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________________ मुख्तार साहब की रचनाएँ कितनी उत्कृष्ट और हृदयस्पर्शी होती हैं-यह बात वे सब लोग जानते होंगे जिन्होंने आपकी बनाई 'मेरी भावना' को एक बार भी पढ़ा होगा । इसके अबतक संभवतः १५-२० संस्करण हो चुके होंगे। उन्हीं की संपूर्ण कविताओं का संग्रह-सो भी, प्रेम मन्दिर द्वारा प्रकाशित सब प्रकार से सहृदय पाठकों द्वारा ग्राह्य है। - जैसवाल जैन ४-७ । १२ - भीयुत ब्रह्मचारी ज्ञानानंदजी, सम्पादक "अहिंसा" बनारस । जैनहितैषी । ..... प्रत्येक कविता बहुत ही मनोरंजक और हृदयग्राही है। कविताएँ नाना छन्दोंमें संकलित की गई हैं ।" अहिंसा १३२ । लालजी, १३- श्रीयुत वैद्य शंकर संपादक 'वैद्य' मुरादाबाद । “यह कविताओंकी एक छोटीसी पुस्तक है। इसमें कई महत्वपूर्ण विषयों पर अच्छी २ कविताएँ लिखो गई । श्रजसम्बोधन ( वध्यभूमिको जाता हुआ बकरा ), मेरी भावना, विधवा सम्बोधन आदि कविताएँ बहुत ही भावपूर्ण और हृदयग्राहिणी हुई हैं। इसके लेखक जैनसमाजके उज्वल रन श्रीयुत पं० जुगल किशोरजी मुख्तार हैं। छपाई सफाई, अत्युत्तम ।' - वैद्य ६-८ । १४ - श्रीयुत स्व० कुमार देवेन्द्रप्रसाद जी जैन, धारा । [ आपकी 'प्रेमोपहार' नामकी जो प्रस्तावना पुस्तक के शुरू में लगी हुई है उसका एक अंश इस प्रकार है -] ? " हमारे हृदय में इस संग्रहकी कविताओंसे बढ़े ही शुद्ध तथा पुष्ट भाव संचित हुए हैं और हमारा यह दृढ़ विश्वास के अध्ययन तथा मनन से सभी प्रेमी जन संतुष्ट होंगे और लाभ उठाएँगे ।" स्त्री-शिक्षा और स्वाधीनंता । पुरुष स्त्रियों के रूप पर कविता रचना करने में तो व्यस्त हैं, परन्तु उन्हें यह नहीं सूझता कि उनके हृदयकी वेदना, उनकी Jain Education International संपूर्ण नहीं, किन्तु खास खास कविताओंका यह संग्रह है - संपादक । [ भाग १५ दीनता और उनके अपमानको वास्तविक रूपमें समझने की चेष्टा की जाब । स्त्रियोंके प्राण हैं। वे केवल रूपकी प्रशंसा सुनकर नहीं जी सकतीं । वे इस बातकी स्वीकारना चाहती हैं कि वे भी 'मनुष्य' हैं । स्त्रियाँ यदि शिक्षिता हो तो वे भी पुरुषोंके समान जीवन की कठिनाइयोंके साथ संग्राम कर सकेंगी, विपत्ति में रोएँगी नहीं, और पुरुष उन्हें कुमार्गगामी न बना सकेंगे। कन्याओंको पुत्रके समान शिक्षित बनाओ, उन्हें श्रात्मबोध कराओ, उनके हृदयमें शक्ति, मुखमें भाषा और भुजाओ तथा छाती में बल दो । गहनों की अपेक्षा यही उनके लिए उत्तम दान होगा । मनुष्यको सबसे बड़ा अधिकार यह मिला हुआ है कि यदि उसके ऊपर कोई अन्याय किया जाता है तो वह विद्रोही होता है—उस अन्यायके विरुद्ध छाती खोलकर खड़ा हो जाता है । तब समझमें नहीं आता कि स्त्रियोंको इस अधिकार से वंचित करके समाजका अकल्याण क्यों किया जाता है। स्त्रियोंका जीवन व्यर्थ क्यों नष्ट किया जाता है ? यदि किसी कारण से स्त्री अपने पति · के घर नहीं रह सकती तो उसे अपने पिता के घर परानुगृहीताके समान रहना पड़ता है और भाई भौजाइयों से डरते हुए जीवन व्यतीत करना पड़ता है । इसपर कहीं एक दो बालबच्चे भी साथ हुए तब तो फिर पूछना ही क्या है; उसे एक अपराधिनी के समान दिन काटने पड़ते हैं । यदि तुम यह जानना चाहते हो कि मनुष्यका जीवन किस तरहसे व्यर्थ नष्ट होता है, तो स्त्रियोंके जीवनकी भोर नजर डालो । For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522894
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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