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________________ रासमां जुदो उल्लेख जोवा मले छे के महिषनो जीव असुरकुमार एक मंदिर बंधावी तेमां केवली अने त्रिखुरवाला महिषनी प्रतिमा स्थापन करे छे. बाकीनुं वर्णन प्रायः समान प्राप्त थाय छे. केवल हर्षपुरगच्छीय मलधारी श्री हेमचन्द्रसूरिसन्दृब्ध ‘भवभावना' ग्रन्थमां मृगध्वजकेवलीना चरित्रनी संक्षेप माहिती जाणवा मळी छे. श्लोक नं. २०८० थी २०९० सुधीमां आनुं वर्णन छे तेमज क्षत्रिय वंशीय मृगध्वज केवलीना वंश परंपरामां थयेल एणीपुत्र विगेरे तथा कामदेवश्रेष्ठीना वंशमां थयेल कामदत्त विगेरेनुं वर्णन पण आ ग्रन्थमांथी प्राप्त थई शक्यु छे. आ ग्रन्थमां कामदेवश्रेष्ठि ऋण मंदिर बंधावे छे. तेमां प्रथम मंदिरमां त्रिखुरवाला रत्नमय महिषनी प्रतिमा, बीजामां पोतानी अने त्रीजा मंदिरमां मृगध्वजकेवलीनी प्रतिमा भरावे छे. आ प्रमाणे उल्लेख छे. ज्यारे पद्मकुमार रचित आ रासमां जुदो उल्लेख जोवा मले छे के महिषनो जीव असुरकुमार एक मंदिर बंधावी तेमां केवली अने त्रिखुरवाला महिषनी प्रतिमा स्थापन करे छे. बाकीनुं वर्णन प्रायः समान प्राप्त थाय छे. क्षति बदल विद्वानोने सूचन करवा नम्र विनंती. परमात्मा के लांछन विषयमें विशेष जानकारी : १० वें शीतलनाथ भगवान का लांछन एवं अष्ठमंगल श्रीवत्स प्राचीनतम स्वरुप अर्वाचीन स्वरुप ९ वें सुविधिनाथ भगवान का लांछन : मकर का वास्तविक स्वरुप सा. नयदर्शनाश्रीजी ना शिष्या सा. नम्रनिधि तथा नम्रगिरा १८ वें अरनाथ भगवान का लांछन एवं अष्ठमंगल : नंद्यावर्त प्राचीनतम नंद्यावर्त अर्वाचीन नंद्यावर्त १3 वें विमलनाथ भगवान का लांछन डुक्कर (भुंड) नहि, अपितु विशिष्ट पवित्र प्राणी 'वराह' है। | जिनालय निर्माण संबंधित शिल्पग्रंथरत्न ★ जैन शिल्प विधान (भाग १-२ ) > जिनालय निर्माण मार्गदर्शिका (गुभ्रातीहिन्दी) 99 लेखक प. पू. मुनिराज श्री सौम्यरत्नविजयजी म. सा.
SR No.523351
Book TitleAho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal S Shah
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationMagazine, India_Aho Shrutgyanam, & India
File Size3 MB
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