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________________ एक दिवसि हउ गोकुलि पहुतइ, देखी इसउ विनाण, मइ पुणि जीवतणउ बंध छांडिउ सांभली सुगुण सुजाण... ८ राजनजी... आज अम्हारइ साथि बापुडउ, आव्यउ राज मझारि, अभयदान मांगइ तुम्ह आगलि, उभउ छउ निराधारि... ९ राजनजी... इसउ स्वरूप महिषनउ सुणी, भूपति करइ विचार... जीवतणी गति विसमी दीसई, धिग् धिग् एह संसार... १० राजनजी... नरक-अनइ तिरजंच तणइ भवि, दीसइ दुःख अनेक, जीव अजाणपणइ नवि चेतइ, हियडइ धरिय विवेक... ११ राजनजी... लाख चउराशी जीवयोनि माहे... भमइ अनंतउ काल, छेदन-भेदन सहइ विविह परि, किमइ न छूटइ काल... १२ राजनजी... जीव नटवानी परि फिरतउ, करइ अनेरा रूप, कर्म तणइ वसि सुखदुःख भोगवई, इम चेतिउ मनि भूप... १३ राजनजी... राय विमासी देशि आपणइ, दिइ आदेश अखंड, एह महिष वध करिस्यइ तेहनउ, चोर तणउ छइ दंड... १४ राजनजी... चउपट चहुटइ चिहुदिशि फिरता, कोई न करई कणवार, महिष आपणइ इच्छा हिंडइ, निरभय हुओ अपार... १५ राजनजी... एक दिनि मृगध्वजकुमार विचक्षण, सुभट तणइ परिवारि, मन इच्छा वनमांहि रमीनइं, पहुतउ पउलि दुवारि... १६ राजनजी... महिष आवतउ दृष्टिइं देखी, कोपिइ चडिउ कुमार, निरदय पणइ खड्ग ले घायउ, न गिणइ पुण्य आचार... १७ राजनजी... 106
SR No.523351
Book TitleAho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal S Shah
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationMagazine, India_Aho Shrutgyanam, & India
File Size3 MB
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