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श्री मृगध्वजकेवलीरास
रासपरिचय -
अहिंसा, संयम अने तपरूप धर्म ए उत्कृष्ट मंगल छे. जीवोनी हिंसानो त्याग ते अहिंसा धर्म. दरेक ने पोतानो जीव प्रिय होय छे. माटे दरेक जीवोनी रक्षा करवी जोईए. जीवहिंसाथी आ भव अने परभवमां कटुफळ भोगववा पडे छे. दुर्गतिमां धकेलाईने अनंत भवभ्रमण थाय छे. तेवी जीवहिंसा, सादृश्य वर्णन पद्मकुमारे 'मृगध्वज केवली रास'मां करेल छे.
श्री नमिनाथ प्रभुना शासनमां थयेल मृगध्वजकेवलीरासनो मुख्य उद्देश जीवमैत्री, करुणा अने अहिंसा धर्मना लाभ तेमज जीवहिंसाना नुकसान दर्शाववानो छे. पूर्वभवना संबंधथी चालती वेरनी परंपराथी जीवो केवा कटुफळ भोगवे छे तेनुं तादृश्य वर्णन आ रासमां करवामां आवेल छे ते जाणी सर्व जीवो वेरनी परंपराने तोडी भवनिर्वेद पामी भव बंधननी बेडीने तोडी जल्दीथी मोक्ष साथे संबंध जोडे तेवो ज आ रासनो उद्देश छे.
__चार ढाळमां रचायेल आ रास नानो पण बोधदायक छे. अने सज्जायरूपे गाई शकाय तेवो खूब रसप्रद छे. अंत्यानुप्रास अलंकारथी सुशोभित छे. कर्तापरिचय
__ आ रासना रचयिता खरतरगच्छीय पूर्णचन्द्र उपाध्यायना परम विनेय श्री पद्मकुमार छे. तेमना विषेनी माहिती कोई प्राप्त थई शकती नथी. आ रास पण कया समयमां रचायो छे ते जाणी शकातु नथी. मृगध्वजकेवलीनुं चरित्र पण बीजा कोई पण ग्रन्थमांथी प्राप्त थई शक्यु नथी. केवल हर्षपुरगच्छीय मलधारी श्री हेमचन्द्रसूरिसन्दब्ध 'भवभावना' ग्रन्थमां मृगध्वजकेवलीना चरित्रनी संक्षेप माहिती जाणवा मळी छे. श्लोक नं. २०८० थी २०९० सुधीमां आनुं वर्णन छे तेमज क्षत्रिय वंशीय मृगध्वज केवलीना वंश परंपरामां थयेल एणीपुत्र विगेरे तथा कामदेव श्रेष्ठीना वंशमां थयेल कामदत्त विगेरेनुं वर्णन पण आ ग्रन्थमांथी प्राप्त थई शक्यु छे.
आ ग्रन्थमां 'कामदेवश्रेष्ठी त्रण मंदिर बंधावे छे. तेमां प्रथम मंदिरमां त्रिखुरवाला रत्नमय महिषनी प्रतिमा, बीजामां पोतानी अने त्रीजा मंदिरमां मृगध्वजकेवलीनी प्रतिमा भरावे छे.' आ प्रमाणे उल्लेख छे. ज्यारे पद्मकुमार रचित आ
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