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तो जिन प्रतिमा मोकलउं, ए बुद्धि इहांकणि सूझी रे, जेम जातिसमरण लही, ए प्राणी प्रतिबूझी रे.... १५ चोथी ढाल पूरी थई, जयतिसरीमा रसालो रे, न्यानसागर कहिं सांभलो, उछक थई उजमालो रे... १६
आर्य-अनार्यनी मैत्री आर्द्रकुमार पिताने अंजलिपूर्वक विनंती करे छे के, “जो आप अनुमति आपो तो अभयकुमारनी साथे हुं मैत्री करूं.” पोताना पुत्रने अभयकुमार साथे मैत्री करवानो अर्थी थयेल जाणीने राजाए कयुं, “हे वत्स! तुं खरेखर कुलीन पुत्र छे, केमके मारा चालेला मार्गे चालवाने ईच्छे छे. तमारा बनेने परस्पर मित्रपणुं घटे छे.” खरेखर, सरखा सरखानी साथे प्रीति थाय छे. हंस सदा मोतीनो चारो चरे छे, कांकराने अडतो पण नथी. खाबोचियाने छोडी सागर साथे संग करवो जोईए. विषना कुवा सरखी निर्गुण साथेनी प्रीत छे. ज्यारे सद्गुणीनो संग अमृतना बिंदु समान छे. चंदन सरखी सज्जननी प्रीत छे, जे जीवनमां शीतळता आपे छे, पोतानी जातने घसी बीजाने सुवास आपे छे. ज्यारे आंकडाना बळतणसमान दुर्जननी प्रीत छे, जे पोते बळे छे अने बीजाने पण बाळे छे. पोताना मनोरथने मळती पितानी आज्ञा मळवाथी आर्द्रकुमारे ते मंत्रीने कह्यु के, “तमारे मने पूछ्या वगर जवू नहीं. मारुं वचन तमारे सांभळवानुं छे.” कुमारना वचनथी मंत्रीए तेम करवानुं स्वीकार्यु. पछी राजानी रजा लईने मंत्री तेना उतारामां गयो.
अन्यदा आर्द्रकराजाए मोती वगेरेनी भेट लईने एक पोताना पुरूष साथे ते मंत्रीने विदाय आपी ते वखते आर्द्रकुमारे अभयकुमारने माटे ते मंत्रीना हाथमां परवाळा अने मुक्ताफल (मोती) आप्या. पछी मंत्री आर्द्रकराजाना मनुष्यसहित राजगृहपुरे आव्यो अने तेमणे श्रेणिकराजाने अने अभयकुमारने भेटो आपी. मंत्रीए अभयकुमारने संदेशो कह्यो के, “दूर होवा छतां जेम कमलने सूरज साथे अविहड प्रीत होय छे तेम आर्द्रकुमार तमारी साथे मित्रता करवा ईच्छे छे."
____ अभयकुमारे विचार्यु के, जरुर श्रमणपणानी विराधना करवाथी ते अनार्य देशमां उत्पन्न थयेलो हशे, पण ते महात्मा आर्द्रकुमार आसन्नभव्य होवो जोईए, कारण के अभव्य अने दूरभव्यने मारी साथे प्रीति करवानी इच्छा ज थाय नहि. प्रायः करीने
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