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________________ 100 9702 पुरा पं. श्री चंद्रसागरजी गणि मन जाना कहसास पिवन्तवत स्वरूप कुमति निवासात माता नेवतिहाँ नगर नेते) सायामहिषम् नेम्बामा वयर कारण कहे सिवगामी त्रिग्रीवराय तक रिमेस महंत 1951 रुरुकर वारीस । श्रामपूरी सागरतेत्री स। 1514नराश्रति संसारे फिर 5 वा कुहिन का सारा धन शनिबार सीध मरियम व कालापन फि रिस्पोनर कहा तिसयामा तारमहिषीउदरपन्नग वास्मात तिहांविबन्धन माहि श्रायामित्यगमिई दूहाहाहापहारे मनशांतिसुकुमारामार विश्रपारा मिरल हिस्पनिश्रवत्तव से बेधा जारी न ६ षनिबंधाम निमकरवरोस लगा। जिममामत वहपान मनि केवल वारा॥॥॥ प्रतिबोधियास विकणारा मस्ति स्पनसीमसार रायमाल निरती चार श्याधनतता यानि किसुर कुमार (प्रासादकर तिफारामा हिमा मादि जगमगतार तिर गनगिषामयिम हायरयापश्मरतिमतामष्टिकामदेव के न्या धनदेश विपसनावर (२६ न केवलधर करविहारा प्रतिबाधत विकारादिन कर जिम् ज्ञान का सामाहतिमर उतरना है। 201धन आयुरासुरारिणो ममताशवन गरी गमिति होयाम्पा सुरवातीस गत २८० मुनितरा सुपाता ॐ जनमपवित्राश्रनिमिनाथ वार हार मि या गुणा गांगहाणधनधनधनजमुनिया ही प्रणामपाय । जसु नाभि नवनिना मामीज मुख संतान धनण परतर गति गुरुरायासी काया तास सास सदास व वारा मवालम् पदमकुमा राशन केवल रिषिद पाएँ। कल्पापास्तुश्रब ३ चंद्रसागरजी ज्ञानभंडार - उज्जैन (अन्तिम पृष्ठ)
SR No.523351
Book TitleAho shrutam E Paripatra 02 Samvat 2071 Meruteras 2015
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal S Shah
PublisherAshapuran Parshwanath Jain Gyanbhandar Ahmedabad
Publication Year2015
Total Pages132
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationMagazine, India_Aho Shrutgyanam, & India
File Size3 MB
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