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________________ अङ्क १२] सत्याग्रह करना पड़ेगा। ३७१ दर्पण के समान है, जैसा कि एक जिम्मे- की जा सके, दूसरे शक्तियोंका तिरत वार सभाको होना ही चाहिए ! परन्तु , बितर हो जाना इतना अच्छा नहीं जितना मुझे अत्यन्त शोकके साथ प्रगट करना सब शक्तियों का मिलकर काम करना पडता है कि उसके वर्तमान अधिकारियों-' अच्छा होता है। यदि आज समाजकी ने अपनी इस जिम्मेवारीको नहीं समझा सवे संस्थाएँ जैसे महाविद्यालय काशी और महासभाकी अवस्था प्रान्तिक व मथुरा, · ब्रह्मचर्याश्रम हस्तिनापुर, सभा जैसी भी नहीं रहने दी, किन्तु स्याद्वाद पाठशाला मोरेना, अनाथाश्रम समाजकी दृष्टिमें वह केवल कुछ बड़े देहली व बड़नगर, जैन औषधालय बड़मनुष्यों की प्रदर्शनी मात्र रह गई है, नगर व अन्य सब छोटी छोटी संस्थाएँ, और जिसका परिणाम भी वही निकला महालभाको इस योग्य बनाकर कि वह जोकि निकलना चाहिए था। अर्थात स. सबको अपनी संरक्षतरमें रख सके, संरमाजने उससे इस कदर उदासीनता ग्रहण क्षतामे होती तो समाजको निम्नलिखित कर ली है मानों उसके प्रति कोई महासभा चार बातोंका लाभ होताहै ही नहीं, और इसी कारण महासभाके १-थोड़े नेताभोसे सबका काम जितने छोटे बड़े प्रस्ताव होते हैं वे सब चलता रहता बल्कि दो चार आवश्यकीय, हास्यकारक, भहे और एक दूसरेके वि. संस्थाएँ और बढ़ सकती। रोधी होते हैं। महासभाके प्रचार कार्यमें २-समाजको बहुत थोड़ा रुपमा समाजका किराना लम्बा हाथ है, इसका देना पड़ता और कार्यकर्ताओको रुपये. अनुमान इसीसे हो सकता है कि एक का- की चिन्तामें अपना सारा अमूल्य समब, र्यको महासभा अपने हाथमे लेती है और जो संस्थाकी दूसरी आवश्यकतामोको समाज उसपर ध्यान भी नहीं देता । सहा- पूरा करने में व्यय करना चाहिए था,यय यताका तो प्रश्न ही क्या? उसी कामको न करना पड़ता। एक व्यक्ति अपने हाथमे लेता है; समाज ३-महासभाकी योग्यता और प्रबंध. चिल्ला उठता है-यह अत्यावश्यक कार्य है, को देखकर समाज अपने ऊपर एकप्रकारशीघ्र करो, मैं तुम्हारे साथ हूँ, चाहिए सो का कर लगाने देती जो वार्षिक रूपमें सहायता लो। उदाहरण के लिये जीती पञ्चों द्वारा महासभामें पहुँचता रहता जागती मिसाल उपस्थित है-महासभा- और जिससे तमाम संस्थाएँ चलती के जीवदया विभागके बेचारे मंत्री महो- रहतीं और जो समाजके लिये उस रुपयेदय सदा अधिवेशनों में चिल्लाया करते हैं, से कम होता जो आये दिन चन्दोंकी किन्तु एक पाई चन्दानहीं मिलता। उसी सूरत में उसे देना पड़ रहा है और सं. कामको ब. झानानंदजीने अपने हाथमें स्थाओंके लिये उससे विशेष जो रुपया लिया, घरका प्रेस खोल लिया, एक जमा करनेका अधिक व्यय काटकर उसे समाचार पत्र जारी कर दिया और बच रहता है। जनताने खूब कदर की। किन्तु यह एक ४-आज कल जोज़रा जरासे धक्केसे निश्चित विषय है कि प्रथम तो समाज- संस्थाएँ पट हो जाती हैं, इस प्रकार समामें अभी इस कदर नेता नहीं कि जका रुपवा और कार्यकर्तामोका परिश्रम ऋोक भाषश्यकता व्यक्तिगत २ पूर्ण बर्थ न जाता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.522894
Book TitleJain Hiteshi 1921 Ank 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Granthratna Karyalay
Publication Year1921
Total Pages42
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Jain Hiteshi, & India
File Size6 MB
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