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________________ अर्थ- राजसभामां थयेल नवीन घटना जोई सहु आश्चर्य पामे छे. राजा पण विस्मयथी शेठने तेनुं कारण पूछे के आ महिषनी आवी चेष्टा केम ? शेठ राजाने कहे छे के आ महिष- चरित्र आप शांतिथी सांभळजो. जीवदयाना पाया पर रचायेल आ महिषनी आपवीति हृदयद्रावक छे. आ महिष एक गोकुलमां रहेतो हतो धीमे-धीमे फरतो ते क्यांय बहार जतो नथी. तेने दरेक व्यक्तिथी भय लागे छे. ते कोईना पण शरणे जवा तैयार नथी. जातिस्मरणना बलथी ते पोतानो पूर्वभव जुए छे ते कारणथी ते भयथी धूजे छे. आंसु पाडे छे परंतु तेना मर्मने कोईपण जाणी शकतु नथी. ते अवसरे एक ज्ञानीभगवंत विचरता त्यां पधारे छे ते सांभळी ते गोकुलना दंडक नामना गोपति त्यां जाय छे वंदना करी देशना सांभळे छे. देशनाने अंते गोपति महिषनी वात पूछे छे. तेना मर्मने जणाववा भगवंतने विनंती करे छे. ज्ञानीभगवंत गोपतिने तेना पूर्वना भवोनी वात कहे छे. आ महिषनो पूर्वना सात भव सुधी घात थयेल छे. दरेक भवमां होम विगेरे कोईपण कारणथी तेनी हिंसा थयेल छे ते कारणथी आ भवमां तेने बधाथी भय लागे छे. अने अनेकवार आंसू सारे छे. सर्व प्राणीओने पोतानो जीव व्हालो लागे छे माटे ज ज्ञानी, वचन छे के “सव्वे जीवा वि इच्छन्ति, जीविउ न मरिजिउं"। दंडक गोपति महिषनी वात सांभळीने वैराग्यने धारण करे छे. जीवहिंसाना कटुफळ जाणी सद्गुरुनी साक्षीए जीवहिंसा त्यागनी प्रतिज्ञा करे छे. हुं (श्रेष्ठी) एक दिवस गोकुल जोवा गयो. त्यां महिषनी पूर्वभव संबंधी वातो जाणी में (शेठे) पण जीवहिंसा त्यागनी प्रतिज्ञा करी अने महिषने अभयदान आप्यु. त्यांथी पाछा फरता आ महिष मारी पाछळ पड्यो कोईपण रीते ते पाछो जवा तैयार न थयो त्यारे हु तेने मारी साथे मारा मंदिरे लई आव्यो. तेनी सारसंभाळ करी. तेना चार-पाणीनी पण सारी व्यवस्था गोठवी. राजमंदिर आवता ते मारी साथे आव्यो छे. ते एकलो रहेवा तैयार नथी तेथी में तेने न वार्यो. अहीं आवेल ते हर्षपूर्वक आपनी सामे ऊभो छे. माटे हे राजाजी ! तेने आप अभयदान आपो. राजा महिषनुं चारित्र सांभळी विचारमा गरकाव थई जाय छे. खरेखर जीवोनी गति विसमी छे. आ संसारने धिक्कार छे. ८४ लाख योनिमां फरता जीव कर्मनो बंध करे छे. अजाणता के जाणता पण जीव कर्मबंध करती वखते विचारतो नथी अने तेना कारणे नरक अने तिर्यंचना अनेक भव करे छे अने अपार दुःखने प्राप्त करे छे. 107
SR No.523351
Book TitleAho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal S Shah
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationMagazine, India_Aho Shrutgyanam, & India
File Size3 MB
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