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अंक १२ ] देशको वर्तमान परिस्थिति।
परदे और शिक्षा-हीनताने स्त्री जाति- सच्चे मनुष्यत्वके सामने सभी मनुष्यों को पशुओंसे भी अधम बना दिया है; . को सिर झुकाना पड़ता है। इस मनुष्य उनके ललाट पर सैकड़ों दीनताओं और त्वकी साधनाके लिए स्त्रियों को अन्तःपुर कलंकोंकी छाप लगा दी है। स्त्रियोंको छोड़कर बाहर माना चाहिए । जनसाकैदी बनाकर उनके सतीत्वकी रक्षा धारणकी श्रद्धा उन्हें अवश्य प्राप्त होगी।* करना समझमें नहीं पाता कि लोगोंको क्यों पसन्द है । ऐसे सतीत्वका कोई मूल्य । नहीं है। हमारी स्त्रियाँ हाथ पैर होते हुए देशकी वर्तमान परिस्थिति भी लूली लँगड़ी और हृदय होते हुए भी अनुभूतिहीन हैं। इसके सिवाय पर
और हमारा कर्तव्य । मुखापेक्षी या पराश्रित होकर रहनेकी आजकल देशकी हालत बहुत ही अपेक्षा बड़ा कष्ट इस मानव जीवनमें और नाजुक हो रही है। वह चारों ओर अनेक कौनसा है ?
प्रकारकी आपत्तियोंसे घिरा हुआ है। जहाँ स्त्री-स्वाधीनता नहीं है, वहाँ जिधर देखो उधरसे ही बड़े बड़े नेताओं यदि कोई स्त्री घरसे बाहर निकलती है. और राष्ट्र के सच्चे शुभचिन्तकोंकी गिरितो लोग उस पर चरित्रहीन होनेका फ्तारी तथा जेल यात्राके समाचारमा सन्देह करते हैं और उसकी भोर बरी रहे है । एक विकट संग्राम उपस्थित है। नजर डालते हैं। पुण्यवती स्त्रियों को अपनी सरकार (नौकरशाही) पूरे तौरसे कठिन वज्र दृष्टिले उक्त बुरी नजरकी दमन पर उतर आई है और लक्षणोसे उपेक्षा करनी चाहिए।
ऐसा पाया जाता है कि वह भारतीयोंकी . यदि किसी रेलवे स्टेशन पर कोई
ही इस बढ़ती हुई महत्वाकांक्षा (स्वराज्य. बहू-बेटी सोजाती है, तो जानते हो उसको
प्राप्तिकी इच्छा) को दबाने और उनके कहाँ जगह मिलती है ? कलकत्ते में मार्ग
संपूर्ण न्याय्य विचारोको कुचल डालनेके
लिये सब प्रकारके अत्याचारोंको करने भूली हुई बहूबेटीका उद्धार हो जाने पर भी कोई उसे ग्रहण नहीं करता, खोई
कराने पर तुली हुई है। वह देशके इस हुई लड़कीका पता लग जाने पर भी कोई
महावत (अहिंसा-शांति) को भंग करा.
कर उसे और भी ज्यादा पददलित करना उसके साथ विवाह करके समाजसे पतित नहीं होना चाहता । यह बात बिल्कुल
और गुलामीकी जंजीरोंसे जकड़ना
चाहती है और इसके लिये बुरी तरहसे झूठ है कि शिक्षित और स्वाधीन होनेसे स्त्रियाँ चरित्रहीन हो जाती हैं। स्त्रियोंको
उन्मत्त जान पड़ती है। इस समय सरस्वाधीनता और शिक्षा नहीं दी गई है।
कारका असली 'नग्न' रूप बहुत कुछ
स्पष्ट दिखलाई देने लगा है और वह इसीलिए उन्हें अपनी मर्यादाका-अपनी
मालूम होने लगा है कि वह भारतकी नची प्रतिष्ठाका शान नहीं है। स्त्रियों की
- कहाँतक भलाई चाहनेवाली है। जो मुक्ति और मंगल कामनाके लिए पुरुष
र लोग पहले ऊपरके मायामय सपको समाज चिन्तित होगा न हो, भव स्त्रियोंको स्वयं अपने कष्टोंका विचार करके प्रवासीके अग्रहायणके अंकके एक लेखका प्राशय । जागृत हो जाना चाहिए।
नाथूराम प्रेमी।
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