आसनभव सिद्धिउ...
मृग करि मृगनो संग, वृषभ वृषभ साथि मिली, मिलि तुरंग तुरंग, पंडितसुं पंडित मिली... पापी पापी प्राहि, धर्मि धर्मिसि मिली, चतुर चतुरनि त्याहि, मूरख मूरखस्युं मिली... तो साचो परमार्थ, मित्र थई मिलवा तणो, जो जिनमार्ग हाथ, आपी एहनि तारी... इमि चिंती मनमांहि, मूरति ऋषभ जिणंदनी, नीपाइ तेणि ठाहि, रयणतणी रलीयामणी... धूप कडछो एक, कंचन घटा मणइ जडी, वारु अगर विवेक, केसर सुखड धोतीया... ईम ओरसीया आदि, पूजाना उपकरण सवे साथि ठवीआ युगादि, मोदिसुं मंजुसमां..
ढाल-५
देशी-हो मतवाले साजना मुद्रा मंजुसई करी, ते आपइ आर्द्रकुमारो रे, नृप आर्द्रकना मंत्रीनई, कहि देज्यो अवल प्रकारो रे...
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