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________________ अवसर्पिणीकाळना ऋषभदेव आदि चोवीश तीर्थंकर परमात्माना चरणोमां नमस्कार करुं छं. केमके परमात्माना स्मरण, वंदन, पूजनथी कार्यनी सिद्धि थाय छे, विघ्नो नाश पामे छे, मनना मनोरथ पूर्ण थाय छे. वळी, हे श्रुतदेवता ! सारभूत दया करो, वचननो विलास आपो. तारी प्रसन्नताथी अने वरदानथी मारी भाषा कल्पतरुनी शाखा जेवी तुं करी दे छे. तेथी रास रचती वखते मारी जीभ उपर वास करजो. तेमज संसार सागरमांथी उगारनार, जेमना उपकारनो बदलो चूकवी न शकाय तेवा परमोपकारी गुरुभगवंत श्री माणेकसागरजी नुं पण मनमां स्मरण करुं छं. सांनिध्य करवा माटे बे हाथ जोडी प्रार्थना करुं छं. " चरमतीर्थपति, शासननायक महावीरस्वामी परमात्मानी पाटे आवेला सुधर्मास्वामीए जंबुकुमारनी आगळ आर्द्रकुमार ऋषिनुं चरित्र संभळाव्युं छे. जेनो अधिकार सूत्रकृतांग आगममां छे. तेमज “उपदेश चिंतामणी" प्रमुख ग्रंथमांथी तेमनुं चरित्र बतावीश. आर्द्रकुमार ऋषि पूर्वभवमां ग्रहण करेल चारित्रजीवनमां भावशल्यनी आलोचना करता नथी. ते कारणे अनार्यदेशमां म्लेच्छ तरीके जन्मे छे. अभयकुमारे मोकलेल जिनप्रतिमाना दर्शनथी आर्द्रकुमारने जातिस्मरणज्ञान थाय छे अने प्रतिबोध पामी, वैराग्यपूर्वक चारित्र स्वीकारी अंते सिद्धिगतिने पामे छे. माटे, हे भव्यजीवो ! चित्तने एकाग्र बनावी रसप्रद, वैराग्यवर्धक आर्द्रकुमारनुं चारित्र पूर्वभवथी शरु करी कहुं हुं, ते सांभळजो.” ढाल-१ देशी- थावच्यासुत ले दीक्षा ए जंबुद्वीपना भरतमां, अलकानई अवतरो रे, नयर वसंतपुर निरमलो, भूरमणी उर हारो रे.... जंबु कुलबी एक वसइ तिहां, सामायिक इणि नामो रे, बंधुमती तेही प्रिया, रूपवती गुणधामो रे... जंबु पंचविषय पति नई प्रिया, सुख विलसइ संसारी रे, एहवई आवी समोसर्या, मुनिवर वनह मझारी रे... जंबु 50 २
SR No.523351
Book TitleAho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal S Shah
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationMagazine, India_Aho Shrutgyanam, & India
File Size3 MB
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