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________________ अङ्क १२ देशकी वर्तमान परिस्थिति। ३८५ स्वतंत्रताके इस संग्रामकी नीति के बिल- में समझाकर साधारण जनता पर प्रगट कुल विरुद्ध है और हिंसाके रंगमें रँगा करना चाहिए, जिससे कोई भी शख्स दुआ है। जान पड़ता है, ऐसे लोगोंने किसी प्रकारके धोखे में न रह सके। और स्वतंत्रताके इस धर्म युद्ध का रहस्य नहीं अपने आचार-व्यवहारके द्वारा हमें समझा । वे अभी क्रोधादिक अन्तरंग पबलिकको इस बातका पूरा विश्वास शत्रुनोले पीड़ित हैं, उन्होंने अपने कषायों- दिलाना चाहिए कि उनकी वजहसे कोई को ( जज़बातको) दमन नहीं किया, भी भारतवासी-चाहे वह हिन्दू, मुसअपनी कमजोरियोपर काबू नहीं पाया. लमान, अंगरेज, पारसी, ईसाई और और इसलिये उन्हें निर्बल समझना यहूदी प्रादि कोई भी क्यों न हो-अपने चाहिए। ऐसे निर्बल और गुमराह (मार्ग जानमालको जरा भी खतरे (जोखों) में न भूले हुए ) सैनिकोंसे स्वतंत्रताको यह समझे। हमें गुंडों, बदमाशों तथा उपमैदान नहीं लिया जा सकता। ऐसे लोग द्रवी लोगोंसे नफरत करके उन्हें बिलकुल बहुधा कार्य-सिद्धि में उलटे विघ्नस्वरूप ही स्वतंत्र न छोड़ देना चाहिए बल्कि हो जाते हैं। बम्बईका हंगामा (दंगा) उनसे मिलकर उन्हें सेवा शुश्रूषा और और मोपलोंका उपद्रव ऐसे ही लोगोंकी सद्व्यवहारादिकके द्वारा अपने बनाकर कर्तृतोके फल हैं। इसलिये यदि हम काबूमें रखना चाहिए। और अपने असरसे स्वराज्य चाहते हैं तो हमें अपनी और उनके दुष्कर्मों तथा बुरी आदतोको छुड़ा अपने भाइयोंकी इन त्रुटियों और कम कर शांति स्थापनके कार्यको और भी जोरियोको भी दूर करना चाहिए । इनके ज्यादा दृढ़ बनाना चाहिए, प्रत्येक मगर • दूर हुए बिना हम बलवान नहीं हो सकते. और ग्राममें ऐसा सुप्रबंध करना चाहिए न साधारण जनताकी सहानभतिकां जिससे कहीं कोई चोरी, डकैती अथवा अपनी ओर खींच सकते हैं और न मागे लूटमार न हो सके, कोई बलवान किसी ही बढ़ सकते हैं। निर्बलको न सता सके, आपसके झगड़े ___ हमारा मुख्य कर्तव्य इस समय यही टंटे सब पंचायतों द्वारा तै (फैसल) हुआ होना चाहिए कि हम विश्वप्रेमको अप करें, सबका जान-माल सुरक्षित रहे और नाएँ, उसे अपना मूल मंत्र बनाएँ सी इस तरह पर लोगों को स्वराज्यके भानंद. प्रमकी ज्योति जगाएँ, जोकळ काम कर का कुछ अनुभव होने लगे और वे यह वह सच्चे हृदयसे प्रेमके साथ करें-उसमें समझने लगे कि, सरकारकी सहायताके ढोंग या पक्षपात न हो-और जो काम बिना भी हम अपनी रक्षा आदिका प्रबंध दूसरोंसे कराएँ वह भी उसी प्रेमके श्रा स्वयं कर सकते हैं और उससे अच्छा धार पर कराएँ-उसमें जरा भी जब्र, कर सकते हैं। सख्ती वा जबरदस्तीका नाम न हो। लोकमतके इतना शुद्ध और कर्तव्यसाथ ही, हमें स्वराज्यकी नीतिको, स्व. निष्ठ होने पर स्वतंत्रता देवी अवश्य ही राज्यसे होनेवाले लाभोंको, वर्तमान भारतके गले में वरमाला डालेगी, इसमें असहयोग आन्दोलनके असली मन्शा व जरा भी संदेह नहीं है। अतः हम सबको मानी (आशय तथा अर्थ) को और मिलकर सच्चे हृदयसे इसके लिये प्रयत्न महिलाके गहरे तत्वको बहुत खुले शब्दों करना चाहिए । इस समय प्रापसके झगड़े Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522894
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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