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________________ तप-संयमसिंउ आतमा, भावतां निशदिसो रे, सुस्थितसूरि णमइ मुणी बहु परिवार गणीशो रे... जंबु साधु समागम सांभळी, आया बहु नरनारी रे, वांदीनई देशण सुणई, विनयसुं निज चित्तधारी रे... जंबु सामायिक कुलबी तिसि, क्षेत्र थको घणि लेई रे, आविउ साधु तणी सुणई, देशनभाव धरेई रे... जंबु उपदेशई अणगारजी, अथिर कुटुंबपरिवारो रे, बाजीगर बाजी जितिउ, मलिओ छइ संसारो रे... जंबु मूक मोहविटंबना, परमारथ पंथ चालो रे, समकितसहित विरति धरी, जैन धरममां माहलो रे... मूको पसलिना पाणी परि, खिण खिण आय ए खूटई रे, डाभअणीजलबिंदो, जोतां जेम विछूटई रे... मूको माटीना भांडा जिसी, जलना बुबुद् जेहवी रे, कायापणि जुओ कारमी, छई क्षणभंगुर एहवी रे... मूको शडण पडण विधंसणा, धरम कहिउ जिनि एहनउ रे, छई मलमूत्रनी कोथळी, म करउ गर्व देहनो रे... मूको क्रोधादिक चारई कह्या, अंतरंग रिपु एहो रे, उपशमआदि शस्त्रस्युं, छलि बलि जीत्यो तेहो रे रे ... मूको पुंठ न सुझई आपणी, किम सुझई परपुंठि रे, परनिंदा करी प्राणीयउ, कां भरो पापनी मुठि रे... मूको उपगारी नंदक इसिउं, परने पार उतारि रे, ततिपराई जे करई, निज आतम किम तारि रे... . मूको धरम थकी धन संपजई, धरम थकी धनि भोगो रे, धरम थकी सुख सरगनां, लहइ वांछित संयोगो रे... मूको ६ 51 ८ ९ १० ११ १२ १३ १४ १५ पहेली ढालई देशना, श्री गुरु इणिपरे दीधी रे, न्यानसागर कहि ते सुणी, भवियण हृदयमां लीधी रे रे ... मूको १६
SR No.523351
Book TitleAho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal S Shah
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationMagazine, India_Aho Shrutgyanam, & India
File Size3 MB
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