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________________ अनेक प्रकारनी छेदन-भेदन आदि दुःखद अवस्थाने मेळवे छे. नटवानी जेम नाचता जीव अनेक रुपोने धारण करे छे. एकेन्द्रियथी पंचेन्द्रिय पणाने पामे छे चारे गतिना चौटामां फरता तेनो अनंतकाल पसार थाय छे. पण संसारना पारने पामवा समर्थ थतो नथी. आ प्रमाणे वैराग्यद्रावित हृदयथी राजा पोते पण जीवहिंसा त्यागनो नियम करे छे. महिषने अभयदान आपे छे अने पोताना देशमां आदेश आपे छे के आ महिषनो जे वध करसे तेने चोर जेटलो दंड थशे. शूलीरोपण जेवी मोटी सजा थशे. माटे आ महिषनी सर्व रक्षा करे छे. ते निर्भयपणे देशमां फरे छ. पोतानी ईच्छामुजब चोगानमां, चौटामां, बजारमां, वनमां बधे ज फरे छे. कोईपण व्यक्ति तेने कनडगत करता नथी. बधा तेनी सारसंभाळ करे छे. एक दिवस मृगध्वजकुमार सुभट परिवार सहित वनमां रमवा नीकळे छे. ते ज्यारे राजद्वारे पहोंचे छे त्यारे ते महिष फरता - फरता त्यां राजद्वारे ज आवी पहोंचे छे. आवता महिषने जोई राजकुमार अत्यंत कोपे चढे छे. क्रोधने वश थयेल कुमार खड्ग लईने ते महिषने मारवा माटे दोडे छे. कोईपण विचार कर्या विना पुण्य-पापने अवगणी ते महिष तरफ दोडे छे. ढाळ-३ पाय लागी सेवक कहई रे, सामी म करो कोप महिष तइ वधि रायनउ रे, होस्यइ आज्ञा लोप कुमरजी, कांई भूलउ सुविचार ए (आंकणी) जीव तणइ वधि पाडियइ रे, परभवि दुःख अपार... सेवक उवेखी करी रे, दीधउ खड्ग प्रहार, ततखिण पग त्रूटि पडिउ रे, वरत्यउ हाहाकार... घात तणई दुःखी दूहव्यउ रे, मनमांहि धरइ संताप, एकलडउ जीव भोगवइ रे, पूरवभवनउ पाप... मउडइ मउडइ चालता रे, पगि पगि लेइ विश्राम, थंभि अनाथि आवी रहिउ रे, आणइ शुभ परिणाम... 108 १ कुमरजी... २ कुमरजी... ३ कुमरजी.... ४ कुमरजी....
SR No.523351
Book TitleAho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal S Shah
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationMagazine, India_Aho Shrutgyanam, & India
File Size3 MB
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