________________
मारी साथे लई जईने संभाळीश तमे चिंता करशो नहि. स्नेहपूर्वक तेने संभाळीश. पछी बधाने समजावीने घरे लई जाय छे चारा-पाणी सारसंभाळपूर्वक करे छे तेने खूब सारी रीते साचवे छे. तेनी सारी संभाळथी ते सुखी थाय छे. ते महिष सारी रीते रहे छे.
एक दिवस श्रेष्ठी राजाने मळवा राजमंदिर जाय छे. ते समये ते महिष पण शेठनी पाछळ-पाछळ जाय छे तेने एकलाने भय लागे छे नाथ रहित रहेवा ते तैयार नथी माटे तेमनी साथे जाय छे. शेठ राजद्वारे पहोंचे छे त्यारे द्वारपाळ ते महिषने रोके छे. श्रेष्ठि द्वारपाळने समजावी ते महिषने राजसभामां लई जाय छे. राजाने श्रेष्ठी प्रणाम करे छे ते जोई महिष पण राजाने नमे छे अने जीभ काढीने तेमनी सामे ऊभो रहे छे. कोई पण रीते ते स्थानने छोडतो नथी. अने हर्षथी बधाने सामे जोईने श्रेष्ठिनी जेम ते पण राजसभामां बेसे छे.
ढाळ-२ (छनासी) इसउ अचंभम नयणे देखी कारण पूछइ राय, श्रेष्ठि कहइ स्वामी तुम्हे निसुणउ एहनउ कर्मविपाक... १ राजनजी... राजनजी, जोवउ हृदय विचारि, एक जीवदया धर्मसार, जो ए होम मिसि जे वध करिस्यइ, ते रुलिस्यइ संसार... २ राजनजी... महिष एक अम्ह गोकुलि चरइ, दिनि दिनि मउटउ थाइ, मरण थकी बीहई बापलडउ, कहि कुण शरण जाइ... ३ राजनजी... जातिस्मरण तणइ बलि देखइ, पूरवलउ भव सोइ, धूजइ खीजई आंसू ढालइ, मरम न जाणइ कोई... ४ राजनजी... इणि अवसरि ज्ञानी तिहां आव्या, कहइ गोप सुणी वात, सातवार तइ महिष तणइ भवि, कीधउ एहनउ घात... ५ राजनजी... तिणि कारणि ए तोरइ दरिसणि, थरथर धूजइ अंगि, जीव सहुनइं जीव आपणु, वाल्हउ छइ बहु भंगि... ६ राजनजी... सत्यवचन ज्ञानी मुखि निसुणी गोप धरइ वइराग, सद्गुरु तणी सखि तिणि कीधउ, जीवहिंसानउ त्याग... ७ राजनजी...
105