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जैनहितैषी।
[भाग १५ दिन आगेकी ही ओर बढ़ती जा रही है। बड़ी योग्यतासे लिखा है।" इस वाक्य यह पत्र अपने पाठकोको घने छपे हुए पर विद्वान् सम्पादक महोदयोंने अपनी मैटरके ३२ पृष्ठ पहुँचाता है, जिनमें बहुत नीचे लिखी टिप्पणी प्रकाशित की हैकुछ पढ़ने योग्य मसाला होता है, और "प्रेमीजीके जैनहितैषीमें कई ऐतिहासिक विवेचित विषयोंके सम्बन्धमें आगेको लेख निरन्तर छपते रहते हैं जो जैन
और अधिक अध्ययन तथा विचारको प्राचार्यों, इतिहास और साहित्य पर अवसर देता है।
- सच्चा प्रकाश डालते हैं। धार्मिक दुरामातृभाषाका सिर्फ यही एक जैनपत्र ग्रहके कारण कुछ जैन उन लेखोंकी कद्र है जो स्थायी रूपसे सुरक्षित रक्खे जानेके भले ही न करें, किंतु वे सत्य ऐतिहासिक योग्य है और रक्खा जाता है, और जिसमें खोज और पक्षपात रहित विवेचनसे पूर्ण नित्य काममें आनेवाले तथा सारगर्भित होते हैं । हिन्दी साहित्यके लिये वे गौरव बहुमूल्य लेख रहते हैं।
की वस्तु हैं।" १६-श्रीयुत रायबहादुर पं. गौरी- १७-श्रीयुत एन. श्रीवर्मा जैनी, शंकरजी मोझा और पं०चंद्रधर. अध्यापक 'दि. जैन वाणीविलास पाठशर्मा गुलेरी ।
शाला' निल्लीकारपेट-कारकल । नागरी प्रचारिणी पत्रिका नवीन
ता० ३०-१०-१९२१ संस्करण भाग २ अंक २ । आजकल "..... जैनहितैषी जैन समाजका इस पत्रिकाके सम्पादक सुप्रसिद्ध इति- बहुत उपकार कर रहा है ।....."सभ्य हासा राय बहादुर पं० गौरी शंकर संसारमें 'जैनहितैषी' आदरणीय है और हीराचन्द मोझा और पं. चन्द्रधर शर्मा गौरव दृष्टिसे देखते हैं। गुलेरी, बी० ए० हैं । इस अंकमें कलकत्ते . मैंने हितैषीले कंछुका, मधुकरी और के बाबू पूर्णचन्द्रजी नाहर एम० ए०, बी० जैनोका अत्याचार इत्यादि लेखों (का) एल० का 'प्राचीन जैनहिन्दी साहित्यः कर्णाटक भाषाकू अनुवाद कर जिनविशीर्षक लेख प्रकाशित भा है। यह लेख जय, तिलकसंदेश और कंठोरव इत्यादि कलकत्तेके गत हिन्दी साहित्य सम्मेलनके पत्रों में प्रकट किया है। मेरा विश्वास अवसर पर पढ़ा गया था और उसमें है कि जैन हिन्दी पत्रों में उच्च कोटिका जैन साहित्य पर बहुत कुछ नया प्रकाश पत्र है तो वही जैनहितैषी एक है।" डाला गया है। लेख के दूसरे पैरेमें कहा गया है-"हिन्दी साहित्य सम्मेलनके
सत्याग्रह करना पड़ेगा। सप्तम अधिवेशन पर 'जैनहितैषी' के मुयोग्य सम्पादक, सुप्रसिद्ध लेखक और भारतवर्षीय दि. जैन महासभा भारतऐतिहासिक विद्वान् पं० नाथूरामजी प्रेमी वर्षके सर्व दि. जैनियोंकी उसी प्रकार ने 'हिन्दी जैनसाहित्यका इतिहास' नामक उत्तरदायित्वपूर्ण सभा है जिस प्रकार एक गवेषणापूर्ण लेख लिखा है। उस भारतके निवासियोंकी अखिल भारतनिबन्धसे मुझे बहुत कुछ सहायता मिली वर्षीय जातीय कांग्रेस; और दूसरी जाहै। उन्होंने जैनभाषा साहित्यका प्राचीन तियों के सामने जैन जातिकी अवस्थाको कालसे वर्तमान समय तकका इतिहास प्रकाशित करने के लिये महासभा एक
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