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मानपूर्वकनुं हतुं. ते एक दिवस गोकुल जोवा गया. तेमां सारा प्रमाणमां गायो अने महिष हता तेनी सारसंभाळ सारी रीते थती हती. तेने साचवनार दंडक गोपति खूब काळजीपूर्वक देखरेख राखतो हतो. ते दंडक गोपति कामदेव श्रेष्ठिने गोकुल देखाडवा लई जाय छे. त्यां गायना टोळा अने महिषना टोळाने देखाडे छे. तेमां एक महिष (पाडो) खूब भय पामेलो जणाय छे. आंसु सारता अने ध्रुजता ते महिषने जोईने श्रेष्ठि गोपतिने पूछे छे के आ महिषनी आवी स्थिति केम छ ? ते आटलो भय पामेलो केम जणाय छे ?
दंडक गोपति ते महिषने टोळामांथी तेडावे छे अने कहे छे के 'हे महिष ! आ मारो अने तारो स्वामी छे तेथी तु भय न पाम.' आ सांभळी ते महिष भयने दूर करी हर्ष पामे छे. तेने नमे छे. अने श्रेष्ठीनी सामे जीभ काढी ऊभो रहे छे. महिषनी आवी चेष्टा जोईने श्रेष्ठी गोपतिने तेनु कारण पुछे छे त्यारे गोपति कहे छे के ज्ञानीना वचनथी जाण्यु छे के आ महिषनी सात भव सुधी हत्या थयेल छे. ते पोताना जातिस्मरणथी जाणे छे माटे हमेशा माटे भय पामेलो रहे छे. आवु सांभळी शेठ तेने अभयदान आपे छे.
आ प्रसंगथी श्रेष्ठिने वैराग्य उत्पन्न थाय छे. जीवहिंसाना त्यागनो नियम ग्रहण करे छे. हिंसाना कारणे जीव कोढी, लंगडो आंधळो अने काणो थाय छे. हिंसाथी जीव अनंतकाल भमे छे. नरक अने तिर्यंचना भवोमां पण अनेकवार रखडे छे. हिंसा ए दुर्गतिनी खाण छे. वैश्वानरनी सहचारिणी हिंसा जीवोने चोराशी लाख योनिमां भटकावे छे अनेक दुर्गुणोने उत्पन्न करे छे. हिंसानें आवं स्वरूप समजीने श्रेष्ठि महिषने अभयदान आपे छे अने जावज्जीव हिंसाना त्यागनी प्रतिज्ञा करे छे. ते समये गोपति श्रेष्ठिनी प्रशंसा करे छे के “खरेखर आप महान छो. आपना हृदयमां प्रगटेल विवेकथी अने प्राप्त पुण्यथी आप अनेक सुखनी प्राप्ति करशो, खरेख आपे मनुष्य जन्मने सफल कर्यो छे. आपना वंशनी उज्ज्वळता आपे वधारी छे.” एम हृदयना भावथी गोपति श्रेष्ठिनी प्रशंसा करे छे अने उछळता भावथी हर्षथी दूध-खांड-घी-गोळ मिश्रित आहार करावे छे. खूब संतोष व्यक्त करे छे अने आनंदथी वळाववा पण जाय छे.
श्रेष्ठी पोताना मंदिरे (हवेलीए) जवा माटे नीकळे छे त्यारे अणतेड्यो ते महिष तेमनी पाछळ-पाछळ जाय छे. तेने पाछो लाववा माटे जंगलीनी जेम अनेक गोप तेनी पाछळ दोडे छे पण ते महिष वधारे-वधारे दोडतो जाय छे अने पाछ वळतो नथी. आ जोईने करुणायुक्त श्रेष्ठीए गोपने कह्यु के आ महिषने तमे दुःखी करशो नहि. तेने हुं
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